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मोदी के विदेश दौरों से घबराई पाक सेना,नवाज कैबिनेट तलब

Published: Jun 20, 2016 12:08:00 pm

सेना ने पिछले हफ्ते गृह मंत्री को छोड़कर नवाज शरीफ सरकार की पूरी कैबिनेट
को रावलपिंडी स्थित मिलिट्री जनरल हेडक्वॉर्टर में तलब किया

nawaz-raheel

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इस्लामाबाद। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विदेशी दौरों से पाकिस्तान की सेना घबरा गई है। सेना ने पिछले हफ्ते गृह मंत्री को छोड़कर नवाज शरीफ सरकार की पूरी कैबिनेट को रावलपिंडी स्थित मिलिट्री जनरल हेडक्वॉर्टर में तलब किया। बैठक में बाहरी सुरक्षा और विदेश से संबंधित नीतियों पर चर्चा हुई। बैठक में सेना के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे। बैठक का मकसद सरकारी फैसलों से सेना के दबदबे को दिखाना था।

सरताज अजीज को देनी पड़ी सफाई
रावलपिंडी में सेना के साथ पाकिस्तानी कैबिनेट की मीटिंग के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। मीटिंग से साबित होता है कि पाकिस्तान में सेना अहम फैसले ले रही है न कि चुनी हुई सरकार। पर्यवेक्षकों का कहना है कि विदेश मंत्रालय को सेना खुद संभाल सकती है। सेना के बढ़ते प्रभुत्व के चलते सरकार की हो रही आलोचनाओं के बीच नवाज शरीफ के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने सांसदों के सामने सफाई दी है कि देश की विदेश नीति में सेना का कोई हस्तेक्षप नहीं है। पिछले कुछ सालों में हमने मिलिट्री से पड़ोसी भारत से कई मसलों पर कलह के कारण पर्याप्त इनपुट लिए हैं। इस वजह से हमें सेना की कठपुतली बताया जा रहा है लेकिन यह गलत है।

नवाज शरीफ को करना पड़ रहा है दबाव का सामना
पाकिस्तान मुस्लिम लीग के दिग्गज नेताओं का कहना है कि जब नजाव शरीफ ने सत्ता संभाली थी तो वह पाकिस्तान के नीति निर्माण में सेना की भूमिका को कम करना चाहते थे लेकिन उन्हें हर कदम पर दबाव का सामना करना पड़ रहा है। विपक्षी दल पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ पार्टी के सांसद अली मोहम्मद खान ने नेशनल असेंबली में कहा,राजनेता जनता के प्रति जवाबदेह हैं लेकिन कोई आर्मी जनरल आता है तो उससे कोई भी सवाल नहीं पूछ सकता। मैं सभी राजनेताओं से अपील करता हूं कि वे लोगों की अपेक्षाओं पर खरे उतरें। हमें जनता ने चुना है और हम ही देश की नीति का निर्माण करेंगे। पाकिस्तान में लोकतंत्र समर्थकों का कहना है कि सेना की दखलअंदाजी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पाकिस्तानी विश्लेषक आमिर मतीन ने कहा कि सेना को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर संपर्क करना चाहिए लेकिन विदेश नीति से जुड़े मसलों पर फैसला इस्लामाबाद में होना चाहिए न कि रावलपिंडी में।

इन कारणों से हावी हो रही है पाकिस्तान की सेना
पिछले दो साल में नवाज शरीफ शासन की छवि एक निस्साहय सरकार की बनी है। भारत से संबंधों में ठहराव,अमरीका के साथ बिगड़ते रिश्ते,अफगानिस्तान से बढ़ते तनाव और ईरान के साथ भरोसे में आई कमी नवाज शरीफ पर भारी पड़ रही है। पनामा पेपर्स में खुद नवाज का नाम आने के बाद उनकी साख गिरी है। हार्ट सर्जरी के कारण भी नवाज शरीफ अहम
कामकाज से दूरे हैं।

पाकिस्तान में भारत की विदेश नीति के बढ़ते असर को लेकर काफी चर्चा है। सेना के अफसर पाक विदेशी नीति को असफल बता रहे हैं। हाल ही में नरेन्द्र मोदी ने अमरीका समेत 5 देशों की यात्रा की थी। एनएसजी की सदस्यता को लेकर अमरीका भी खुले तौर पर भारत के समर्थन में है। एनएसजी की सदस्यता को लेकर पाकिस्तान ने चीन से समर्थन मांगा था। इस मसले पर सपोर्ट के लिए अमरीका में पाक राजदूत ने ओबामा प्रशासन को पत्र भी लिखा था। पाकिस्तान की सदस्यता को लेकर अमरीका का कोई सकारात्मक रवैया देखने को नहीं मिला।

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