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जय बाबे की

काले धन की मुहिम छेड़ाने वाले बाबाजी को जब पुलिस से बचने के लिए औरतों के कपड़े पहन कर भागते देखा तो हम हंस पड़े थे। हंसने का कारण था भी। घनी काली दाढ़ी वाला आदमी श्वेत कुर्ते चूड़ीदार में अजीब तो लगता ही है। 

Oct 30, 2015 / 05:02 am

afjal

काले धन की मुहिम छेड़ाने वाले बाबाजी को जब पुलिस से बचने के लिए औरतों के कपड़े पहन कर भागते देखा तो हम हंस पड़े थे। हंसने का कारण था भी। घनी काली दाढ़ी वाला आदमी श्वेत कुर्ते चूड़ीदार में अजीब तो लगता ही है। 

बाद में बाबाजी को कथित अनशन के चलते डिहाईड्रेशन होने पर ग्लूकोज चढ़वाना पड़ा तो मुंह से यकबयक निकल गया कि कैसा योगी है। शास्त्रों में तो ऐसे योगियों का जिक्र मिलता है जो हृदय की गति तक को रोक लेते थे। लेकिन अब लगता है कि बाबा कमाल के व्यापारी हैं। 

कसम से उन्होंने स्वदेशी सामान का जबरदस्त मार्केट बना कर कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को काफी नुकसान पहुंचाया है। जिस दुकान में जाओ वहां बाबाजी का सामान रखा नजर आता है। पचासों साल से लोग जिन क्रीम, टूथपेस्ट, खुशबूदार केश तेलों का इस्तेमाल करते-करते उनके दास बन चुके थे अब बाबा ने उन्हें सबक सिखाने के लिए कमर कस ली है। 

इसी कारण आजकल बाबा हमें भी भाने लगे हैं। सबसे बड़ी बात है सांस के खेल की। हम तो खुद अपने साथियों को यही सिखाते हैं कि इस दुनिया में सारा खेल सांस का है। आदमी जब तक सांस ले रहा है तब तक ये सारा जहान है और सांस बंद हुई तो फिर बस सिर्फ श्मशान है। 

और यह बात भी सोचने लायक है कि अगर दिन भर में पन्द्रह-बीस मिनट सांस को तेजी से लेने-छोड़ने, पेट को गुब्बारे की तरह फुलाने और फिर सांस को धोंकनी की तरह निकालने से सारा दिन फुर्ती बनी रहती है तो भैया इसमें किसी का क्या जा रहा है लेकिन हमारे देश में ऐसे अकल के दुश्मनों की कमी नहीं जो हजारों रुपए की दवाइयां खा लेंगे लेकिन मुफ्त के योग से दूर भागेंगे।

 अपने आयुर्वेद में ऐसी-ऐसी औषधियों का वर्णन है जो आदमी को अखण्ड यौवन प्रदान कर सकती है। अब संजीवनी बूटी जैसी दवाओं को हम चाहे किस्सों कहानियों की बात मान लें लेकिन अभी हाल ही पांच रुपए की ऐसी प्रामाणिक आयुर्वेदिक औषधि का निर्माण किया गया है जो एक हजार डायबिटीज के रोगियों पर कारगर सिद्ध हुई है। 

बाबा से नाइत्तफाकी रखते हुए कम से कम यह तो सीखा जा सकता है कि स्वस्थ रहने के लिए ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं है। बाबा एक सफल कारोबारी भी सिद्ध हो रहे हैं। अगर सचमुच उनका मुनाफा परोपकार में खर्च हो रहा है तो इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। 

लेकिन उनसे हम एक गुजारिश जरूर करेंगे- महाराज आप अपने खास नेताजी से कह कर काले धन पेटे पन्द्रह लाख रुपए तो हमारे डूबत खाते में डलवाओ जिससे हमारी हैसियत अरहर-उड़द की दाल खरीदने लायक हो सके। पतली ही सही अरहर की दाल तो मिले।
 – राही

बाबा से कम से कम यह तो सीखा ही जा सकता है कि स्वस्थ रहने के लिए ज्यादा खर्च करने की कतई जरूरत नहीं है।

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