scriptसार्क उपग्रह की राह में कई रोड़े | SAARC several obstacles in the way of satellite | Patrika News

सार्क उपग्रह की राह में कई रोड़े

locationबैंगलोरPublished: Oct 05, 2015 12:04:00 am

 दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय
सहयोग संगठन (सार्क) के सदस्य देशों के लिए प्रस्तावित “सार्क उपग्रह” का प्रक्षेपण
उतना आसान नहीं है जितनी आसानी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा की थी

SAARC satellite

SAARC satellite

बेंगलूरू। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के सदस्य देशों के लिए प्रस्तावित “सार्क उपग्रह” का प्रक्षेपण उतना आसान नहीं है जितनी आसानी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा की थी।

खुद सार्क देश इस महत्वाकांक्षी परियोजना की राह में रोड़े अटका रहे हैं। वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के अनुसार सार्क देशों में कुछ अनिश्चितता की स्थिति है। वे सवाल उठा रहे हैं कि आखिर भारत क्यों इतना पैसा उनकी उपग्रह क्षमता बढ़ाने पर खर्च करना चाहता है। अभी तक अंतरिक्ष के क्षेत्र में पड़ोसियों के लिए उसका रूख सुस्त था जबकि चीन ने श्रीलंका के लिए वर्ष 2013 में ही एक संचार उपग्रह का प्रक्षेपण कर दिया था। वहीं बांग्लादेश के लिए नए उपग्रह प्रक्षेपण के लिए अन्तरराष्ट्रीय बोली में भी उसने भाग लिया। वहीं,पाकिस्तान का संबंध इन देशों की तुलना में चीन से कहीं अधिक गहरा है।

हालांकि, पिछले 22 जून को सार्क देशों के प्रतिनिधियों ने इस परियोजना और भारत के प्रस्ताव पर गहराई के साथ विचार किया और अंत में फैसला हुआ कि भारत अन्तरराष्ट्रीय दूरसंचार संगठन (आईटीयू) में इस उपग्रह के प्रक्षेपण का पंजीकरण कराएगा। आईटीयू ही भू-स्थैतिक उपग्रहों के लिए आर्बिट स्लॉट और फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम उपलब्ध कराता है।

सहमति पत्र का इंतजार
निर्णय के मुताबिक आईटीयू में पंजीकरण के लिए भारत ने सभी देशों से सहमति पत्र के लिए सूचना भेजी। नियमों के मुताबिक पंजीकरण के लिए सभी देशों का आधिकारिक सहमति पत्र आवश्यक है। भारत ने सभी सार्क देशों को पत्र भेजा और लगभग ढाई महीने बीत चुके हैं मगर श्रीलंका को छोड़कर किसी भी देश ने सहमति पत्र नहीं भेजा है। अधिकारियों के मुताबिक सार्क उपग्रह के प्रति नेपाल, भूटान और मालदीव का रूख सकारात्मक है मगर अन्य देशों ने इससे जुड़े कई सवाल खड़े किए हैं। इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उन देशों पर कोई अतिरिक्त वित्तीय बोझ नहीं आ रहा है फिर भी उनके संशय समझ से परे हैं। भारत इस परियोजना पर 235 करोड़ रूपए खर्च करेगा।

इसके तहत 12 ट्रांसपोंडरों वाला उपग्रह तैयार किया जाएगा और सभी सदस्य देशों को एक-एक ट्रांसपोंडर दिया जाएगा। अब यह उन पर है कि वे या तो इसे स्वीच ऑन करें अथवा स्वीच ऑफ। उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए दिसम्बर 2016 की समय सीमा तय की गई है। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि उपग्रह का प्रक्षेपण सार्क दिवस 8 दिसम्बर को हो।

पाक अटका रहा रोड़े
अधिकारियों के मुताबिक पाकिस्तान इस उपग्रह की राह में रोड़े अटका रहा है जो कि उम्मीदों के अनुरूप है। मगर अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे मित्र देश भी सहयोग नहीं कर रहे हैं।


अफगानिस्तान को उपग्रह क्षमता की फिलहाल जरूरत भी नहीं है क्योंकि पिछले ही वर्ष उसे ईयू टेलीसैट का एक हिस्सा लीज पर लिया है।

वहीं बांग्लादेश अपना पहला संचार उपग्रह दिसम्बर 2017 में प्रक्षेपित करने की योजना पर चल रहा है। बांग्लादेश की यह भी योजना थी कि वह अपने उपग्रह की अतिरिक्त क्षमता भूटान और नेपाल को लीज पर देकर अच्छी कमाई करेगा।

सार्क उपग्रह के जरिए मुफ्त में ट्रांसपोंडर सेवाएं देने की भारतीय योजना उनकी उम्मीदों पर पानी फेर देगा। हालांकि, भारत ने बांग्लादेश से कहा है कि उनके उपग्रह का प्रक्षेपण एक साल बाद होगा तब तक वह सार्क उपग्रह की सेवाओं का लाभ उठा सकता है क्योंकि आपदा किसी उपग्रह प्रक्षेपण का इंतजार नहीं करती।

वहीं पाकिस्तान ने उपग्रह में रूचि तो दिखाई मगर वह चाहता है कि सब कुछ सार्क की प्रक्रियाओं के अनुरूप हो। अगर इस परियोजना में सार्क सचिवालय को शामिल किया जाता है तो इसमें अनुचित और अत्यधिक विलम्ब होगा। भारत चाहता है कि यह परस्पर और द्विपक्षीय संबंधों के आधार पर हो। अधिकारियों के मुताबिक अगर आईटीयू पंजीकरण में देरी होती है तो उपग्रह नेटवर्क के डिजाइन मानकों को अंतिम रूप देने में विलम्ब होगा।
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