कागजों में ही जम गया खून
जिले में ढाई वर्ष पूर्व आपात
स्थितियों में तत्काल रक्त मुहैया कराने के उद्देश्य से सात रक्त संग्रहण
बाड़मेर। जिले में ढाई वर्ष पूर्व आपात स्थितियों में तत्काल रक्त मुहैया कराने के उद्देश्य से सात रक्त संग्रहण इकाइयां स्थापित की गई थी, लेकिन सरकारी उदासीनता एवं चिकित्सकों की कमी के चलते यह सुविधा मूर्त रूप नहीं ले पाई है।
जिले के विशाल भौगोलिक क्षेत्र में दुर्घटनाओ या आपात स्थितियो में जरूरतमंद को रक्त की आवश्यकता पड़ने पर उसे 150 से 200 किमी की दौड़ नहीं लगानी पड़े, इसके लिए रक्त इकाइयां शुरू की गई। लेकिन यहां के बाशिंदों के लिए यह सुविधा अभी भी सपना ही है। नतीजतन प्रतिवर्ष दर्जनों मरीज आपातकालीन स्थितियो में खून के अभाव में दम तोड़ रहे हैं।
यह है योजना
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत ढाई वष्ाü पूर्व राज्य सरकार से बाड़मेर जिले में सात रक्त संग्रहण इकाइयां स्थापित करने के लिए चिकित्सा विभाग को बजट मुहैया करवाया था। इसके तहत शिव, सिणधरी, चौहटन, धोरीमन्ना, सिवाना, समदड़ी एवं बायतु मे यह इकाइयां स्थापित की गई। लेकिन यह योजना कागजों में सिमट कर रह गई।
इसलिए है आवश्यकता
जिले में दस तहसील व सत्रह खण्डों पर एक भी रक्त बैंक नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसव के लिए आने वाली कुछ महिलाएं खून के अभाव मे दम तोड़ देती है। दूसरी तरफ मेगा हाईवे व राष्ट्रीय राजमार्ग पर आए दिन होने वाली दुर्घटनाओ में पीडितों को रक्त की जरूरत रहती है। जिले की विकट भौगोलिक परिस्थितियो के मद्देनजर शिव व चौहटन क्षेत्र के दूर-दराज के कई गांवों मे रहने वाले पीडितों को एक बोतल खून के लिए सौ से दो सौ किलोमीटर का सफर तय कर अस्पताल पहुचंना पड़ता है।
नाकारा हो रहे उपकरण
चिकित्सा विभाग की ओर से इन सात स्थानों पर रक्त बैंक स्थापित करने के लिए सरकारी स्तर पर व्यवस्था की गई। ब्लड को फ्रीज करने के लिए कई मंहगे उपकरण भी खरीदे गए, लेकिन वे धूल फांक रहे हैं। जब तक विभाग यह कार्य प्रारम्भ करेगा, तब तक इनके नाकारा होने से इनकार नहीं किया जा सकता।
स्टाफ के बिना लाइसेंस नहीं
जिले में रक्त बैंक के लिए चिकित्सा अधिकारियों, लिपिक व प्रयोगशाला सहायकों की कमी के कारण लाइसेन्स प्रक्रिया में समस्या आ रही है। डॉ. सुनिल कुमार सिंह बिष्ट, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी