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सरकारी स्कूल से आईआईएम पहुंचा मुकेश

locationउदयपुरPublished: Jul 01, 2015 02:19:00 am

बेटे के भविष्य को बनाने
के लिए इस पिता ने अखबार बांटे तो कर्जा तक लिया। पैसों का संकट कहीं उसकी पढ़ाई
में व्यवधान नहीं डाले, इसके लिए सारे जतन किए।

Udaipur news

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उदयपुर। बेटे के भविष्य को बनाने के लिए इस पिता ने अखबार बांटे तो कर्जा तक लिया। पैसों का संकट कहीं उसकी पढ़ाई में व्यवधान नहीं डाले, इसके लिए सारे जतन किए। इधर, बेटे ने भी पिता के श्रम को साधने की ठानी। उसने सभी चुनैतियों का सामना कर पढ़ाई को जारी रखा। आखिर, उनका संघर्ष रंग लाया और भींडर के छोटे से सरकारी स्कूल से लेकर आईआईएम तक का सफर उसने तय कर ही लिया।

भींडर के मुकेश रेगर ने हाल में आईआईएम-उदयपुर के नए सत्र 2015-16 में प्रवेश लिया है। वह उन सभी लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत है, जो आर्थिक अभाव में जीकर मंजिल तक पहुंचे हैं। मुकेश को देश के सात आईआईएम से कॉल मिला, लेकिन उसने आईआईएम-उदयपुर को चुना। मुकेश ने 12वीं के बाद राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान, भोपाल में प्रवेश लिया। यहां से मेटेरियल साइंस में इंजीनियरिंग की डिग्री ली। इसके बाद चेन्नई की आईटी कम्पनी में दो साल और बेंगलूरू में करीब एक साल तक नौकरी की। मुकेश को आईआईएम में पढ़ाई जारी रखने के लिए भी फीस की दरकार है।

घर में छिपे गुदड़ी के कई लाल
मुकेश ने बताया कि शुरू से परिवार की आर्थिक स्थिति खराब रही। चार भाई-बहन में वे सबसे बड़े हैं। पिता भूरालाल अकेले कमाने वाले रहे। वे अखबार बांटते थे। मां गृहणी के तौर पर उन्हें सम्बल देती रही। सभी सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। लेकिन फीस व दूसरे खर्च उठाने में बहुत मुश्किलें आतीं। पर, पढ़ाई के प्रति सबकी लगन देखकर पिता उधार लेकर सारा खर्च उठाते। आज घर में तीन इंजीनियर और एक नर्स हैं।

घर बना कर सारी उधारी भी चुकानी है
मुकेश ने बताया कि नौकरी के दौरान जितनी कमाई की उससे पूरा उधार नहीं चुक पाया। ऎसे में और मेहनत कर कैट परीक्षा दी तो आईआईएम में चयन हो गया। अब लक्ष्य आईआईएम में बेहतर प्रदर्शन कर अच्छी नौकरी पाने का है। इससे वे खुद के घर का सपना पूरा करना और उधारी चुकाना चाहते हैं।

पिता खुद भी हुए प्रेरित
बच्चों की लगन देखकर भूरालाल भी खुद प्रेरित हुए। बढ़ती उम्र की चिंता छोड़कर शिक्षक बनने की ठानी। अंतत: उनका चयन तृतीय श्रेणी शिक्षक के लिए हुआ। सालेड़ा स्कूल में पद मिलनेे के बाद परिवार को कुछ आर्थिक संबल मिला।

मधुलिका सिंह
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