नई दिल्ली. जिला जजों की भर्ती के लिए अब एक परीक्षा आयोजित की जाएगी। दरअसल केंद्र सरकार ने जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए ऑल इंडिया जुडिशल सर्विसेज (एआईजेएस) गठित करने के प्रस्ताव पर विचार शुरू कर दिया है। इस प्रस्ताव के मुताबिक, जिला जजों की नियुक्ति एक परीक्षा के जरिये होनी चाहिए, जिसका आयोजन यूपीएससी करेगा। कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने अपने मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ प्रस्तावित एआईजेएस पर दो चरणों में मीटिंग की है। उन्होंने उन लोगों को विस्तृत प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया है, जिसे कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। जिला न्यायाधीश समेत अधीनस्थ न्यायपालिका में जजों की कम से कम 4,400 रिक्त पद हैं।
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए अलग से संगठन की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि क्या संविधान में संशोधन के बिना ये संभव है? क्या कोर्ट संविधान से अलग ये आदेश दे सकता है कि एक ऐसा संगठन बने जिसमें न्यायपालिका या सरकार का कोई नुमाइंदा न हो? दरअसल वकीलों की एक संस्था ने जनहित याचिका में कहा था कि जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता हो। सिर्फ कोलेजियम से ही नियुक्ति न हो।
अब तक यह है सिस्टम…
मौजूदा सिस्टम में पहले युवा जज अधीनस्थ न्यायपालिका में मजिस्ट्रेट के तौर पर जॉइन करते हैं और जिला जज बनने में कम से कम 10 साल लग जाते हैं। शुरू में सचिवों की कमिटी ने उच्च न्यायपालिका में प्रस्तावित एआईजेएस के माध्यम से भर्ती का कोटा 50 फीसदी तक करने का सुझाव दिया था।
कोर्ट में दलील देगी सरकार, एक साथ तीन तलाक शरीयत के अनुसार नहीं
मोदी सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष में खड़ी होती नजर आ रही है। इसी कवायद में सरकार तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील पेश करेगी। केंद्र सरकार का तर्क है कि पाकिस्तान, सऊदी अरब सहित 20 इस्लामिक देश अपने खुद के वैवाहिक कानून का पालन करते हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड का उल्लेख करते हुए केंद्र ने दलील पेश की है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की याचिका में कहा गया है कि तीन तलाक शरीयत के ही अनुसार पवित्र है, पूरी तरह से गलत है। इससे मौलिक अधिकारों का हनन होता है, जो भारत में नहीं होना चाहिए।
शियाओं ने कहा, बंद हो प्रथा
अखिल भारतीय शिया पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक के विरोध में है। उसका कहना है कि वे सुन्नी समुदाय को इस बारे में समझाएंगे। लखनऊ में शिया बोर्ड की बैठक में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला लिया गया। बैठक के दौरान सरकार से कहा गया कि हिंदुओं में जिस तरह से सती प्रथा को प्रतिबंधित किया गया उसी तरह से तीन तलाक पर भी बैन लगाया जाए। इस्लामिक देश भी शादी जैसे निजी मसलों को कानून के जरिए रेगुलेट करते हैं। पड़ोस और मिडल ईस्ट के कई इस्लामिक देशों में शादी से जुड़े कानून हैं। इस्लामिक देशों के ऐसे कानून शरीयत के खिलाफ नहीं हैं, तो भारत में यह कैसे शरीयत के खिलाफ हो सकता है? उन्होंने जोर देकर कहा कि बीजेपी सरकार का इस मसले में कोई निजी हित नहीं है।
एआईजेएस को लेकर उठी मांग
1960 में एआईजेएस के गठन का प्रस्ताव पहली बार रखा
1961, 1963 और 1965 में समर्थन हुआ लेकिन कुछ राज्यों और हाई कोर्ट के विरोध से टला।
1977 में संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 312 के तहत एआईजेएस का प्रावधान किया
2012 में प्रस्ताव को यूपीए सरकार ने प्रस्तुत किया। लेकिन बिल के ड्राफ्ट को हाई कोर्ट जजों के विरोध के बाद टाल दिया।