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अहमदाबाद

सास-ससुर के लिए ढूंढ़ रहीं हैं जीवनसाथी

आमतौर पर घर मेंं जवान पुत्र व पुत्री की शादी की चिन्ता हर माता-पिता को होती है, लेकिन यहां दो

अहमदाबादJul 17, 2017 / 08:12 pm

मुकेश शर्मा

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अहमदाबाद।आमतौर पर घर मेंं जवान पुत्र व पुत्री की शादी की चिन्ता हर माता-पिता को होती है, लेकिन यहां दो अलग-अलग ऐसे मामले हैं जिनमें एक बहू ने अपने ससुर के लिए जीवन साथी ढूंढने का बीड़ा उठाया है तो दूसरी बहू ने अपनी विधवा सास के अकेलेपन को दूर करने के उद्देश्य से जीवनसाथी की तलाश शुरू की है। दोनों का उद्देश्य सास-ससुर का अकेलापन दूर करना है। महेसाणा निवासी निमिषा के. कडिया का कहना है कि उनकी सास का हृदयघात से तीन वर्ष पूर्व निधन हो गया था। उसके बाद से ससुर दिनेशभाई (60) गुमसुम रहने लगे थे। दिनेश भाई के चार बेटे-बहुएं हैं, लेकिन वे सभी अलग-अलग जगह रहते हैं।

 कंस्ट्रेक्शन के व्यवसाय से जुड़े दिनेश के अकेलेपन के इस दर्द को घर के सभी सदस्यों ने महसूस किया और उसके बाद जीवन साथी ढूंढने का निर्णय किया। इसी सिलसिले में पति को लेकर निमिषा अहमदाबाद स्थित बिना मूल्य अमूल्य सेवा संस्था के अध्यक्ष नट्टूभाई पटेल के यहां पहुंची और उन्होंने अपने ससुर के लिए जीवन साथी की बात बताई। दूसरा मामले में गांधीनगर निवासी अनुराधा (नाम परिवर्तन) का कहना है कि उनके ससुर की मौत करीब दस वर्ष पूर्व हो गई थी। उसके बाद अब ऐसा लग रहा है कि उनकी साठ वर्षीय विधवा सास रत्नाबेन (नाम परिवर्तित) को कहीं न कहीं अकेलापन खल रहा है।

कभी-कभी रत्नाबेन घर में अकेली रहती हैं तो उनके चेहरे पर दर्द स्पष्ट देखा जाता है। जिससे अनुराधा एवं उनके पूरे परिवार ने सास के लिए जीवन साथी ढूंढने का निर्णय लिया है। पिछले दिनों यह महिला भी अपनी सास के लिए जीवन साथी की तलाश में अहमदाबाद की बिना मूल्य अमूल्य सेवा संस्था में पहुंची। जहां उन्होंने संस्था से ऐसे जीवन साथी की तलाश की पेशकश की जिससे उनकी सास का अकेलापन का दर्द दूर हो सके और उम्र का अंतिम पड़ाव खुशी-खुशी व्यतीत हो। संस्था के अध्यक्ष नट्टूभाई पटेल ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से लोगों की सोच में काफी बदलाव आया है। लोग अपने बुजुर्गों की भावनाओं और उनके दर्द को समझ रहे हैं यह अच्छा बदलाव है। उन्होंने कहा कि अंतिम पड़ाव में अकेलापन रूपी अंधकार में उजाला करना ही दोनों बहुओं का उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि जीवन साथी की सबसे ज्यादा जरूरत साठ वर्ष के बाद ही महसूस होती है।

ओमप्रकाश शर्मा
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