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अमरीका

कानूनी शिकंजे से बचने की कोशिश में इंटरनेट कंपनियां

12 जुलाई को अमरीका में नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर ‘इंटरनेट-वाइड डे ऑफ एक्शन टू सेव नेट न्यूट्रैलिटी’ अभियान चलाया गया था।

Jul 19, 2017 / 08:48 am

ghanendra singh

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वाशिंगटन। 12 जुलाई को अमरीका में नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर ‘इंटरनेट-वाइड डे ऑफ एक्शन टू सेव नेट न्यूट्रैलिटी’ अभियान चलाया गया था। इसमें आखिरी वक्त में दिग्गज ई-कंपनियों फेसबुक और गूगल ने भी शिरकत की थी। उसी वक्त कयास लगने लगे थे कि आने वाले दिनों में यह कंपनियां सरकारी नेट न्यूट्रैलिटी कानून पर बड़ा फैसला कर सकती हैं। अब गूगल-फेसबुक ने कानून के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया है।

दो साल से जारी है अभियान
2015 में अमरीका में नेट न्यूट्रैलिटी कानून बनने के बाद से ही इसके खिलाफ अभियान जारी है। इसमें फाइट फॉर द फ्यूचर, फ्री प्रेस एंड डिमांड प्रोग्रेस, द डे ऑफ एक्शन जैसे अभियानों को अमेजॉन, नेटफ्लिक्स और अमरीकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (एसीएलयू) जैसी अनेक संस्थाओं का समर्थन हासिल है। अपने स्तर पर नेट न्यूट्रैलिटी कानून का विरोध करती रही गूगल और फेसबुक भी अब इससे जुड़ गई हैं। 


कानून पर असर डालने की तैयारी
अमरीकी नेट न्यूट्रैलिटी कानून में बदलाव की कवायद पर अन्य देश भी असर डालना चाहते हैं। जो 89 लाख लोगों के फीडबैक आए हैं, उनमें से 13 लाख तीन देशों रूस, फ्रांस और जर्मनी के हैं। ये सब कमेंट मौजूदा कानून के खिलाफ थे।

5 साल से जारी है लड़ाई
2012 में आईटी कंपनियों ने विवादास्पद कॉपीराइट विधेयक के खिलाफ सोपा अभियान चलाया था। सोपा के तहत वेबसाइट से छेड़छाड़ या उन्हें ब्लॉक करने के अधिकार की मांग की गई थी। तब भारी विरोध के बाद अमरीकी सरकार को विधेयक वापस लेना पड़ा था। अब मौजूदा ट्रंप सरकार भी ऐसा विधेयक लाने की तैयारी कर रही है।
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पूरी दुनिया पर पड़ेगा असर
अमरीका में बनने वाले कानून का असर पूरी दुनिया के इंटरनेट जगत पर पड़ेगा। ज्यादातर ई-कंपनियों के हेडक्वार्टर अमरीका में हैं। उन पर अमरीकी कानून लागू होगा। हालांकि वे दूसरे देशों में वहां के कानूनों के मुताबिक काम करेंगी। इसके बावजूद अन्य देशों के कानूनों पर अमरीकी कानून का असर संभव है।

क्या है ‘नेट न्यूट्रैलिटी’
इंटरनेट पर हर सेवा के लिए एक ही दर और एक जैसा व्यावसायिक वातावरण। सेवा प्रदाताओं को किसी सेवा को न तो ब्लॉक करना चाहिए और न ही उसकी स्पीड स्लो करनी चाहिए। फिलहाल फोन कॉल्स, सर्फिंग, सोशल साइट आदि के लिए अलग-अलग डेटा चार्ज की बात सामने आ रही है। 

कंपनियों के बीच क्या है विवाद
टेलिकॉम कंपनियां
विशेष सेवाओं के लिए स्पीड स्लो करने, डाटा दर अधिक लेने और कुछ विशेष वेबसाइट को आगे बढ़ाने के लिए अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करती हैं। 

ई-कंपनियां
फ्री सेवाओं के जरिये अपनी इंटरनेट सेवा देती हैं ई-कंपनियां । जिसमें अपनी पसंद की वेबसाइट को ही आगे बढ़ाने के काम किए जाते हैं। 

खतरा
कंपनियां एकाधिकार बनाए रखने के लिए गठजोड़ कर सकती हैं। जिन क्षेत्रों में कंपनियां सीमित हैं, वहां ग्राहकों को बहुत ज्यादा नुकसान भी हो सकता है। 

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