आगरा। आज हम आपको ऐसी कहानी बताते हैं, जो अचंभित कर सकती है। अचंभित करने वाली ही है। एक ऐसा स्थान भी है, जहां अस्थियां बेची जाती हैं। यह काम होता है रामघाट पर। यह काम करते हैं वाल्मीकि समाज के लोग। अस्थियों को फूल भी कहा जाता है।
कहां है रामघाट
अलीगढ़, बुलंदशहर, एटा और आगरा के तमाम लोग अपने प्रियजनों की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए रामघाट जाते हैं। जिला बुलंदशहर की डिबाई तहसील में रामघाट बांगरा गांव है। यहीं पर गंगा किनारे रामघाट है। यह घाट आज भी कच्चा है। यह स्थान अतरौली के पास है।
क्या होता है
जैसे ही कोई अस्थियां लेकर पहुंचता है, वाल्मीकि समाज का कोई न कोई व्यक्ति पहुंच जाता है। वह अपना कर मांगता है। अगर आप पूछते हैं कि कर क्यों चाहिए तो जवाब मिलता है कि यह तो राजा हरिश्चंद के समय से चला आ रहा है। वाल्मीकि पूरे विधिविधान से अस्थियों का विसर्जन कराता है। फिर दक्षिणा का क्रम चलता है।
कैसे बेचते हैं
वाल्मीकि लटूरी सिंह सिंह ने बताया कि हम 10 दिन से लेकर एक माह तक यहां आने वाली अस्थियों को बेचते हैं। वाल्मीकि समाज को ही 3000 से 5000 रुपये में बेच देते हैं। जब एक साथ पैसे की जरूरत होती है, तो यह काम करते हैं। अस्थियों को खरीदने वाला का भाग्य है कि इस दौरान अस्थियां आएं या नहीं। घाटा हो सकता है और लाभ भी। यह भी बताया कि यहां अस्थियां विसर्जित करने वालों से जो कर मिलता है, उसके भी कई हिस्से होते हैं।