गर्भवती महिला का ब्लड प्रेशर बढऩे या दौरा पडऩे की स्थिति में सिजेरियन ऑपरेशन किया जाता है वर्ना दिमाग की नसें फट सकती हैं और लिवर व किडनी खराब हो सकती है।
छोटे कद वाली महिलाओं की कूल्हे की हड्डी छोटी होने के कारण बच्चा सामान्य तरीके से नहीं हो पाता।
ज्यादा घी व चिकनाई खाने से सर्जरी का खतरा नहीं रहता?
इसका सर्जरी से कोई संबंध नहीं है। लेकिन ज्यादा तला-भुना खाने से महिला के शरीर को नुकसान हो सकता है।
पहला बच्चा सिजेरियन हो तो दूसरा सामान्य नहीं होता?
ऐसे में सिजेरियन की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि दूसरी बार प्रसव पीड़ा के दौरान टांके फटने का डर रहता है।
सिजेरियन से मां व बच्चे के बीच का लगाव कम होता है?
मां व बच्चे पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। सर्जरी के फौरन बाद बच्चे को मां के पास रखा जाता है। वह उसे फीड करा सकती है।
सिजेरियन में लगे टांके ६-७ दिन में भरने लगते हैं लेकिन महिलाएं ज्यादा दर्द की वजह से चलती-फिरती नहीं है और उनका पेट बाहर आने लगता है। इससे बचने के लिए डॉक्टर एक हफ्ते के बाद ही वॉक और हल्के व्यायाम की सलाह देते हैं। कमरदर्द बच्चे को गलत पोश्चर में दूध पिलाने से हो सकता है। ऐसा होने पर डॉक्टर से संपर्क करें।
आमतौर पर ऑपरेशन के बाद घर की महिलाएं प्रसूता को टांकें पकने के डर से नहाने के लिए मना कर देती हैं, जो कि गलत है इससे संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए डॉक्टर द्वारा बताए अनुसार साफ-सफाई का ध्यान जरूर रखें।
इस दौरान लगाए गए टांके ६-७ दिन में भरने लगते हैं लेकिन करीब ६ महीने तक भारी वजन उठाने से बचना चाहिए। ये टांके जल्दी भरें इसके लिए मौसमी, नींबू जैसी विटामिन-सी वाली खट्टी चीजें खानी चाहिए।
ऑपरेशन के चार से पांच दिन बाद से महिला घर का काम कर सकती है लेकिन वजन उठाने संबंधी काम छह माह के बाद ही करें। नियमित दवाएं
डिलीवरी के बाद महिला को आयरन और कैल्शियम की दवाएं दी जाती हैं। इन्हें महिला को नियमित रूप से लेना चाहिए वर्ना कमरदर्द या जोड़ों की तकलीफ होने का खतरा रहता है।
मां बनने पर दालें, दही, टोफू, सोयाबीन, पनीर , बींस और अंकुरित अनाज जैसी प्रोटीन युक्त चीजों को डाइट में शामिल करना चाहिए।