धरती बचाने को 134 विकासशील देश एकजुट हो गए हैं। इन देशों के समूह ने पेरिस में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान प्रस्तावित समझौते को अपना समर्थन दे दिया है।
धरती बचाने को 134 विकासशील देश एकजुट हो गए हैं। इन देशों के समूह ने पेरिस में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दौरान प्रस्तावित समझौते को अपना समर्थन दे दिया है। इस समझौते में दुनिया भर के तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के आयोजकों ने शनिवार को इस समझौते का कुछ ब्यौरा जारी किया है। फ्रांस के विदेश मंत्री लौरां फाबियुस ने कहा कि यह ‘एक निष्पक्ष और कानूनी तौर पर बाध्यकारी समझौता‘ है। उन्होंने कहा कि इससे दुनिया के तापमान में वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने में मदद मिलेगी। अगर इसे मंज़ूरी मिल गई तो ये ऐतिहासिक होगा।
फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने इस समझौते को अभूतपूर्व बताया है और अन्य देशों से इसके मसौदे को अपनाने की अपील की है। वहीं संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने कहा कि अगर देशों को अपना हित करना है, तो उन्हें वैश्विक हित के लिए आगे बढऩा होगा।
उन्होंने कहा, ‘प्रकृति हमें संकेत भेज रही है। सभी देशों के लोग आज जितने भयभीत पहले कभी नहीं रहे। हमें अपने घर को बचाने के साथ उसे संभालना भी होगा।‘
पेरिस की बैठक में करीब 200 देश हिस्सा ले रहे हैं, जो एक ऐसा मसौदा तैयार करने की कोशिश में थे, जो 2020 से लागू होगा। हालांकि सभी देशों को अभी यह तय करना है कि वो यह मसौदा अपनाएंगे या नहीं। अगर देश चाहें तो इस पर आपत्ति दर्ज करा सकते हैं।
भारत ने किया मसौदे का स्वागत
भारत ने इस मसौदे का स्वागत करते हुए इसे विकासशील देशों के हित में बताया है। भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने समझौते को संतुलित बताते हुए कहा कि डील में विकसित और विकासशील देशों के बीच के अंतर को समझा गया है।
उन्होंने कहा, ‘हम इस बात से खुश हैं कि जलवायु संबंधी अंतिम समझौते के मसौदे में भारत की चिंताओं को जगह दी गई।‘ उन्होंने यह भी कहा कि इसमें रहन-सहन के भारतीय सिद्धांत को जगह मिली है और पर्यावरण संरक्षण की ज्यादा जिम्मेदारी अमीर देशों पर डाली गई है।
100 बिलियन डॉलर का फंड
समझौते में इसके अलावा विकासशील देशों को पर्यावरण से जुड़ी समस्या से निपटने के लिए हर साल 100 बिलियन डॉलर के फंड की व्यवस्था की गई है। ये फंड विकासशील देशों के लिए 2020 से उपलब्ध होगा।