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कार्य मंत्रणा समिति में विपक्षी दलों से मशविरा नहीं

locationचेन्नईPublished: Jul 22, 2016 11:06:00 pm

डीएमके कोषाध्यक्ष एम. के. स्टालिन का आरोप है कि बजट सत्रावधि तय करते वक्त विधानसभाध्यक्ष ने विपक्षी

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चेन्नई।डीएमके कोषाध्यक्ष एम. के. स्टालिन का आरोप है कि बजट सत्रावधि तय करते वक्त विधानसभाध्यक्ष ने विपक्षी दलों से मशविरा नहीं किया। गौरतलब है कि सत्र की अवधि तय करने का अधिकार विधानसभा की कार्य मंत्रणा समिति का है जिसकी अध्यक्षता स्पीकर करते हैं और इसकी बैठक में विपक्षी दलों से भी चर्चा की जाती है।


कोलत्तूर क्षेत्र के विधायक और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष एम. के. स्टालिन ने शुक्रवार को अपने क्षेत्र का अचानक दौरा किया। वे जी. के. एम. कॉलोनी स्थित सरकारी हायर सेकण्डरी स्कूल गए। वहां स्कूल के प्रधानाचार्य और शिक्षकों से वार्ता की। उन्होंने स्कूल के सफलता प्रतिशत, विद्यार्थियों की और शिक्षकों की संख्या तथा बुनियादी सुविधाओं के बारे में जाना। इस दौरान उनको पता चला कि स्कूल में शिक्षकों की कमी है।

स्टालिन ने फिर स्कूल में संचालित कक्षाओं और पोषाहार केंद्रों का अवलोकन भी किया। वे विद्यार्थियों से भी मिले। स्टालिन वहां से गौतमपुरम जमालिया स्थित झुग्गी उन्मूलन बोर्ड की कॉलोनी में गए और उनकी समस्याएं सुनी। स्थानीय लोगों ने उनको ज्ञापन दिए और पुराने मकानों की मरम्मत कराने की मांग की।
इसके बाद पत्रकारों से वार्ता में स्टालिन ने कहा, डीएमके शासनकाल में इस स्कूल में हजारों विद्यार्थी पढ़ते थे, लेकिन अब केवल 410 विद्यार्थी ही पढ़ रहे हैं। स्कूल का परीक्षाफल भी घटा है। इस स्थिति में बदलाव आना चाहिए। यहां कुल 9 अध्यापक और 18 अध्यापिकाएं हैं। स्कूल में स्टाफ की कमी है जिसे बढ़ाने के उपाय किए जाने चाहिए।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में हमारे विचारों को सुना नहीं जाता और यहां तक कि बोलने का अवसर ही नहीं दिया जाता इस वजह से हमने वाकआउट किया। अमूमन गृह विभाग के लिए दो दिनी बहस होती है लेकिन केवल एक ही दिन आवंटित हुआ है। इसी तरह लोक निर्माण विभाग और हाईवे विभाग की अनुदान मांगों पर चर्चा के लिए भी एक-एक दिन आवंटित होना चाहिए लेकिन दोनों विभागों पर चर्चा को एक ही दिन तक सीमित कर दिया गया है। स्थानीय प्रशासन विभाग बड़ा महकमा है लेकिन इस पर भी एक दिन में बहस होनी है। फिलहाल जो कुछ भी किया जा रहा है वह जल्दबाजी में है। विपक्षी दलों से चर्चा किए बिना सत्रावधि और विभागीय अनुदानों मांगों की समयावधि तय कर दी गई। अगर ऐसा ही करना था तो कार्य मंत्रणा समिति की बैठक बुलाने की जरूरत ही नहीं थी। स्पीकर स्वयं इस पर फैसला कर सकते थे।
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