इलाज के लिए उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती किया गया था। पुत्र पंकज ठाकरे ने बताया कि डॉक्टर इलाज की बजाय बार-बार जांच के लिए बोल रहे थे। जांच के बाद रिपोर्ट देखने की जगह दोबारा जांच के लिए लिख देते थे। भर्ती होने के तीसरे दिन हालत बिगडऩे पर वे आठ बार डॉक्टर के पास गए, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी तथा मौत के बाद डॉक्टर औपचारिकता निभाने पहुंच गए थे।
हमेशा मिला सिर्फ आश्वासन
जिला अस्पताल में लापरवाही के कई मामलों में कलेक्टर का ध्यान आकर्षित किया गया, लेकिन हर बार आश्वासन ही मिला है। ओपीडी कक्ष क्रमांक-१६ में हार्ट, बीपी, शुगर, वृद्धजन तथा गम्भीर रोगों से पीडि़त मरीजों को उपचार दिया जाता है। लेकिन इस ओपीडी से डॉक्टर हमेशा नदारत रहते हैं। इतना ही नहीं कई डॉक्टर निर्धारित समय से पहले ही ओपीडी छोडक़र घर चले जाते हैं।
जिला अस्पताल में लापरवाही के कई मामलों में कलेक्टर का ध्यान आकर्षित किया गया, लेकिन हर बार आश्वासन ही मिला है। ओपीडी कक्ष क्रमांक-१६ में हार्ट, बीपी, शुगर, वृद्धजन तथा गम्भीर रोगों से पीडि़त मरीजों को उपचार दिया जाता है। लेकिन इस ओपीडी से डॉक्टर हमेशा नदारत रहते हैं। इतना ही नहीं कई डॉक्टर निर्धारित समय से पहले ही ओपीडी छोडक़र घर चले जाते हैं।
बेवजह बीपी-शुगर की जांच
मरीजों के सवाल-जवाब से बचने के लिए डॉक्टर बेवजह बीपी तथा शुगर की जांच कराने का बोलते हैं। अस्पताल आने से पहले मरीज को पंजीयन कराने के लिए लम्बी कतार में खड़ा होना पड़ता है। इसके बाद ओपीडी में डॉक्टर के पास पहुंचते ही बीपी-शुगर की जांच कराने के लिए बोला जाता है। जहां फिर से लाइन लगानी पड़ती है। जब तक वह जांच कराकर लौटता है डॉक्टर ओपीडी से गायब हो जाते हैं। एेसे में मरीजों को उपचार नहीं मिल पाता है।
अधिकारी को दी है सूचना
ओपीडी कक्ष क्रमांक-१६ में डॉक्टर की लापरवाही की सूचना उच्चाधिकारियों को कई बार दी गई है। इसके बावजूद स्थिति जस की तस है।
डॉ. सुशील दुबे, आरएमओ, जिला अस्पताल