नई दिल्ली. तमिलनाडु की सीएम जे जयललिता के निधन के बाद द्रविड़ राजनीति दांव पर है। 49 वर्षों से राज्य में सिर्फ दो पार्टियोंं अन्नाद्रमुक और द्रमुक की ही सरकार रही है। भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों का राज्य में कोई खास वजूद नहीं रहा है।
द्रमुक प्रमुख करुणानिधि भी काफी बुजुर्ग (92) हो चुके हैं, ऐेसे में जया के जाने के बाद तमिलनाडु में राजनीतिक शून्यता की स्थिति पैदा हो गई है। पनीरसेल्वम भले ही राज्य के नए सीएम बन गए हैं, मगर संगठन की कमान जया की करीबी शशिकला के ही हाथों में मानी जा रही है।
ऐसे में नए सीएम को पार्टी के भीतर से चुनौतियां मिलना तय माना जा रहा है। उधर, भाजपा और कांग्रेस भी अन्नाद्रमुक को अपने खेमे में लाने की जुगत में जुट गई हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा है कि शशिकला अभी संगठन में महामंत्री से ही संतुष्ट रहने वालीं नहीं हैं। वह बेहद महत्वाकांक्षी हैं। उनका कोई राजनीतिक दृष्टिकोण नहीं हैं। पनीरसेल्वम शायद ही कुछ कर सकें। ऐसे में अन्नाद्रमुक विभाजन की ओर जा सकती है।
शशिकला बन सकती हैं।पार्टी की प्रमुख
क यास हैं कि अन्नाद्रमुक की कमान पनीरसेल्वम के बजाय जया की खास सलाहकार रहीं 59 वर्षीय शशिकला के ही हाथों में ही रहेगी। पार्टी को फूट से बचाने को ही शशिकला को इसकी कमान दी जा सकती है। हालांकि वर्चस्व को लेकर दोनेां में विवाद हो सकता है। कहा जा रहा है कि पनीरसेल्वम सीएम रहेंगे, लेकिन सारे अहम फैसले शशिकला ही लेंगी।
2011 में जहर देने का आरोप लगा था
2011 में आरोप लगा कि शशिकला ने पति नटराजन को सीएम बनाने के लिए जया को धीमा जहर देकर मारने की कोशिश की। इसके बाद जया ने शशिकला को घर और पार्टी से निकाल दिया। हालांकि बाद में अपना लिया।
117.13 करोड़ की मालकिन थीं अम्मा
45.04 करोड़ -चल संपत्ति
72.09- करोड़ अचल संपत्ति
400 करोड़ से ज्यादा की कोडानाडु में 800 एकड़़ में चाय बगान। सीरवायी की प्रॉपर्टी।
आंकड़े 2015 में चुनाव आयोग को हलफनामे के मुताबिक
नए सीएम सेल्वम के लिए चुनौती…
सत्ता के दो केंद्र होने का खतरा।
शशिकला के हाथों में कमान।
शेष कार्यकाल पूरा करना।
कई विधायक पसंद नहीं करते।
पाटी में विद्रोह पनप सकता है।
जयललिता जैसी छवि नहीं होना।
पार्टी टूटने का खतरा।
‘इंतजार करो, देखो’ नीति पर कांग्रेस
अजीत मैंदोला
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के बाद राज्य में होने वाले राजनीतिक बदलावों पर कांग्रेस की भी गहरी नजर है। लेकिन फिलहाल अभी वहां पर किसी प्रकार के बड़े बदलाव के आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं। इसलिए कांग्रेस इंतजार करो और देखो की नीति पर चल रही है।
जानकार मान रहे हैं कि जयललिता की बीमारी के दौरान केंद्र की मोदी सरकार ने अन्नाद्रमुक की राजनीति में अपनी पैठ बनाने में सफलता पाई है।
प्रधामनंत्री मोदी के जयललिता का करीबी होने का उन्हें लाभ मिला है। इसलिए अन्नाद्रमुक का झुकाव राजग की तरफ ही रहने वाला है। इसलिए कांग्रेस भी जल्दी भी नहीं है।
दअरसल कांग्रेस की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वहां पर उसका संगठन तो है, लेकिन इस हालत में नहीं है कि अपने दम पर राजनीति कर सके। उसके कुल 8 विधायक हैं। इसके साथ एक दशक से भी ज्यादा समय से कांग्रेस और द्रमुक साथ-साथ राजनीति कर रहे हैं। तमिलनाडु से सांसद का चुनाव लड़ चुके कांग्रेस मीडिया विभाग के सचिव एसवी रमणी कहते हैं कि अन्नाद्रमुक के पास बहुमत है इसके साथ वहां पर चुनाव के लिए साढ़े चार साल हैं ऐसे में अभी कुछ नहीं होने जा रहा है। लेकिन यह देखना होगा कि मौजूदा नेतृत्व अन्नाद्रमुक को कब तक एकजुट रख सकता है।
क्योंकि जयललिता जैसा करिश्माई नेता अब उनके पास नहीं है, जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो द्रमुक हमारा घटक दल है और अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। दरअसल जानकार भी मान रहे हैं कि अन्नाद्रमुक में अभी फिलहाल कुछ नहीं होने जा रहा है। जयललिता के बीमार होने के बाद सबसे बड़ा बदलाव यह देखने को मिला कि शशिकला नटराजन फिर से अन्नाद्रमुक की राजनीति में सक्रिय हो गई हैं।
माना जा रहा है कि वह जल्दी ही पार्टी की महासचिव बना दी जाएंगी। जयललिता के निधन के बाद मुख्यमंत्री बने पनीरसेल्वम से भी उनके ठीक संबंध बताए जाते हैं। सूत्रों की मानें तो इस बीच इन दोनों नेताओं की केंद्र की मोदी सरकार के साथ नजदीकियां बढ़ी हैं। इसलिए माना जा रहा है कि अभी कोई पार्टी को तोडऩे की कोशिश नहीं करेगा। इनमें एक वरिष्ठ नेता पणनी सामी हैं जो कभी देर सवेर नाराजगी व्यक्त कर सकते हैं ।लेकिन वह भी तभी करेंगे जब केंद्र और राज्य के बीच संबंधों में खटास आएगी। इसलिए कांग्रेस के सामने सिवाए इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता।