विवादित दक्षिण चीन सागर में अमरीका और भारत की नौसेना के साझा गश्ती योजना पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की
नई दिल्ली। विवादित दक्षिण चीन सागर में अमरीका और भारत की नौसेना के साझा गश्ती योजना पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। चीन ने चेतावनी दी है कि क्षेत्र के बाहर के देशों के हस्तक्षेप से यहां शांति और स्थिरता को खतरा है। चीन ने इस संबंध में एक न्यूज एजेंसी से प्रतिक्रिया मांगे जाने पर ईमेल के जरिए अपना बयान जारी किया है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हॉन्ग ली ने कहा कि इस क्षेत्र के बाहर के देशों को दक्षिण चीन सागर में सेना का जमावड़ा रोकना होगा। उन्हें समुद्र में आने-जाने की स्वतंत्रता के बहाने तटीय देशों की संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ रोकना होगा।
उधर, अमरीका इस मामले में चीन के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार करना चाहता है। इसी वजह से वह अपने क्षेत्रीय सहयोगियों के अलावा एशियाई देशों को भी इसमें शामिल करना चाहता है। इसी नीति के तहत वह गश्ती में भारतीय नौसेना को भी शामिल करना चाह रहा है। साउथ चाइना सी में बीजिंग सात टापू बना रहा है। इस वजह से पहले ही तनाव बना हुआ है।
भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं
भारत और अमरीका में हाल के दिनों में नौसैनिक सहयोग बढ़ा है। भारत ने कभी भी किसी देश की नौसेना के साथ मिल कर गश्ती नहीं की है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार फिलहाल अपनी यह नीति बदलने के पक्ष में भी नहीं है। नीति के तहत भारत केवल संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले ही किसी दूसरे देश की सेना के साथ शामिल होता है। प्रवक्ता ने यह उदाहरण भी दिया कि भारत अदन की खाड़ी में एंटी पायरेसी मिशन चला रहे दर्जनों देशों के साथ शामिल होने के बजाय 2008 से अपना अलग अभियान चला रहा है। अमरीकी रक्षा अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि साउथ चाईना सी में साझा गश्त को लेकर भारत से बातचीत हुई है और उम्मीद है कि अगले साल से दोनों देश मिल कर गश्त लगाएंगे। अधिकारी ने इस बारे में कोई ब्योरा नहीं दिया।
क्यों है इस क्षेत्र को लेकर विवाद
चीन दक्षिण चीन सागर में 12 समुद्री मील इलाके पर हक जताता है। इस इलाके को 12 नॉटिकल मील टेरिटोरियल लिमिट कहते हैं। ये इलाका दक्षिण चीन सागर में बने आर्टिफिशियल आईसलैंड के आसपास का ही है। चीन के अलावा दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देश (ताइवान, फिलीपींस, वियतनाम और मलेशिया) भी इस इलाके पर अपना दावा जताते हैं। पिछले महीने बराक ओबामा के साथ मीटिंग में शी जिनपिंग ने कहा था कि वे इस इलाके में मिलिट्री तैनात नहीं करना चाहते। हालांकि, अमरीका को लगता है कि चीन यहां मिलिट्री एक्टिविटीज बढ़ा रहा है। इसलिए वह इस इलाके में आवाजाही कर रहा है।
विवाद की वजह
साउथ चाइना सी में तेल और गैस के कई बड़े भंडार दबे हुए हैं। अमरीका के मुताबिक, इस इलाके में 213 अरब बैरल तेल और 900 ट्रिलियन क्यूबिक फीट नेचुरल गैस का भंडार है। इस समुद्री रास्ते से हर साल 7 ट्रिलियन डॉलर का बिजनेस होता है। चीन ने 2013 के आखिर में एक बड़ा प्रोजेक्ट चलाकर पानी में डूबे रीफ एरिया को आर्टिफिशियल आईसलैंड में बदल दिया था।
भारत ने भी दी थी चीन को चेतावनी
बीते साल भारत ने कहा था कि हम भी साउथ चाइना सी में अपना शिप भेजने या उसके ऊपर उड़ान भरने को लेकर आजाद हैं। वह खुला इलाका है। यहां जहाज जा सकते हैं। भारत ने कहा था कि अगर इस इलाके पर विवाद हैए तो उसका हल इंटरनेशनल लॉ के दायरे में किया जाए। भारत का 55 प्रतिशत समुद्री कारोबार साउथ चाइना सी के रास्ते से ही होता है।
अमरीका ने कहा, अंतराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक हल होगा साउथ चाइना सी का मामला
इधर व्हाइट हाउस की ओर से कहा गया कि दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर चीन को कड़ा संदेश देना चाहिए तथा इस विवाद को वैश्विक नियमों के माध्यम से हल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दक्षिण चीन सागर विवाद को वैश्विक नियमों के अनुसार हल करना चाहिए न कि डरा धमकाकर। राष्ट्रीय उप सुरक्षा सलाहकार बेन रोड्स ने कहा था कि चीन सागर का विवाद अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत हल किया जाना चाहिए न कि बड़े देश छोटे देश को धमका कर इसका समाधान करें।