नवजात में पीलिया किस वजह से होता है?
अधिकतर माँ-बाप नवजात शिशु को पीलिया (जॉन्डिस) होने की बात सुनकर घबरा जाते हैं। उन्हें लगता है कि यह वही बीमारी है, जो बड़ों को भी होती है। वयस्कों में जहां पीलिया यकृत (लीवर) में समस्याओं की वजह से होता है, वहीं शिशुओं में इसकी वजह यह नहीं होती। स्वस्थ नवजात में पीलिया तब होता है, जब उसके खून में पित्तरंजक (बिलीरुबिन) की अतिरिक्त मात्रा हो। बिलिरुबिन एक रसायन (केमिकल) होता है, जो कि शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के सामान्य रूप से टूटने पर बनता है।
नवजात शिशु में बिलिरुबिन का स्तर ज्यादा होता है, क्योंकि उनके शरीर में अतिरिक्त ऑक्सीजन वहन करने वाली लाल रक्त कोशिकाएं होती हैं। चूंकि नवजात शिशु का यकृत अभी पूरी तरह परिपक्व नहीं हुआ होता है, इसलिए यह अतिरिक्त बिलिरुबीन का अपचय नहीं कर पाता।
जैसे-जैसे शिशु में बिलिरुबिन का स्तर सामान्य से बढ़ता जाता है, पीलापन ऊपर से नीचे की तरफ फैलना शुरु हो जाता है। यानि यह सिर से गर्दन, छाती और गंभीर मामलों में पैरों की उंगलियों तक पहुंच जाता है। अगर, कोई गंभीर स्थिति न हो, तो नवजात शिशु में पीलिया आमतौर पर हानिकारक नहीं होता है।
कुछ गंभीर मगर दुर्लभ मामलों में यदि पीलिया यकृत रोग या माँ व शिशु के खून में असामान्यता के कारण हो, तो यह उसके तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है। नवजात में दो हफ्ते से अधिक पीलिया होने के दौरान बिलुरूबिन 5 से अधिक या 2-5 के बीच हो तो मेडिकली इसे नियोनेटल कोलीस्टेसिस कहते हैं। बिलियरी अट्रेसिया, नियोनेटल कॉलीस्टेसिस का मुख्य कारण है।
कारण- वायरल, फंगल व बैक्टीरियल संक्रमण आदि। मेटाबॉलिक- हीमोक्रोमेटोसिस, गेलेक्टोसेसिया, टाइरोसिनेमिया। बिलियरी अट्रेसिया, एंड्रोक्राइनल, इडियोपेथिक वजह हैं।
लक्षण पहचानें : नवजात शिशु में ०३ हफ्ते के बाद भी पीलिया के लक्षण दिखें या पेशाब का रंग पीला हो, डाइपर पीले रंग का हो या मल का रंग सफेद या क्रीमिश रंग हो तो तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें और पीलिया की जांच करवाएं।
ध्यान दें : तीन हफ्ते तक लक्षण दिखे तो बिलुरूबिन की जांच कराएं। डाइपर पेशाब के बाद पीले रंग का हो तो पीलिया की पुष्टि होती है। तीन महीने की उम्र के बाद ऑपरेशन की सफलता की संभावना बहुत कम होती है।