scriptराधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज का सत्संगियों को मार्मिक संदेश | Guru Purnima 2017 celebration by radhasoami guru dadaji maharaj in pipal madni Agra hindi samachar | Patrika News

राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज का सत्संगियों को मार्मिक संदेश

locationआगराPublished: Jul 09, 2017 09:54:00 pm

राधास्वामी मत के अधिष्ठाता और आचार्य दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) ने दुनियाभर के सतसंगियों से ये संदेश दिया है।

dadaji maharaj

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आगरा। राधास्वामी मत के आदि केन्द्र हजूरी भवन पीपलमंडी, आगरा में गुरु पूर्णिमा का उत्साह देखते ही बनता था। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) की गुरु रूप में वंदना की गई- गुरु प्यारे की छवि पर बलि-बलि जाऊं। इस मौके पर दादाजी महाराज ने सत्संगियों को मार्मिक संदेश दिया। उन्होंने कहा- धन मत जोड़ो, मन को मोड़ो, तन को तोड़ो, चरणों में जोड़ो। इतना धन कमाकर क्या करोगे?

राधास्वामी मत गुरुमत है

दादाजी महाराज ने कहा राधास्वामी मत गुरु मत है। गुरु की आवश्यकता है। गुरु के दर्शन करना, उनके स्वरूप को चित्त में बसाना, उनसे भक्ति करना, उनका भाव लाना और फिर उनके वचनों के अनुसार काम करना हर उस अनुरागी जीव का काम है। इस दुनिया में दुख और अस्थिर रिश्तों को देखकर बहुत रंज होता है। वो फिर इस बात की तलाश करता है कि कोई मार्ग ऐसा है, जिस पर चलकर इस दुख-सुख के चक्कर से बच सकते हैं। कोई ऐसे भेदी है, जो हमको सही मार्ग पर ले जा सके। मार्ग दिखा सके और अंगुली पकड़कर चला भी दे। और वही रूप धारण करके कुल मालिक राधास्वामी दयाल जगत में प्रकट गुए। परमपुरुष पूरनधनी स्वामी जी महाराज और हजूर महाराज राधास्वामी दयाल के अवतार हैं। उनकी तुलना किसी से नहीं हो सकती है।

गुरु के लिए क्या करना है
उन्होंने कहा कि हमको अपनी मुक्ति प्राप्त करने के लिए अपने समकालीन गुरू की आवश्यकता होती है। सुरत शब्द योग गुरु भक्ति के अधीन है। हमको गुरु प्यारा लगना चाहिए। गुरु प्यारा लगता ही है। प्यारे-प्यारे सदगुरु हजूर महाराज राधास्वामी दयाल के चऱणों में प्रीत को बढ़ाना है। नित्यप्रति सुमिरन, ध्यान और भजन का अभ्यास करना हर एक अनुरागी सेवक को आवश्यक है। जो इस आदेश का पालन करेगा, वही गुरु भक्त है। उसी से न्यारी भक्ति बन पड़ेगी।

कुलमालिक का सहारा
दादाजी महाराज ने कहा कि बस एक सहारा, एक आसरा कुलमालिक राधास्वामी दयाल हैं। उनके चरणों में रहने और उनकी दया के आसरे जीने वाला यहां के सुख और दुख को सह जाएगा। जो जीव है, वही संसार के भोगों में आसक्त होता है। पैसा कमाने के लिए क्या-क्या जतन करना पड़ता है। सुबह से लेकर शाम तक काम ही काम है। शाम को थके मांदे आते हैं, कुछ खाया और सो गए। जगना, उठना, काम करना और सो जाना जिन्दगी नहीं है। बड़ी मुश्किल से हाथ में आई है। थोड़ा समय भजन और ध्यान में लगाना चाहिए।

गुरु न भूखा तेरे धन का
दादाजी महाराज ने कहृ- आखिर कितना धन कमाओगे। किसी के पास धन है, तो वह खर्च नहीं करता और जो निर्धन है, खर्च करना चाहता है, उस पर धन नहीं है। जिनके पास धन हो जाता है, उनमें कंजूसी और बढ़ जाती है। एक बात याद रखें कि राधास्वामी मत कहता है कि जिसके पास धन है, उसे परमार्थ के काम में खर्च करना चाहिए। सत्संग में खर्च करना चाहिए। रसोई में देना चाहिए। जो यहां साधु-सत्संगी रहते हैं, उनकी सेवा में लगाना चाहिए। मैंने ये देखा कि जिन पर ज्यादा धन हो जाता है, वो खर्च नहीं करते हैं। ऐसे विरले लोग हैं, जो वास्तविक तौर पर परमार्थ में खर्च करते हैं। गुरु न भूखा तेरे धन का, उन पर धन है भक्ति नाम का, पर तेरा उपकार करावें, भूखे प्यासे को दिलवावें, उनकी मेहर मुफ्त पावें। तू भी उनकी दया का अधीन है।

सत्संगियों से अपील
दादाजी महाराज ने कहा कि मैं सतसंगियों से कहना चाहता हूं कि हमारा अध्यात्म हमारी जिन्दगी जीने का ढंग है, उसमें बैराग अधिक है और बैराग के लिए अनुराग चाहिए। हम जितना मालिक के चऱणों में खिंचते चले जाते हैं, उमें बैराग होता जाता है। जो कमाए जा रहा है, न खाता है न खर्च करता है, उससे बचकर रहो। उसके संग से डर है कि तुम नीचे न गिर जाओ। इसलिए इस ऊंच-नीच को समझाने वाले खुद राधास्वामी दयाल हैं। हम लोगों को जो आध्यात्मिक समाजवाद स्थापित किया है, उस पर रहकर होश में रहना चाहिए। इसीलिए समय-समय पर हमको दिशा निर्देश देने वाले की आवश्यकता है और यही सबब है कि राधास्वामी मत में समकालीन गुरु के महत्व को बताया गया है। परिस्थितियां बदलती हैं। दुनिया में उतार-चढ़ाव होते हैं। भवसागर बहुत गहरा है और नाव है। उस नाव पर चढ़ाने वाला और पार करने वाला चाहिए। सुरत शब्द का मार्ग बताया है, लेकिन उस पर चलाने वाला चाहिए और वही गुरु है।

सहारा देने वाले गुरु
गुरु पूर्णिमा पर हम राधास्वामी दयाल की आराधना करते हैं। अपने गुनाहों की माफी और दया मांगते हैं। वे दयालु हैं और दया करते हैं। हम लोगों के लिए खास महत्व है। खुशी है कि सत्संग बढ़ता जा रहा है। दुख और संकट के समय भी हमको सहारा देने वाले गुरु होते हैं। ये दुनियादार और रिश्तेदार साथ नहीं देते हैं। सतगुरु साथ देते हैं। हर दम गुरु की पूजा है। हर दम गुरु के चरणों में मस्तक झुकाते हैं। जिसने यह काम कर लिया, वह निश्चित हो गया।


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