संपादकीय के मुताबिक, जो हकीकत नहीं, केवल खयाली पुलाव है, उसके बारे में सोचने के बजाय प्रधानमंत्री को बैठ कर ठंडे दिमाग से क्षेत्रीय मुद्दे सुलझाने के बारे में सोचना चाहिए। कश्मीर पर पाकिस्तान का आधिकारिक रुख यह है कि वह कश्मीरियों को स्वतंत्रता संघर्ष में नैतिक समर्थन देगा और आत्मनिर्णय के उनके अधिकार के लिए आवाज उठाना जारी रखेगा।
समाचार पत्र ने कहा, यह रुख सराहनीय है, लेकिन बिना किसी स्पष्ट नीति के कश्मीर के विलय के बारे में बयान देना अनुचित लगता है। संपादकीय के मुताबिक, ये शब्द बोलकर प्रधानमंत्री भारतीय प्रशासन को चुनौती दे रहे हैं और केवल पाकिस्तान के लिए ही नहीं, बल्कि कश्मीरियों के लिए भी समस्याएं आमंत्रित कर रहे हैं।
समाचार पत्र ने कहा कि पाकिस्तान के साथ जम्मू एवं कश्मीर के विलय के बारे में बातें करना आसान है, लेकिन यह कोई नहीं जानता कि ऐसा कैसे किया जा सकता है। संपादकीय के मुताबिक, यह केवल युद्ध या बातचीत से ही हो सकता है। इसका दूसरा कोई रास्ता नहीं है…कश्मीरी पहले से ही इस संघर्ष की भारी कीमत चुका रहे हैं।
संपादकीय में सवाल उठाया गया है, पाकिस्तान कश्मीरियों को क्या दे सकता है, जब वह खुद ही कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो उसकी अपनी स्थिरता के लिए खतरा बन चुकी हैं?
संपादकीय में कहा गया है कि और अधिक जमीन पर कब्जा करने की जगह पाकिस्तान को पाकिस्तान शासित कश्मीर को एक आदर्श राज्य बनाने की जरूरत है। संपादकीय के मुताबिक, पिछले 67 वर्षों से पाकिस्तान अपने खुद के कश्मीर ‘आजाद जम्मू एवं कश्मीर’ में सुशासन सुनिश्चित करने में नाकाम रहा है।
समाचार पत्र में कहा गया है, पाकिस्तान और भारत दोनों सरकारों को अपने नागरिकों पर रहम करना चाहिए और एक स्थायी शांति समझौते के लिए बातचीत करनी चाहिए।