scriptमैमथ को अस्तित्व में लाने का महाकाय प्रयोग | Massive experiment to bring mammoth into existence | Patrika News

मैमथ को अस्तित्व में लाने का महाकाय प्रयोग

Published: Jul 21, 2015 02:28:00 pm

जॉर्ज ने एक ऎसी तकनीक ईजाद की है जिससे एक जीव के डीएनए में बदलाव करके
दूसरे जीव के जीनोम के साथ बदला जा सकता है

George Church

George Church

वॉशिंगटन। अमरीकी आनुवांशिकी विशेषज्ञ, मॉलेक्यूलर इंजीनियर व केमिस्ट जॉर्ज चर्च विलुप्त हो चुके वूली मैमथ (अंटार्कटिक आइसलैंड में पाए जाने वाले बालों वाले अत्यंत विशालकाय हाथी) को एक बार फिर से क्लोनिंग के जरिए अस्तित्व में लाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

उन्होंने मैमथ के डीएनए को एशियाई हाथी के जेनेटिक कोड के साथ मैच कराने में सफलता पाई है। वे आर्कटिक परमाफ्रॉस्ट में सुरक्षित रखे गए मैमथ के जींस पर अध्ययन कर यह पता लगा रहे हैं कि ये प्रजाति हाथी से कितनी अलग है।

जॉर्ज ने एक ऎसी तकनीक ईजाद की है जिससे एक जीव के डीएनए में बदलाव करके दूसरे जीव के जीनोम के साथ बदला जा सकता है। इस तकनीक को “क्रिसपर डीएनए एडिटिंग” तकनीक कहते हैं। इस तकनीक के जरिए फ्रोजन मैमथ के कान, वसा और बालों के डीएनए को एशियाई हाथी की त्वचा कोशिकाओं के डीएनए से बदला गया है।

ऎसा माना जाता है कि मैमथ भारी सर्दी के कारण विलुप्त हो गए। क्लोनिंग से जुड़े सवाल पर जॉर्ज कहते हैं कि किसी भी विलुप्त जानवर को वापस दुनिया में लाया जा सकता है बशर्ते उससे मिलती-जुलती प्रजाति çंजंदा हो। जैसे अगर डायनासोर को अस्तित्व में लाना है तो उसके लिए ऑस्ट्रिच पक्षी पर अध्ययन करना पड़ेगा।

ऎसे होते थे मैमथ
मैमथ विशालकाय हाथियों की एक प्रजाति थी जिसके घुमावदार दांत 4 से 5 फीट लंबे थे। मैमथ का वजन और लंबाई आज के हाथियों की तुलना में लगभग डेढ़ गुणा अधिक था। इसका वजन करीब 13 टन व लंबाई 13 फीट थी। मैमथ के पूरे शरीर पर घने लंबे बाल होते थे। मादा मैमथ 22 महीने गर्भधारण के बाद बच्चे को जन्म देती थी। मैमथ के विलुप्त होने के समय के बारे में वैज्ञानिकों के कई मत हैं।

बैक्टीरिया से जैव ईंधन बनाएंगे
जॉर्ज को एडवांस जेनेटिक रिसर्च के लिए जाना जाता है। इसमें उनके 60 से अधिक पेटेंट हैं। न्यूरोसाइंस व ब्रेन मैपिंग के क्षेत्र में उन्होंने कई खोज की है। 2012 में वे दिमाग की सक्रियता मापने के लिए बनाई गई ब्रेन इनीशिएटिव टीम में शामिल थे। नई तकनीक विकसित कर डीएनए के जरिए जटिलतम आनुवांशिक रोगों से लड़ने, बैक्टीरिया से बने कार्बन डाई ऑक्साइड को जैव ईंधन के रूप में प्रयोग व विलुप्त प्रजातियों को फिर से दुनिया में लाने के लिए शोध कर रहे हैं।

बचपन में ही कम्प्यूटर बनाने लगे
जॉर्ज अपने फिजिशियन पिता द्वारा प्रयोग में लिए जाने वाली तकनीक को देखकर काफी प्रभावित होते थे। कम्प्यूटर उनके लिए दिलचस्पी का विषय था। जब उनके भाई और दोस्त खेलने या दूसरे कामों में लगे होते, तब वे छोटा एनालॉग कम्प्यूटर बनाने में व्यस्त रहते थे। नौ साल की उम्र में उन्होंनेे न्यूयॉर्क विश्व मेले मेे विज्ञान की दुनिया को बेहद करीब से देखा। तभी से उन्होंने इस क्षेत्र में भविष्य बनाने की ठान ली।

हफ्ते में 100 घंटे लैब में बिताते थे
जॉर्ज का जन्म अमरीका के फ्लोरिडा में हुआ था। वे फिलिप्स एकेडमी बोर्डिग स्कूल से पढ़ाई के बाद डयूक यूनिवर्सिटी से जीव विज्ञान व रसायनशास्त्र में बैचलर्स डिग्री करने लगे। ग्रेजुएशन में जॉर्ज एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी के जरिए आरएनए, डीएनए और थ्रीडी स्ट्रक्चर पर अध्ययन कर रहे थे। रिसर्च को लेकर वे इतने जुनूनी थे कि हफ्ते में करीब 100 घंटे वे लैब में ही बिताते थे, इस वजह से उनकी दूसरी क्लासेज प्रभावित हुईं और डयूक यूनिवर्सिटी के डिग्री प्रोग्राम से नाम वापस लेना पड़ा। 1977 में वे हार्वर्ड में सहायक प्रोफेसर बने।

बीमारी नहीं डिगा पाई हौसला
बचपन में वे डिस्लेक्सिया और किशोरावस्था में निद्रारोग से पीडित थे। 1994 में जॉर्ज को हार्ट अटैक आया था। वहीं वर्ष 2002 में उन्हें स्किन कैंसर से जूझना पड़ा। 2012 में उनकी कोलोनोस्कोपी सर्जरी भी हो चुकी है।

जेनेटिक्स की वजह से एक दिन मेडिकल साइंस इतनी तरक्की कर लेगा कि सेहत संबंधी सभी समस्याओं का हल मिल जाएगा। जॉर्ज चर्च, 61 वर्ष, जेनेटिक्स प्रोफेसर, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी

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