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कबीरधाम

आखिर क्या वजह है कि यहां नौ महीने में 500 मासूमों की हो गई मौत

आदिवासी बहुल जिला कबीरधाम बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नौ महीने में 500 शिशुओं ने यहा दम तोड़ दिया है।

कबीरधामJan 18, 2017 / 06:26 pm

आशीष गुप्ता

new born baby

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कबीरधाम. आदिवासी बहुल जिला कबीरधाम बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। जिले में शिशु मृत्यु दर खतरनाक हद तक बढ़ गई है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नौ महीने में 500 शिशुओं ने यहा दम तोड़ दिया है। मरने वाले बच्चों में 95 प्रतिशत बैगा आदिवासी हैं। कबीरधाम से यशंवत झारिया की रिपोर्ट…

जिले में शिशु मृत्यु दर पर लगाम नहीं लग पा रही है। इस वर्ष अप्रैल से दिसंबर के बीच ही अकेले पंडरिया विकासखंड में 150 बच्चों ने दम तोड़ दिया। यही हाल बोड़ला विकासखंड का भी है, जहां इस दौरान 149 बच्चें की मौत हुई है। कबीरधाम में 173 शासकीय स्वास्थ्य केंद्र हैं। लेकिन, इस वर्ष नौ माह के भीतर ही 500 शिशु दुनिया नहीं देख सके। इसमें सरकारी अस्पताल में शिशुओं की मृत्यु 90 फिसदी से अधिक है। इसमें सबसे अधिक मौत जन्म के 7 दिन के भीतर हुए हैं।

पंडरिया और बोड़ला विकासखंडों के वनांचल में आंकड़े काफी डरावने हैं, क्योंकि इन दोनों विकासखंडों में करीब 300 शिशुओं ने दम तोड़ा है। एेसा इसलिए कि जिला अस्पताल के अलावा अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में नवजात के लिए कोई सुविधा नहीं है। शासन-प्रशासन शासकीय स्वास्थ्य केंद्रों में सुरक्षित प्रसव कराने के लिए जोर दिया जाता है, लेकिन प्रसव के बाद शिशुओं की सुरक्षा भगवान भरोसे ही रहती है। सरकारी अस्पताल में सैकड़ों डॉक्टर, हजारों स्वास्थ्य कर्मचारी, लाखों दवाईयां और करोड़ों रुपए खर्च के बाद भी सैकड़ों शिशु हर वर्ष दुनिया नहीं देख पाते।

यहां आ रही मुख्य समस्या


शिशु मृत्यु दर का मुख्य कारण कुपोषण और असुरक्षित प्रसव है। अस्पताल में गर्भवती महिलाएं तो पहुंच जाती है, लेकिन अधिकतर मामलों में यह सामने आया है कि नौसिखिए नर्स प्रसव के दौरान लापरवाही बरतते हैं। जिला अस्पतला के लिए अलावा किसी भी स्वास्थ्य केंद्र में महिला विशेषज्ञ नहीं है। जिला मुख्यालय से अंतिम गांव 30 से 70 किमी तक की दूरी पर है। सुरक्षित प्रसव व नवजात की सुरक्षा के लिए प्राथमिक व उपस्वास्थ्य केंद्रों पर सुविधाएं नहीं हैं।

आंगनबाडि़यों के नहीं अपने भवन


आंगनबाडिय़ों के संचालन पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद हालत बिगड़ी हुई है। जिले में 244 आंगनबाडि़यों के अपने भवन नहीं हैं। अधिकतर केंद्र झोपड़ी, सामुदायिक भवन और किराए के कमरों में चल रहे हैं। यहां पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। 49 केंद्र झोपड़ी, 140 किराए के मकान और 55 सामुदायिक भवनों में चल रहे हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों में 0 से लेकर 5 वर्ष तक के 87,520 ब’चे नामांकित हैं। अधिकतर केंद्रों में न पर्याप्त खिलौने हैं और न ही पंखे।

कबीरधाम के सीएमएचओ डॉ. अखिलेश त्रिपाठी का कहना है कि इस वर्ष नौ माह के दौरान जिले में 500 शिशुओं की मौत हुई है। यह काफी चिंताजनक है। इसकी समीक्षा की गई है। इसके चलते ही वर्ष 2017-18 को नवजात शिशु वर्ष घोषित किया गया। पूरा फोकस अब नवजात शिशुओं पर ही रहेगा।

सुरक्षित नहीं प्रसव
12892 कुल प्रसव
12426 संस्थागत प्रसव
466 घर में प्रसव
500 शिशु मृत्यु

2016-17 वर्ष के आंकड़े


शिशुमृत्यु बोड़ला सलोहारा पंडरिया कवर्धा शहर
0-7 दिन के बीच 66 44 69 46 12
7-28 दिन के बीच 35 14 32 18 03
1 माह से 1 वर्ष 48 24 49 34 06
कुल 149 82 150 98 21

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