script‘पंचाट के फैसले के खिलाफ अपील की स्वीकार्यता बरकरार’ | "Maintaining the admissibility of the appeal against the judgment of the Tribunal ' | Patrika News

‘पंचाट के फैसले के खिलाफ अपील की स्वीकार्यता बरकरार’

locationबैंगलोरPublished: Dec 09, 2016 11:36:00 pm

कावेरी जल बंटवारा विवाद में केंद्र सरकार को शीर्ष अदालत से
शुक्रवार को झटका लगा।  सर्वोच्च न्यायालय ने कावेरी जल विवाद पंचाट के
वर्ष 2007 के अंतिम फैसले के खिलाफ तीन राज्यों की ओर

bangalore news

bangalore news

बेंगलूरु. कावेरी जल बंटवारा विवाद में केंद्र सरकार को शीर्ष अदालत से शुक्रवार को झटका लगा। सर्वोच्च न्यायालय ने कावेरी जल विवाद पंचाट के वर्ष 2007 के अंतिम फैसले के खिलाफ तीन राज्यों की ओर से दायर अपील को सुनवाई योग्य करार दिया।

शीर्ष अदालत की तीन जजों की पीठ ने केंद्र सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि उसे अंतिम फैसले के खिलाफ सुनवाई या निर्णय देने का अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे अपीलों पर सुनवाई का संवैधानिक अधिकार और शक्ति है।


तीन सदस्यीय पीठ के जज दीपक मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अदालत पंचाट के फैसले के खिलाफ दायर-कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की अपीलों की स्वीकार्यकता बरकरार रखती है। इसके साथ ही पीठ ने कहा कि अंतरिम आदेश जारी रहेगा। पीठ ने फैसले के खिलाफ दायर अपीलों को 15 दिसम्बर को दोपहर 3 बजे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए। गौरतलब है कि 19 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने पंचाट के फैसले के खिलाफ तीनों राज्यों की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिकाओं की स्वीकार्यकता पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

तमिलनाडु को मिलता रहेगा पानी
अदालत के ताजा आदेश के मुताबिक कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए रोजाना 2 हजार क्यूसेक पानी छोडऩा होगा। 19 अक्टूबर को अंतरिम आदेश में शीर्ष अदालत ने कर्नाटक को अगले आदेश तक रोजाना दो हजार क्यूसेक पानी तमिलनाडु को देने के लिए कहा था। पीठ में जस्टिस मिश्रा के अलावा जस्टिस अमिताव रॉय और जस्टिस ए एम खानविलकर भी हैं।
केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि संसद से पारित अंतर राज्यीय जल विवाद कानून 1956 और संविधान के अनुच्छेद 262 (2) के प्रावधानों के मुताबिक शीर्ष अदालत को पंचाट के फैसले के खिलाफ सुनवाई या निर्णय देने का अधिकार नहीं है। केंद्र की दलील थी कि पंचाट का फैसला डिक्री के समान है लिहाजा वही अंतिम है।

1956 के कानून के धारा 6 (2) का हवाला देते हुए केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत में दलील दी थी कि अगर पंचाट के फैसले को लागू करने कार्ययोजना बनाने का काम सरकार का है। कार्ययोजना तैयार करने के बाद उसे मंजूरी के लिए संसद में पेश किया जाएगा। केंद्र की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता मुकुल रहतोगी ने दलील थी कि पंचाट सुप्रीम कोर्ट के समकक्ष ही काम करता है लिहाजा उसके फैसले को शीर्ष अदालत का निर्णय ही माना जाना चाहिए।

अगर शीर्ष पंचाट के फैसले के खिलाफ राज्यों की अपील स्वीकार करेगी तो वह शीर्ष अदालत में ही उसके फैसले को चुनौती देने जैसा होगा। मामले में अपील करने वाले तीनों राज्यों ने केंद्र सरकार की दलील का विरोध करते हुए कहा कि कोई भी संसदीय कानून शीर्ष अदालत को अपीलों की सुनवाई करने से नहीं रोक सकता है। न्यायिक समीक्षा संविधान की मूल ढांचे का हिस्सा है। हालांकि, पुदुुचेरी ने केंद्र सरकार के रूख का समर्थन किया था।

गौरतलब है कि सितम्बर-अक्टूबर में शीर्ष अदालत ने कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच पानी के बंटवारे को लेकर कई आदेश दिए थे जिसके कारण कर्नाटक में कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो गई थी। बेंगलूरु में हिंसक प्रदर्शन के बाद कुछ थाना क्षेत्रों में कफ्र्यू भी लगाना पड़ा था। केंद्र की मध्यस्थता में दोनों राज्यों के बीच वार्ता विफल होने के बाद अदालत के निर्देश पर गठित विशेषज्ञ समिति ने दोनों राज्यों की स्थिति का जायजा भी लिया था।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो