नीरज सोनीछतरपुर। सूखे और अवर्षा सहित जलवायु परिवर्तन से घिर बुंदेलखंड के छतरपुर जिला में मधुमक्खी पालन शुरू होने और शहद का निर्माण होने की एक अच्छी खबर भी आ रही है। स्थानीय गांधी आश्रम में छह महीने पहले शुरू हुआ प्रयोग सफल उत्पादन में बदल गया है। शहर में मधुमक्खी पालन पहली बार किया जा रहा है। आने वाले समय में शहद निर्माण की दिशा में यहां पर बड़े स्तर पर
काम शुरू होगा।
मप्र गांधी स्मारक निधि की सचिव दमयंती पाणी ने बताया कि गांधी आश्रम में जैविक खेती से लेकर प्रकृति से जुड़े सभी उत्पादनों पर काम चल रहा है। इसी कड़ी में छह माह पहले गांधी आश्रम में मधुमक्खी पालन शुरू किया गया था। दिल्ली से दो डिब्बे मधुमक्खी मंगवाए गए थे। आश्रम के कार्यकर्ता कृष्णकांत मिश्रा गोलू और विवेक गोस्वामी को इसका प्रशिक्षण दिलवाया गया। इसके बाद यहां पर काम शुरू हुआ। अब मधुमक्खी शहद बनाकर देने लगी हैं। उन्होंने बताया कि गांधी आश्रम के इस केंद्र से डेढ़ माह में 6 लीटर शुद्ध शहर निकला है। मधुमक्खियां यहां पर अलग-अलग फ्लेवर का शहर बना रही हैं।
ऐसे बनता है अलग-अलग फ्लेवर का शहद :
गांधी आश्रम में एक बड़े हिस्से में आर्गेनिक खेती होती है। इसी के बीच में मधुमक्खी पालन इकाई विकसित की गई है। एक मधुमक्खी तीन किमी क्षेत्र की मैपिंग कर उस एरिया में लगे फूलों से पराग कण एकत्र करके अपनी पेटी के अंदर लाती है। जिन पराग कणों को मधुमक्खी लाती है उसी फ्लेवर का शहद निकलता। इस समय यहां के खेत में सरसों का उत्पादन हो रहा है। सरसो के फूलों के पराग से मधुमक्खियों ने जो शहद बनाया है वह एक दम लिक्विड और सरसो के फ्लेवर का बना है। पिछले महीने मधु मक्खियों ने अरहर, धनियां और अन्य फूलों के पराग एकत्र किए थे, जिनसे रबीला और अरहर व धनिया के फ्लेवर में शहद निकला था। इसी तरह यहां पर सब्जियों और अन्य फूलों के पराग से बनने वाला शहर अलग फ्लेवर को होता है। दमयंती बताती हैं कि आश्रम में अलग-अलग फ्लेवर का शहद बनाने का प्रयोग सफल हो रहा है। आने वाले समय में इस तकनीक को किसानों के बीच साझा किया जाएगा, ताकि वे खेती के साथ ही मधुमक्खी पालन को अपनाकर अतिरिक्त आय का स्त्रोत विकसित कर सकें। उन्होंने बताया कि यह शहद पूरी तरह से आर्गेनिक भी है।
ऐसे तैयार होता है फ्रेम और डिब्बा :
मधुमक्खी पालन का काम देख रहे कृष्णाकांत उर्फ गोलू बताते हैं कि मधुमक्खी का सबसे पहला स्वरूप ड्रोंस का होता है। इसका जीवनकाल 55 दिनेां का होता है। जबकि इन ड्रोंस से बनने वाली रानी मक्खी का जीवनकाल तीन साल का होता है। यह ड्रोंस रॉयल जैली लाकर चार मधुमक्खियों में रखते हैं। फिर इनमें ५ से ६ दिन का गैप दिया जाता है। इनमें जो मधुमक्खी मेच्योर होती है उसमें से एक रानी मक्खी बनती है। बाकी को वह किल कर देते हैं। यह प्रक्रिया सतत रूप से चलती रहती है। रानी मक्खी तीन साल तक अपने फ्रेम का निरीक्षण करती रहती है। उन्होंने बताया कि मक्खी दो प्रकार की होती है। एक बाहर वाली और दूसरी अंदर वाले फ्रेम की। गांधी आश्रम में अंदर वाले फ्रेम की मक्खी से पूरी तरह आर्गेनिक शहद बन रहा है। उन्होंने बताया कि यह प्रयेाग इतना सफल हुआ है कि गांधी आश्रम में दो से बढ़कर तीन डिब्बे विकसित हो गए हैं।