पत्रिका एक्सक्लूसिव
आवेश तिवारी
वाराणसी। भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक की संपत्ति केवल नोएडा का एक घर है जो उन्होंने 1995 में ख़रीदा था । इलाहाबाद विश्वविद्यालय से द्वितीय श्रेणी में बीएससी और आगरा विश्वविद्यालय से एमए करने वाले बिहार कैडर के आई एएस शशिकांत शर्मा द्वारा दाखिल किये गए अचल संपत्तियों के रिकार्ड से पता चलता है कि 1976 बैच के इस आईएएस अधिकारी में अपनी सेवा के लगभग 40 सालों में केवल एक अदद मकान ही बनवाया। यह मकान शशिकांत शर्मा और उनकी पत्नी के नाम है । इस मकान की जमीन भी उन्होंने किसी से खरीदी थी। 23 मई 2013 को अपना पद भार संभालने वाले शशिकांत इसके पहले देश के रक्षा सचिव रह चुके हैं उनका कार्यकाल इसी साल सितम्बर माह में ख़त्म हो रहा है। मौजूदा समय में शशिकांत शर्मा राष्ट्र संघ के आडिटर बोर्ड के भी अध्यक्ष हैं।
जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि विवाद से आये चर्चा में
शशिकांत शर्मा का नाम देश के नौकरशाहों के बीच उस वक्त चर्चा में आया था जब बतौर रक्षा सचिव उन्होंने पूर्व सेनाध्यक्ष और अब मंत्री जनरल वी के सिंह की जन्मतिथि को 1950 की जगह 1951 मानने से इनकार कर दिया था। गौरतलब है कि जनरल वी के सिंह इस बात पर अड़े हुए थे कि उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 ही मानी जाए लेकिन रक्षा सचिव टस से मस न हुए। अंततः शशिकांत शर्मा ने एक प्रस्ताव देते हुए कहा कि हम आपकी जन्मतिथि 1951 मान लेंगे लेकिन आपको इस्तीफा तय समय पर ही देना होगा। पहले तो बी के सिंह न्यायालय चले गए। लेकिन उन्हें कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिली फिर वो 31 मई 2012 को रिटायर हो गए।
भाजपा ने किया था नियुक्ति का विरोध
शशिकांत शर्मा पर को जब यूपीए की सरकार में सीएजी बनाया गया था तो उसका भाजपा ने जमकर विरोध किया था। भाजपा का आरोप था कि शर्मा 2007 में डीजी एक्विजिशन बन गए थे और विवादस्पद
अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर की खरीद प्रक्रिया को ‘वस्तुत: वही नियंत्रित’ कर रहे थे।शर्मा 2010 तक इस महत्वपूर्ण पद पर बने रहे और फिर 2011 में रक्षा सचिव बने।
बिहार में पलामू भागलपुर के रहे हैं कलेक्टर
2014 में शशिकांत शर्मा को राष्ट्र संघ की जनरल असेम्बली के द्वारा अगले 6 वर्षों के लिए अपने आडिटर बोर्ड में शामिल कर लिया गया। बिहार के पलामू , भागलपुर, सिंहभूम , बोकारो में कलेक्टर से लेकर कमिश्नर तक रह चुके शशिकांत की नियुक्ति का विरोध प्रशांत भूषण ने भी किया था और इसको लेकर एक जनहित याचिका भी दायर की थी। जिसमे कहा गया था कि रक्षा सम्बन्धी कई खरीदों में बतौर रक्षा सचिव उनकी भूमिका रही है ऐसे में इस बात की कम सम्भावना है कि वो सीएजी के तौर पर अपनी भूमिका का ईमानदारी से निर्वहन करेंगे। लेकिन हाईकोर्ट ने प्रशांत भूषण की याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि उन पर संदेह किये जाने की कोई वजह नहीं है। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के ही आदेश को बरकरार रखा ।