अदालत ने साफ किया कि पहले से वैध परमिट और लाइसेंस के आधार पर जारी खनन गतिविधियों पर रोक नहीं लगाई जा रही है। जस्टिस बीआर गवई और न्यायमूर्ति अभय ओका की पीठ ने कहा, सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश वैध खनन गतिविधियों पर रोक लगाने के रूप में नहीं देखा जाएगा। पीठ ने स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल अरावली पहाडिय़ों और इसकी श्रृंखलाओं में खनन तक ही सीमित है।
अदालत ने कहा कि अगले आदेश तक सभी राज्य खनन पट्टों के आवेदनों पर विचार और नवीनीकरण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए स्वतंत्र होंगे। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) की रिपोर्ट में अरावली पहाडिय़ों में खनन पर रोक को लेकर जो बातें कही गई हैं, इस आधार पर कोई अंतिम अनुमति नहीं दी जाएगी।
राज्यों की सामूहिक जवाबदेही
केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने अदालत में एक रिपोर्ट पेश कर राजस्थान में की गई अवैध खनन का जिलेवार विवरण भी दिया गया। रिपोर्ट देखने के बाद अदालत ने कहा, अरावली पहाडिय़ों में खनन गतिविधियों का मुद्दा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ-साथ दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात को संयुक्त रूप से संबोधित करने की जरूरत है।
समिति गठित, दो मह में देगी रिपोर्ट
पीठ ने अरावली में अवैध खनन को लेकर एक समिति के गठन का आदेश दिया। यह समिति दो महीने में रिपोर्ट सौंपेगी। पीठ ने कहा कि खनन पर पूर्ण प्रतिबंध पर्यावरण की दृष्टि से भी अनुकूल नहीं है। इससे अवैध खनन को बढ़ावा मिलेगा। अदालत ने कहा कि इस मामले में आगे की सुनवाई अगस्त महीने में होगी।