पिछले 10 वर्षों में देश के करीब आधा दर्जन बड़े अस्पताल समूह
प्रदेश में करीब 1500 करोड़ रुपए का निवेश (प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष) कर चुके
हैं। बावजूद इसके प्रदेश अबतक मेडिकल टूरिज्म का केंद्र नहीं बन सका है।
अधिकांश अस्पताल विदेशी तो दूर देश के दूसरे राज्यों के मरीजों को भी
आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं। ब्रांड, नाम व उच्च स्तरीय सुविधाओं के साथ
नामी डॉक्टरों की सुविधाओं की बजाय मात्र साफ-सफाई जैसी बातों पर ही ध्यान
दिया जा रहा है।
नतीजा यह है कि राजधानी का एक भी बड़ा अस्पताल मेडिकल
टूरिज्म केन्द्र के रूप में विकसित नहीं हो सका है। अभी शहर में हरियाणा,
उत्तरप्रदेश, बिहार सहित एेसे प्रदेशों के मरीज अधिक आ रहे हैं, जहां
राजस्थान के मुकाबले ज्यादा चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध नहीं है।
जोड़-कूल्हा प्रत्यारोपण
पहले
अहमदाबाद और अन्य प्रमुख शहरों में जाते थे, अब जयपुर में सभी तरह के एेसे
प्रत्यारोपण उपलब्ध, लेकिन बाहरी मरीज यहां अभी भी बमुश्किल 5 से 10 फीसदी
ही।
ह्दय की बाईपास सर्जरी
पहले जयपुर में दो- तीन केन्द्र थे, लेकिन अब करीब 15 केन्द्रों पर यह सुविधा, लेकिन देशी विदेशी मरीज इसके भी कुल मरीजों के दस फीसदी के आस पास ही
किडनी प्रत्यारोपण
पांच साल पहले एसएमएस और इससे पहले एक निजी अस्पताल में यह प्रत्यारोपण होता था, अब करीब आधा दर्जन केन्द्रों को अनुमति, लेकिन इसका टूरिजम भी 10 फीसदी से ज्यादा नहीं।
इन सुविधाओं में तो अब भी छूट रहे हैं पसीने
लिवर
प्रत्यारोपण : देश के अन्य हिस्सों और विदेशों से मरीज आना तो दूर की बात
अभी तक इसकी शुरूआत ही नहीं हो सकी है। एसएमएस सहित महात्मा गांधी अस्पताल
में इसकी तैयारी शुरू जरूर हुई है। लेकिन बाहर के मरीज जुटाने में लंबा समय
लग सकता है।
हृदय प्रत्यारोपण : अभी इसका एक ही केस राजधानी के एक निजी अस्पताल में उपलब्ध है।
उच्च स्तरीय नामी डॉक्टरों की सेवाओं व व्यवस्थाओं से युक्त क्रॉस सब्सिडी मॉडल के अस्पतालों से ही राज्य मेडिकल हब बन सकता है।
डॉ.अशोक पानगडि़या, पूर्व कुलपति मेडिकल यूनिवर्सिटी एवं न्यूरोलोजिस्ट
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