पापा गोद में तो लो, कैसे दिखते हो?
नीलांजना आज 44 बरस की हो
चुकी हैं, लेकिन आज भी वो अपने पिता के प्यार व दुलार को तरस रही हैं।
अहमदाबाद।नीलांजना आज 44 बरस की हो चुकी हैं, लेकिन आज भी वो अपने पिता के प्यार व दुलार को तरस रही हैं। वे अपने पापा को यह तक नहीं कह सकी कि पापा मुझे गोद में लो। उनके साथ का एहसास कैसा लगता है, नहीं पता। वे कैसे दिखते हैं? उनकी आवाज कैसी है? अपने पापा से किसी भी चीज के लिए वे जिद भी नहीं कर पाई।
44 वर्ष से यह तरस, यह इंतजार एक बेटी कर रही है जिसके पिता मेजर अशोक कुमार घोष 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाक जेल से अब तक नहीं लौट सके हैं। उनकी बेटी को आज भी अपने पिता का इंतजार है। इसके लिए वे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, संयुक्त राष्ट्र (यूएन), एमनेस्टी इंटरनेशनल, पाकिस्तान के पूर्व हुक्मरान परवेज मुशर्रफ के पास गुहार लगा चुकी हैं।
लेकिन उन्हें अब तक कोई जवाब नहीं मिला। वे केन्द्र में नई सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी पत्र लिख चुकी हैं लेकिन कहीं से कोई जवाब नहीं आया। गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश पर शुक्रवार को अपने वकील किशोर पाल के जरिए वह अपने पिता के मुआवजे की राशि लेने पुणे से अहमदाबाद पहुंची थी।
युद्धबंदियों के मामले में 15 को सुनवाई :
उधर, सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी जेलों में बंद 54 भारतीय युद्धबंदियों के मामले में आगामी 15 मई को सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने गत नवम्बर महीने में इन युद्धबंदियों की स्थिति रिपोर्ट पेश करने तथा इन्हें वापस लाए लाने की रूपरेखा बताने का निर्देश दिया था। वकील किशोर पाल के अनुसार अब तक केन्द्र सरकार ने इस संबंध में कोई जवाब पेश नहीं किया है।
गुजरात उच्च न्यायालय ने दिवंगत जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा की याचिका पर दिसम्बर 2011 में अपने एक ऎतिहासिक फैसले में केन्द्र सरकार से इन 54 भारतीय युद्ध बंदियों को नौकरी पर मानते हुए उनके परिजनों को 2 महीने के भीतर पूरा वेतन तथा उनकी सेवानिवृत्ति के सभी लाभ देने को कहा था, साथ ही इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के समक्ष उठाने को कहा था।
अमरीकी पत्रिका में प्रकाशित हुआ था फोटो
14 अप्रेल 1971 को जन्मीं नीलांजना बताती हैं कि उन्होंने चलना भी नहीं सीखा था कि उसी वर्ष दिसम्बर में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। उनके पिता पंजाब के फजिलका सेक्टर में कंपनी कमांडर के रूप में मोर्चा संभाल रहे थे। सीमा के आर-पार काफी सैनिकों की मौत हो चुकी थी। बाद में भारतीय सेना से एक टेलीग्राम आया, जिसमें उनके पिता के लिए “कार्रवाई में गुम, संभावित मृत्यु” की बात कही गई।
नीलांजना के अनुसार इसके बाद उनके घर वालों को लगा कि मेजर घोष नहीं रहे लेकिन युद्ध के कुछ ही दिनों बाद एक प्रतिष्ठित अमरीकी पत्रिका में मेजर घोष का फोटो प्रकाशित किया गया, जिससे यह पता चला कि वे पाकिस्तान की जेल में बंद हैं। तब से वर्ष 2000 तक उनके नाना व अन्य रिश्तेदार उनके पिता के बारे में खोज-खबर लेते रहे लेकिन कुछ भी हाथ नहीं लग सका।
15 वर्ष पहले नीलांजना ने खुद यह मुहिम आगे बढ़ाई लेकिन उन्हेंं भी अब तक कुछ भी नहीं मिल सका है, सिर्फ उन्हें इंतजार करना पड़ रहा है। नीलांजना कहती हैं कि अब तक की पूरी जिंदगी उन्होंने पापा के बिना गुजारी, उनकी कोई सक्रिय याद नहीं है, उनके पास उनकी सिर्फ फोटो है और इसके सहारे वे अब तक जीवन गुजार रही हैं।
उन्होंने कहा यह दर्द सिर्फ उनका ही नहीं, बल्कि वर्ष 1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान जेल में बंद उन 54 युद्धबंदियों के परिजनों का भी है जो उनके अपनों से नहीं मिल सके। उन्हें यह लगता है कि शायद वे बीमार होंगे या फिर उनके पापा उन्हें पहचान नहीं पाएंगे लेकिन आंखों में आंसू लिए नीलांजना कहती हैं कि उनकी इच्छा है कि वह उनके पापा के साथ कुछ दिन गुजारें।