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एशिया

पाकिस्तान में लकवाग्रस्त दोषी को दी जाएगी फांसी

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि अगर यह फांसी दी गई तो देश में फांसी की सजा पर से रोक हटाने के बाद यह 300वीं फांसी होगी

Nov 25, 2015 / 10:53 am

जमील खान

Paralytic Guilty

Paralytic Guilty

इस्लामाबाद। पाकिस्तान में जेल अधिकारी एक ऐसे मुजरिम को बुधवार को फांसी देने की तैयारी में लगे हुए हैं जिसके कमर के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त है। हत्या के दोषी इस मुजरिम को जेल में रहने के दौरान ट्यूबरकुलर मेनिंजाइटिस की बीमारी भी हो गई। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि अगर यह फांसी दी गई तो देश में फांसी की सजा पर से रोक हटाने के बाद यह 300वीं फांसी होगी।

पाकिस्तान में 2014 में फांसी की सजा पर लगी रोक हटाई गई थी। यह रोक पेशावर के स्कूल पर आतंककारियों के हमले 150 लोगों की मौत के बाद हटाई गई थी। हमले में मरने वालों में अधिकांश बच्चे थे।

अब्दुल बासित (43) नामक इस मुजरिम के कमर से नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त है। उसके एक महिला से संबंध थे। बासित को 2009 में इस महिला के चाचा की हत्या का दोषी पाया गया था। बासित ने इस इलजाम को गलत बताया था। बासित को बुधवार को फांसी दी जानी है।

मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मंगलवार को अपनी रपट में कहा कि पाकिस्तान में फांसी की सजा पर से रोक हटाने के बाद 299 मुजरिमों को फांसी दी जा चुकी है। एमनेस्टी ने कहा है कि इस मामले में सबसे ‘जानलेवा’ महीना अक्टूबर रहा, जिसमें 45 लोगों को फांसी दी गई।

एमनेस्टी के दक्षिण एशिया के शोध निदेशक डेविड ग्रिफिथ्स ने एक बयान में कहा है, पाकिस्तान फांसी पर रोक हटाए जाने के बाद जल्द ही 300 लोगों को फांसी देने वाला बन जाएगा। ऐसा कर वह बेशर्मी से दुनिया के सबसे खराब मौत की सजा देने वालों में अपनी जगह बना लेगा।

उन्होंने कहा, अगर पाकिस्तान बासित को फांसी न दे तो भी यह सच नहीं बदलेगा कि पाकिस्तान लगभग प्रतिदिन एक व्यक्ति को फांसी दे रहा है। यह कहना मुश्किल है कि इतनी फांसियों से देश में आतंकवाद पर किसी तरह का काबू पाया जा सका है। पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की अध्यक्ष जोहरा यूसुफ ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पत्र भेजकर फांसी को निलंबित करने का आग्रह किया है।

जोहरा ने लिखा है, यह हैरत में डालने वाला है कि बासित की फांसी के सिलसिले में तीसरी बार आदेश जारी किया गया है। जबकि, उसकी फांसी की वैधानिकता पर जताई गई चिंताएं पहले की ही तरह बनी हुई हैं और इसलिए भी कि वह फांसी दिए जाने वालों की श्रेणी में आता ही नहीं है।

यह तीसरी बार है, जब बासित की फांसी का वारंट जारी हुआ है। इससे पहले उसे 29 जुलाई को फांसी दी जानी थी। लेकिन, मामले की वैधानिकता पर सवाल उठाए जाने के बाद लाहौर हाई कोर्ट ने फांसी रोक दी थी।

लाहौर हाई कोर्ट में बासित की फांसी के खिलाफ दायर याचिका खारिज हो गई थी। इसके बाद 22 सितंबर को उसकी फांसी का फिर वारंट जारी हुआ। लेकिन, सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी थी।

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