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पाकिस्तान में लकवाग्रस्त हत्यारे की फांसी फिर टली

Published: Nov 26, 2015 12:08:00 pm

मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मंगलवार को अपनी रपट में कहा था कि
पाकिस्तान में फांसी की सजा पर से रोक हटाने के बाद 299 मुजरिमों को फांसी
दी जा चुकी है

Hanging

Hanging

इस्लामाबाद। पाकिस्तान में लकवे की वजह से व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर एक हत्यारे की फांसी चौथी बार टाल दी गई है। उसे आज (बुधवार को) फांसी दी जानी थी, लेकिन नियत समय के चंद घंटे पहले इसे रोकने का आदेश दिया गया। अब्दुल बासित नामक इस आदमी ने 2009 में एक आदमी की हत्या की थी। बासित ने इलजाम को गलत बताया था।

इससे पहले भी बासित की फांसी को तीन बार टाला जा चुका है। मानवाधिकार संगठन हर बार यह मुद्दा उठाते हैं कि एक लकवे के शिकार आदमी को फांसी देना पूरी तरह से गलत है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से मंगलवार शाम बयान में कहा गया कि फांसी को टाला जाए, ताकि राष्ट्रपति ममनून हुसैन, बासित की मेडिकल स्थिति के बारे में जांच करा
सकें।

एक बयान में राष्ट्रपति ने कहा कि बासित के मानवाधिकारों की रक्षा की जाएगी। बासित की मां नुसरत परवीन ने यह खबर सुनकर संवाददाताओं से कहा, हमें टीवी पर यह खबर देखकर बहुत खुशी हुई कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने फांसी रोक दी है। हमें इस बारे में जेल कर्मियों से भी खबर मिली है। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यह रोक दो महीने बाद भी जारी रहेगी।

पाकिस्तान में 2014 में फांसी की सजा पर लगी रोक हटाई गई थी। यह रोक पेशावर के स्कूल पर आतंकवादियों के हमले में 150 लोगों की मौत के बाद हटाई गई थी। हमले में मरने वालों में अधिकांश बच्चे थे।

मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मंगलवार को अपनी रपट में कहा था कि पाकिस्तान में फांसी की सजा पर से रोक हटाने के बाद 299 मुजरिमों को फांसी दी जा चुकी है। बासित की फांसी 300वीं होगी। एमनेस्टी ने कहा है कि इस मामले में सबसे ‘जानलेवा’ महीना अक्टूबर रहा, जिसमें 45 लोगों को फांसी दी गई।

एमनेस्टी ने एक बयान में कहा था कि, पाकिस्तान फांसी पर रोक हटाए जाने के बाद जल्द ही 300 लोगों को फांसी देने वाला देश बन जाएगा। ऐसा कर वह बेशर्मी से दुनिया के सबसे खराब मौत की सजा देने वालों में अपनी जगह बना लेगा।

फांसी की सजा पर रोक हटाए जाने के बाद तय हुआ था कि सिर्फ आतंकवादियों को सूली पर लटकाया जाएगा। लेकिन, मार्च में इसका दायरा बढ़ाकर मृत्युदंड अपराध के सभी मामलों तक बढ़ा दिया गया।
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