उज्जैन. राजाधिराज महाकाल की अवंतिका नगरी में शिप्रा के पावन तट पर 51वीं शक्तिपीठ मां हरसिद्धि है। जहां मां की आराधना 365 दिनों में से 290 दिन दीपमालिका प्रज्वलित कर की जाती है। 2.30 घंटे की मेहनत कर मात्र 10 मिनट में 1111 दीप देखते ही देखते प्रज्वलित हो उठते हैं। इधर मां की संध्या आरती शुरू होती है और दूसरी ओर एक-एक कर दीप जगमगाना शुरू हो जाते हैं। कहते हैं कोई भी भक्त मां के दरबार में मनोकामना मांगने आते हैं, वह पूरी होने पर दीप प्रज्वलित करने दोबारा आते हैं। दीपमालिकाओं की यह जगमग इस बात की साक्षी बनती है कि मां हरसिद्धि ने भक्त की मनोकामना पूर्ण कर उसके जीवन में खुशियों का उजास भर दिया। दीपमालिका के प्रज्वलन के लिए भी छह महीने पहले ही एडवांस बुकिंग हो जाती है।
दीप स्तंभ
मंदिर की सीढियां चढ़ते ही वाहन सिंह की प्रतिमा के दर्शन होते हैं। द्वार के दाईं ओर दो बड़े नगाड़े रखे हैं, जो सुबह शाम आरती के समय बजाए जाते हैं। मंदिर के सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं। इनमें से एक शिव हैं, जिसमें 511 दीपमालाएं हैं, वहीं दूसरे स्तंभ में पार्वती हैं, जिसमें 600 दीपमालाएं हैं। दोनों दीप स्तंभों पर दीपक प्रतिदिन शाम को संध्या आरती के समय जलाए जाते हैं।
75 लीटर तेल से प्रज्वलित होते हैं दीप
मंदिर में दीप स्तंभ में कुल 1111 दीपक हैं। इन्हें जलाने में एक समय में 75 लीटर रिफाइंड तेल लग जाता है। दीपमालिका में तेल भरकर उसे प्रज्वलित करने में कुल खर्च 7000 रुपए का होता है। इसमें से 2100 रुपए परंपरागत कार्य कर कारिगरों को प्रति व्यक्ति दिया जाता है।
छह महीने पहले हो जाती है बुकिंग
हरसिद्धि माता मंदिर में 365 दिनों में से करीब 290 दिन दीप मालिका प्रज्वलित की जाती है। गुजरात, राजस्थान के कई ऐसे परिवार हैं, जो अपनी कुल देवी हरसिद्धि मां के दरबार में कई सालों से दीप मालिका के लिए बुकिंग करवाते आ रहे हैं। मंदिर के प्रबंधक अवधेश जोशी ने बताया कि नवरात्र के समय के लिए भक्त छह महीने पहले से ही बुकिंग करवा लेते हैं। सामान्य दिनों में प्रति दिन करीब 7000 रुपए प्रति व्यक्ति खर्च आता है। नवरात्र में भक्तों की संख्या ज्यादा होने से दस लोगों को मिलाकर एक दिन दीपमालिका प्रज्ज्वलित की जाती है। नवरात्र पर्व के समय भक्तों को मात्र 2100 रुपए की रसीद कटवाना पड़ती है। इसमें से 500 रुपए मंदिर की प्रबंध समिति के पास चले जाते हैं और बाकी के रुपए से दीपमालिका में लगने वाला खर्च में लगा दिया जाता है।
जन्मदिन से लेकर वैवाहिक वर्षगांठ पर भी भक्त करवाते हैं पूजा
मां हरसिद्धि के भक्त अपने जन्मदिन से लेकर वैवाहिक वर्षगांठ और माता-पिता की स्मृति में मां के दरबार में पूजन अनुष्ठान करवाते हैं। भक्त दरबार में प्रज्वलित होने वाली दीपमालिका को प्रज्वलित करवाने के लिए छह महीने पहले ही बुकिंग कर लेते हैं। मंदिर प्रबंधक जोशी का कहना है कि साल में करीब सौ से अधिक भक्त ऐसे ही आते हैं जो कुछ विशेष शुभ प्रसंगों पर मां के दरबार में पूजन अनुष्ठान करवाते हैं।
ये हैं पौराणिक महत्व
शिव पुराण की मान्यता के अनुसार जब सती बिन बुलाए अपने पिता के घर गई और वहां पर दक्ष द्वारा अपने पति का अपमान सहन न कर सकने पर उन्होंने अपनी काया को अपने ही तेज से भस्म कर दिया। भगवान शंकर यह शोक बर्दाश्त नहीं कर पाए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। जिससे चारों ओर प्रलय मच गया। भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और जब शिव अपनी पत्नी सती की जलती पार्थिव देह को दक्ष प्रजापति की यज्ञ वेदी से उठाकर ले जा रहे थे, तब विष्णु ने सती के अंगों को अपने चक्र से 52 भागों में बांट दिया। उज्जैन के इस स्थान पर सती की कोहनी का पतन हुआ और यहां कोहनी की पूजा होती है। शक्ति मंगल चण्डिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं।
देवी प्रतिमा
मंदिर के मुख्य पीठ पर प्रतिमा के स्थान पर श्रीयंत्र हैं। इस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है। उसके पीछे भगवती अन्नपूर्णा की प्रतिमा है। गर्भगृह में हरसिद्धि देवी की प्रतिमा की पूजा होती है। मंदिर में महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती की प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी हैं। जिसके बीच में एक स्तंभ बना हुआ है। जिस पर संवत् 1447 अंकित हैं। मंदिर के जगमोहन के सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं।
श्रीयंत्र की पूजा
शिवपुराण के अनुसार मंदिर में श्री यंत्र की पूजा होती है। इन्हें विक्रमादित्य की आराध्य देवी माना जाता है। स्कंद पुराण में देवी हरसिद्धि का उल्लेख है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया का भी मंदिर है। यहां सदैव ज्योति प्रजवलित होती रहती है नवरात्र पर्व के समय इनकी भी महापूजा होती है।
पंाच लोग करते हैं दीपमालिका को कुछ मिनटों में प्रज्वलित
उम्र 48 से 65 लेकिन मां के दरबार में उनकी शक्ति से दस मिनट में ग्यारह सौ ग्यारह दीप जगमगा उठते हैं। मनोहर जोशी, राजेन्द्र जोशी, रामचंद्र फूलेरिया, ओमप्रकाश चौहान और गोवरधन लाल परमार मां के दरबार में दीप स्तंभ में लगे दीपों को कुछ ही मिनटों में प्रज्ज्वलित कर देते हैं। सोमवार को दीप प्रज्वलित कर उतरे पांचों भक्तों ने पत्रिका को बताया कि यह कार्य उनकी तीन पीढ़ी से करते आ रहे हैं। उम्र इतनी होने के बाद भी मां के दरबार में ऐसी शक्ति मिलती है कि कुछ ही मिनटों में एक-एक कर दीप जगमगा उठते हैं। मनोहर जोशी ने बताया कि दीपों की सफाई करना फिर बत्ती लगाना और तेल भरने में दो घंटे लगते हैं। इसके बाद जैसे ही मां की संध्या आरती शुरू होती है, वैसे ही दीप प्रज्ज्वलित करना शुरू कर दिया जाता है। रामचंद्र फूलेरिया ने बताया कि वे रोज दीपों के लिए घर में बत्ती तैयार करते हैं। पांचों भक्तों ने बताया कि मां की इस सेवा के लिए वे कभी शहर से बाहर नहीं जाते क्योंकि उन्हें ही यह कार्य करना पड़ता है।