नेपाल में संविधान संशोधन विधेयक पेश होने और पांचवां अलग प्रांत बनाने के फैसले के खिलाफ लोगों ने प्रदर्शन किया।
काठमांडू। नेपाल में संविधान संशोधन विधेयक पेश होने और पांचवां अलग प्रांत बनाने के फैसले के खिलाफ लोगों ने गुरुवार को प्रदर्शन किया। नये पांचवे प्रांत बनाये जाने के विरोध में लोगों ने बुटवल, रुपनदेही, भैरावाहा, पाल्पा और विभिन्न इलाकों में प्रदर्शन किये। प्रदर्शन में आम लोगों के साथ-साथ छात्र भी शामिल थे।
बुटवल इलाके में जनजीवन पर इसका सबसे ज्यादा असर दिखा। पूर्वी-पश्चिम राजमार्ग और सिद्धार्थ राजमार्ग पर आवागमन ठप रहा और बाजार भी बंद रहे। इन स्थानों पर शिक्षण संस्थान भी बंद रहें। पाल्पा, गुल्मी, कपिलवस्तु और अरघखांची जिलों में भी प्रदर्शन हुये। नेपाल के नए संविधान में उपेक्षा से नाराज मधेशियों और अन्य जातीय समूहों की बहुप्रतीक्षित मांग को पूरा करने के तहत सरकार ने कल संसद में संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था।
संविधान संशोधन विधेयक का मुख्य विपक्षी दल सीपीएन-यूएमएल विरोध कर रहा है। इसके विरोध में कई जगहों पर कल भी प्रदर्शन किये गये थे। विधेयक में नवलपारसी, रूपनदेही, कपिलवस्तु, बांके, डांग, बरदिया को तराई प्रांत में शामिल करने का प्रस्ताव है जिसे पांचवां प्रांत बनाया जायेगा। इससे पहले गत मंगलवार को मंत्रिमंडल की बैठक में संविधान संशोधन का मसौदा पारित किया। इसके बाद संसद में विधेयक को पेश कर दिया गया।
विधेयक में तीन अन्य अहम मुद्दों-नागरिकता, उच्च सदन में प्रतिनिधित्व और देश के विभिन्न हिस्सों में बोली जाने वाली भाषाओं को मान्यता देने से जुड़े प्रावधान भी है। सरकार ने सीमाओं से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए आयोग बनाने का फैसला भी किया है। यह आयोग पांच जिलों झापा, मोरांग, सुनेसरी, कईलाली और कंचनपुर से जुड़ी समस्याओं का समाधान भी बतायेगा।
गौरतलब है कि सरकार ने ताजा कदम संघीय गठबंधन द्वारा तीन सूत्री समझौते को लागू करने के लिए दी गयी 15 दिन की समय सीमा खत्म होने के बाद उठाया है। संघीय गठबंधन मधेशी दलों और अन्य समुदायों का समूह है, जो उपेक्षित लोगों को और अधिक प्रतिनिधित्व तथा अधिकार देने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहा है।
मधेशी दलों की दो प्रमुख मांगे है प्रांतों की सीमा का फिर से निर्धारण और दूसरा नागरिकता। मधेशी अधिकतर भारतीय मूल के हैं। नये संविधान के विरोध में मधेशी लोगों ने पिछले साल सितंबर से लेकर इस साल फरवरी तक छह महीने का आंदोलन चलाया था। दूसरी और भारत ने इस फैसले का स्वागत करते हुये इसे एक सही दिशा में उठाया गया कदम बताया है। भारतीय अधिकारियों ने भारत में नेपाल के राजदूत दीप कुमार उपाध्याय के साथ बैठक के दौरान इसे एक सकारात्मक कदम बताया है।