संसद हमले में शहीद हुए सीकर जिले के नीमकाथाना निवासी जगदीश यादव की शहादत की कहानी चौदह साल बीतने पर भी बच्चे-बच्चे की जुबां पर है।
संसद हमले में शहीद हुए सीकर जिले के नीमकाथाना निवासी जगदीश यादव की शहादत की कहानी चौदह साल बीतने पर भी बच्चे-बच्चे की जुबां पर है। तेरह दिसंबर 2001 का वह दिन यादव के परिजनों को आज भी बीते कल की मनहूस यादें ताजा कर जाता है। वीरांगना प्रेम ने बीते करीब डेढ़ दशक में पति को भुलाने की बहुत कौशिश की लेकिन उसकी आंखों से यादव की की तस्वीर धूमिल नहीं होती। लेकिन बच्चों में पिता जैसे शौर्य का जज्बा उसे सुकून देता है।
मां को कहता था अकेला दस पर भारी पडूंगा शहीद यादव की भाभी फूली देवी कहती हैं कि देवर जगदीश जब भी छुट्टियों में रात्रि को घर आते तो सास सिमली देवी देर रात तक जागती रहती और बेटे के लिए दरवाजा खोलती थी। उस दौरान मां जगदीश को टोकती थी ‘इतनी रात को मत आया कर कुछ हो जाएगाÓ… इस पर जगदीश बोलते, मां तेरा बेटा इतना ताकतवर है कि लड़ाई हुई तो दस को साथ लेकर मरेगा।
आंख के आंसू मन में दबा लिए घटना के बाद मैंने अपनी जिंदगी को पटरी पर लाना शुरू किया। मगर बुरी यादें मेरा पीछा करती थी और कहीं ना कहीं वो उन मनहूस पलों का अहसास करा देती थी। वे जब गुजरे तो बेटी आठ महीने की थी और बेटा गौरव पौने चार साल का था। जब बेटी तीन साल की हुई और स्कूल जाने लगी तब तक उससे उसके पिता के नहीं होने की बात छुपाई हुई थी।
कभी भी उसे पिता के नहीं होने का अहसास नहीं होने दिया, मगर एक दिन उसने मुझसे पूछ ही लिया कि ‘मम्मी स्कूल में सबके पापा आते हैं, मेरे पापा कहां हैं, वे क्यों नहीं मुझे लेने आते हैंÓ… यह बात सुनकर मेरा मन बहुत रोया। आंख के आंसू मन में दबा लिए और बेटी को फिर दिलासा दिया ‘पापा दिल्ली नौकरी करते हैं वे बहुत जल्द आएंगे और तुम्हे स्कूल से लाने जरूर जाएंगें…।
बड़ी हुई तो सब जान गई। लेकिन उसके बाद वह पिता के नहीं होने की वजह से कमजोर नहीं हुई बल्कि उनकी शहादत की गाथा को मन में समेट कर उनकी ही तरह दूसरों के लिए कुछ करने का जज्बा पाल लिया। उसने डॉक्टर बनने का सपना संजो रखा है। उसके इस सपने पर मुझे खुशी है। एक दिन यह सपना वह जरूर पूरा करेगी
देश बने मजबूत: गरिमागरिमा कहती हैं ‘भारत को अभी और मजबूत होने की जरूरत है, सेना को दुश्मनों से लडऩे के लिए अच्छे संसाधन व सुविधाएं देनी चाहिए ताकि वे जंग लड़कर देश की हिफाजत कर सके। आतंकी गतिविधियों में पकड़े जाने वाले देशद्रोहियों को जल्द से जल्द सजा के अंजाम तक पहुंचाना चाहिए, ताकि दूसरे दहशतगर्द उनका हश्र देखकर राह बदल लें। यह बात मुझे इसलिए कहनी पड़ रही है कि क्योंकि पिता के हत्यारों को कितने सालों बाद मौत मिली थी। वो समय बड़ी मुश्किल से काटा थाÓ।
…लौटा दिए थे मेडल13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले में जगदीश प्रसाद यादव शहीद हुए थे। जब हमला हुआ तो सबसे पहले आतंकवादियों से मुकाबला उन्होंने किया था। घटना के समय यादव उपराष्ट्रपति की प्रस्थान व्यवस्था देख रहे थे। हमले में राजस्थान से सिर्फ जगदीश प्रसाद यादव शहीद हुए थे। मुख्य आरोपी अफजल गुरु को फांसी नहीं होने पर वीरांगना एक बार राष्ट्रपति को मेडल लौटा दिया था। बाद में फांसी मिलने पर मैडल वापस पाया था।