हमारी धरती जीवों के महाविनाश के छठे दौर में पहुंच चुकी है। धरती के साढ़े चार अरब साल पुराने इतिहास में अब तक ऐसा 5 बार हुआ है जब सबसे ज्यादा फैली प्रजातियां पूरी तरह विलुप्त हो गई हों।
न्यूयॉर्क। हमारी धरती जीवों के महाविनाश के छठे दौर में पहुंच चुकी है। धरती के साढ़े चार अरब साल पुराने इतिहास में अब तक ऐसा 5 बार हुआ है जब सबसे ज्यादा फैली प्रजातियां पूरी तरह विलुप्त हो गई हों। अमरीका की नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज के एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि पांचवीं घटना में डायनासोर तक का सफाया हो गया था और अब यह धरती छठे महाविनाश के दौर में प्रवेश कर चुकी है। अध्ययन के मुताबिक, दुनिया के अधिकांश हिस्सों में स्तनधारी जीव अपनी आबादी का 70 फीसदी हिस्सा खो रहे हैं। जैसे चीता की संख्या घटकर सिर्फ 7 हजार रह गई है तो अफ्रीकी शेरों की संख्या भी 1993 से लेकर अब तक 43 फीसदी घट गई है। वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक बीते 100 सालों में 200 से ज्यादा प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। इसके मुताबिक 177 स्तनधारी प्रजातियों को 1900 से 2015 के बीच की अवधि में अपना 30 फीसदी आवासीय क्षेत्र गंवाना पड़ा है। इनमें से लगभग आधी प्रजातियों की आबादी में जबरदस्त कमी आई है।
30 फीसदी प्रजातियां विलुप्त
शोध के मुताबिक जमीन पर रहने वाले सभी रीढ़धारी जंतु- स्तनधारी, पक्षी, रेंगनेवाले और उभयचर की प्रजातियों का 30 फीसदी हिस्सा विलुप्त हो चुका है।
वैश्विक महामारी की स्थिति
अमरीका की नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज के शोध के मुताबिक, धरती पर चिडिय़ा से लेकर जिराफ तक हजारों जानवरों की प्रजातियों की संख्या कम होती जा रही है। वैज्ञानिकों ने जानवरों की घटती संख्या को ‘वैश्विक महामारी’ करार दिया है और इसे छठे महाविनाश का हिस्सा बताया है।
जीवों के भौगालिक क्षेत्र का छिनना बड़ी वजह
बीते 5 महाविनाश प्राकृतिक घटना माने जाते रहे हैं, लेकिन इस महाविनाश की वजह बड़ी संख्या में जानवरों के भौगोलिक क्षेत्र छिन जाने को बताया है। इन अधिक संकटग्रस्त जीवों का 80 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र इनके हाथ से छिन चुका है। पिछले 40 वर्षों में ही हम पृथ्वी का 50 फीसदी वन्य जीवन नष्ट कर चुके हैं।