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बीकानेर

मोक्षधाम पर भी जाति बंधन!

इंसानों की नहीं बल्कि मोक्षधाम यानी
श्मशान भूमियों की भी जाति होती है। मानवीय सोच ने आदमी को

बीकानेरJul 04, 2015 / 03:24 am

मुकेश शर्मा

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बीकानेर।इंसानों की नहीं बल्कि मोक्षधाम यानी श्मशान भूमियों की भी जाति होती है। मानवीय सोच ने आदमी को अलग-अलग जाति-समाज, धर्म व संप्रदाय में बांट दिया। वो इन्हीं के बंधन में और जाति समाज की दीवारों के भीतर अपनी जिदंगी बिताता है।


मृत्यु के बाद इन बंधनों से छुटकारा मिलने की उम्मीद रहती है लेकिन नहीं। शरीर से आत्मा निकल जाने पर भी जाति धर्म के ये बंधन पीछा नहीं छोड़ते। यही वजह है कि हर आदमी का अंतिम संस्कार भी उसकी खुद की जाति व समाज के श्मशान घाट में ही होती है। राजस्थान उच्च न्यायालय ने हाल ही में निर्देश जारी कर जयपुर के मोक्षधामों को जाति बंधन से मुक्त कराने का रास्ता खोला है। मरूनगरी बीकानेर में भी यही हाल है। यहां हर जाति, समाज के अलग-अलग तीन दर्जन से अधिक मोक्षधाम बने हुए हैं।



उच्च न्यायालय के यह निर्देश

राजस्थान उच्च न्यायालय ने जयपुर नगर निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को निर्देश दिए है कि श्मशान भूमियों को जातिगत आधार पर बांटने वाले बोर्ड दो सप्ताह में हटाए जाएं। साथ ही चार सप्ताह में सभी श्मशान स्थलों पर यह लिखवाया जाए कि कोई भी बिना जातिभेद के यहां अपने परिजन का अंतिम संस्कार करने आ सकता है।

बीकानेर का दुर्भाग्य


श्मशान भूमि सभी जाति और समाज के एक ही होने चाहिए। अलग-अलग नहीं। बीकानेर की
विडम्बना है कि सभी जाति के श्मशान घाट अलग-अलग हैं। जयपुर में सभी श्मशान घाटों को एक करने के लिए माननीय उच्च न्यायालय की ओर से जारी आदेश का अध्ययन किया
जाएगा। बीकानेर में भी इस आदेश को लागू करवाने के लिए नगर निगम प्रशासन विभिन्न समाज के अध्यक्षों व प्रबुद्धजनों से बात करेगा। इस मसले पर उच्च न्यायालय का आदेश सराहनीय है। नारायण चौपड़ामहापौर, नगर निगम, बीकानेर

मोक्ष की कोई जाति नहीं


मृत्यु यानी मोक्ष की कोई जाति नहीं है, उसी प्रकार मोक्षधामों को भी जातिबंधन से मुक्त रखना चाहिए। वर्तमान परिप्रेक्ष्य को देखते हुए श्मशान भूमियों को सर्वसमाज के लिए कर दिया जाना चाहिए। पश्चिमी राजस्थान की पावन धरा पर तो बाबा रामदेव ने छह शताब्दी पूर्व ही सामाजिक समरता का संदेश दिया था। बनारस के गंगा घाट पर स्थित मोक्षधाम पर कोई जातिगत भेदभाव नहीं है। हम सभी भारतवासी है और भारत की भूमि सभी की मां है। इसे लेकर न्यायालय का निर्णय स्वागत योग्य है। संवित सोमगिरीअधिष्ठाता, शिवबाड़ी मठ

मोक्षधाम जाति बंधन से मुक्त होने चाहिए। हमारे समाज के किसी भी श्मशान भूमि पर जाति बंधन लागू नहीं है। कोई भी व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर अपने परिजन का अंतिम संस्कार कर सकता है। डॉ. गोपाल जोशी, अध्यक्ष, अखिल भारतीय पुष्टिकर सेवा परिष्ाद


वक्त की धारा के साथ-साथ मानव समाज को भी जातिगत रूढियों को त्यागना चाहिए। दिवंगत व्यक्ति के शरीर की कोई जाति नहीं होती, हिंदू धर्म रीति के अनुसार अंतिम संस्कार वाले मोक्षधामों को जाति बंधन से मुक्त किया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय के आदेश को बीकानेर में भी लागू करवाया जाए। मोहनदान उज्जवल, अध्यक्ष, चारण सभा, बीकानेर
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