समय पूर्व जन्मे शिशु के अंग पूर्ण रूप से विकसित न होने से कई दिक्कतें सामने आती हैं।
गर्भ में शिशु के फेफड़े ठोस होते हैं जिन्हें स्पंज बनने में ९ माह का समय लगता है। ठीक से सांस नहीं ले पाते।
प्रीमेच्योर शिशु का मस्तिष्क पूरी तरह से विकसित न होने से इनका रेस्पिेरेट्री सेंटर कमजोर रह जाता है। कई बार वे अपनी सांस रोक लेते हैं। साथ ही दिमाग की नसें फटने से बे्रन हेमरेज की आशंका बढ़ जाती है।
अविकसित आंतें दूध नहीं पचाती हैं।
खून की कमी से पीलिया की शिकायत हो सकती है।
एनआइसीयू में कब तक रखें बच्चे को
शिशु को उसके वजन के अनुसार तय समय तक एनआइसीयू में रखते हैं। ८०० ग्राम से कम वजनी बच्चों को २-३ माह के लिए, १२ सौ से १५ सौ ग्राम के कम वजन वालों को २०-३० दिन और १८ सौ से २५ सौ ग्राम से कम वजनी शिशु को ७-१५ दिन के लिए एनआइसीयू में रखते हैं।
चुनौतीपूर्ण देखभाल
गर्भ के बाहर मां के गर्भ जैसी देखभाल चुनौतीपूर्ण है। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद घर पर शिशु का खास ख्याल रखना होता है। कंगारू मदर केयर (बच्चे और मां का त्वचा से त्वचा का सीधा संपर्क) दें। कई परतों में कपड़े पहनाएं ताकि शरीर का तापमान थोड़ा गर्म रहे। पोषण का ध्यान रखने के लिए मां प्रचुर मात्रा में दूध, दलिया, खिचड़ी या अन्य पौष्टिक चीजें खाए ताकि स्तनपान के जरिए जरूरी तत्व शिशु तक पहुंच सके।
समयपूर्व जन्मे बच्चों को पोषण की काफी जरूरत होती है। ऐसे में २-२ घंटे के समय अंतराल में स्तनपान कराएं। जब तक शिशु का वजन दो किलो या इससे अधिक न हो जाए तब उसे न तो नहलाएं और न ही किसी प्रकार का टीकाकरण कराएं। शिशु रोग विशेषज्ञ के संपर्क में बने रहें।
डॉ. राकेश मिश्रा, शिशु रोग विशेषज्ञ, भोपाल