जापान की टोहोकु यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने लैब में एक छोटी धरती बनाई। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के गर्भ में होने वाली हलचल के आंकड़ों को एक्सपेरिमेंट के डाटा से मिलाया। इसके बाद ही धरती के गर्भ में 85 फीसदी लोहा,10 फीसदी निकेल और बची हुई 5 फीसदी चीज के सिलिकन होने का दावा किया ।
वॉशिंगटन. माना जाता है कि धरती के गर्भ में 85 फीसदी लोहा है और 10 फीसदी निकेल। लेकिन बची हुई 5 फीसदी चीज क्या है? यह अब तक वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली बनी हुई थी। अब जापानी वैज्ञानिकों के एक दल ने ने इस रहस्य से पर्दा उठाने का दावा किया है।
दशकों से चल रह थी खोज
जापान के वैज्ञानिक कई दशकों से इस गुमशुदा के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए खोज कर रहे थे। अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि यह तत्व सिलिकन हो सकता है। सैन फ्रांसिस्को में अमरीकन जियोफिजिकल यूनियन की मीटिंग में जापानी वैज्ञानिकों ने अपनी खोज सामने रखी।
ऐसी है धरती की संरक्षना
धरती का गर्भ (अर्थ कोर) बाहरी सतह से तरकीबन 5,100 से 6,371 किलोमीटर नीचे है। इसका आकार एक बड़े गेंद जैसा है और व्यास 1,200 किलोमीटर माना जाता है। सीधे तौर पर इतनी गहराई में पहुंचना इंसान के लिए फिलहाल संभव नहीं है। दुनिया में अभी तक सबसे गहरी खुदाई 4 किलोमीटर तक ही हो पाई है।
ऐसे किया गया अध्ययन
पृथ्वी को खोदने के बजाए जापान की टोहोकु यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने लैब में एक छोटी धरती बनाई। उन्होंने इसे हूबहू धरती की तरह बनाया। इसमें बाहरी सतह, भीतरी मिट्टी, क्रस्ट, मैंटल कोर और कोर भी बनाई गई। कोर या गर्भ बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने लोहे, निकेल और सिलिकन का इस्तेमाल किया। फिर इस मिश्रण को 6,000 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर भारी दबाव में रखा गया। नतीजे हूबहू धरती जैसे ही समामने आए। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के गर्भ में होने वाली हलचल (सिस्मिक मूवमेंट) के आंकड़ों को एक्सपेरिमेंट के डाटा से मिलाया। इसके बाद ही इसके सिलिकन होने का दावा किया गया। हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पृथ्वी के कोर में लोहे, निकेल और सिलिकन के साथ ऑक्सीजन भी हो सकती है। धरती की असीम गहराई को समझने से पृथ्वी की सेहत और ब्रह्मांड के बारे में काफी कुछ पता चल सकेगा।
यह थी उलझन
विज्ञान जगत के सामने सवाल था कि 6,000 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में लोहे और निकेल को जोड़े रखने वाला आखिर कौन सा तत्व हो सकता है। वैज्ञानिकों का अनुमान था कि यह कोई हल्का तत्व ही होगा, जो अपने गुणों के आधार पर इन धातुओं से जुड़ सके।