हिमालय के ऊंचे पठारो में से एक डोकलम पर आज जितना विवाद है, एक समय में ये सबसे शांत इलाकों में से एक था। भारत की स्वतंत्रता से पहले इसपर न तो चीन ने कोई दिलचस्पी दिखाई और न ही ब्रिटिश शासकों ने।
नई दिल्ली: हिमालय के ऊंचे पठारो में से एक डोकलम पर आज जितना विवाद है, एक समय में ये सबसे शांत इलाकों में से एक था। भारत की स्वतंत्रता से पहले इसपर न तो चीन ने कोई दिलचस्पी दिखाई और न ही ब्रिटिश शासकों ने। लेकिन 1962 में भारत-चीन युद्द ते बाद से ही भारत-चीन और भूटान के बीच पड़ने वाला ये पठार दोनों मुल्कों के बीच विवाद की जड़ बन गया। भूटान जिसे डोकलाम कहता है, जिन उसी इलाके को डोंगलांल क्षेत्र का हिस्सा मानता है और दावेदारी पेश करता है।
पूर्वोत्तर राज्यों पर है चीन की नजर
भूटान के क्षेत्र में पड़ने वाले डोकलम पर चीन अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। हाल के वर्षों ने चीन ने इसके आसपास अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने के लिए तोपखाने, टैंक, हथियार भारी वाहनों के चलने लायक सड़क बनानी शुरु कर दी। डोकलम इसलिए ज्यादा महत्वूर्ण है क्योंकि ये भारत की उस सीमा से जुड़ती है, जहां से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का रास्ता खुलता है।
हर बार बेनतीजा रहती है फ्लैग मीटिंग
बताया जा रहा है कि डोकलाम के आसपास वाले इलाके से भारत के बंकरों को हटाने को लेकर 1 जून को चीन की सेना की चेतावनी को बंगाल के सुकना में स्थित 33 कोर मुख्यालय को दी गई। जिसके बाद 6 जून की रात को चीन के 2 बुलडोजरों ने बंकरों को नष्ट कर दिया। इसका विरोध करने पर भारतीय सैनिकों के साथ चीनी सैनिकों ने धक्कामुक्की भी की। चीनी सैनिक अपनी स्थिति से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। 20 जून को इसी मसले पर दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच फ्लैग मीटिंग हुई थी जिसका कोई हल नहीं निकला था। इससे पहले भी चीन की हठ की वजह से कई फ्लैग मीटिंग बेनतीजा साबित हुई हैं।
1962 के बाद सबसे लंबा गतिरोध
चीन की इस हरकत के बाद भारत ने सिक्किम के आसपास के इलाके में और अधिक सैनिकों की तैनाती कर दी। दोनों सेनाओं के बीच 1962 के बाद ये सबसे लंबा गतिरोध है।
भारत ने तैनात किए गैर-लड़ाकू सैनिक
सूत्रों का कहना है कि कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन द्वारा भारत के दो बंकरों को तबाह किए जाने और आक्रामक रुख अपनाए जाने के बाद भारत ने और अधिक गैर-लड़ाकू मोड पर सैनिकों की तैनाती कर दी है।
2013 में 21 दिन का चला था गतिरोध
इससे पहले वर्ष 2013 में जम्मू-कश्मीर के लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र में चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा में 30 किलोमीटर अंदर डेपसांग प्लेन्स तक आ गए थे, उस समय दोनों देश के बीच 21 दिन तक गतिरोध चला था। चीन ने इसे अपने शिनिायांग प्रांत का हिस्सा होने का दावा किया था। हालांकि उन्हें वापस खदेड़ दिया गया। था
चीन ने भारत को 1962 याद दिलाना चाहा
ताजा विवाद के बाद चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि एकबार भारत को कड़ा सबक सिखाना चाहिए। अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा कि भारत अगर चीन के साथ अपने सीमा विवादों को और हवा देता है तो उसे 1962 से भी गंभीर नुकसान झेलना पड़ेगा।
1962 और अभी के भारत में फर्क
जिसके बाद 30 जून को रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने चीन को जवाब देते हुए कहा कि 1962 और 2017 के भारत में बहुत फर्क है, इसलिए अगर भारत संघर्षो को उकसाता है तो चीन को वर्ष 1962 की तुलना में कहीं अधिक नुकसान झेलना पड़ेगा।