देवों के देव महादेव के बारे में कहा जाता है कि वे इतने भोले-भंडारी है कि केवल जल चढ़ाने भर से सबकुछ दे देते हैं
देवों के देव महादेव के बारे में कहा जाता है कि वे इतने भोले-भंडारी है कि केवल जल चढ़ाने भर से सबकुछ दे देते हैं। ऐसे में यदि जल किसी तीर्थ स्थल या कावड़ यात्रा का हो तो मनमांगी मुराद जल्द पूरी होती है। यही वजह है कि श्रावण मास में कावड़ यात्रा से जल लाकर भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने को कोई भी मौका नहीं गंवाते। कावड़ से केवल शिव ही नहीं त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) भी प्रसन्न होते हैं। सच्चे मन से कावड़ लाने से बृहस्पति, केतु और चंद्र भी अनुकूल परिणाम देने लगते हैं।
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यात्रा में शिवजाप से दोगुना लाभ कावड़ से केवल शिव ही नहीं त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) भी प्रसन्न होते हैं। ज्योतिष में कावड़ यात्रा को छोटी यात्रा की संज्ञा दी गई है। कावड़ यात्रा में सड़क यात्रा से केतु ग्रह सुफल देता है। वहीं इस दौरान पीले वस्त्र धारण करने से बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं। तीर्थों का जल भरकर लाने से चंद्रदेव की कृपा मिलती है। वहीं यात्रा में शुद्ध सात्विक आचरण और मर्यादित रहने से शनि और राहु प्रसन्न होते हैं। यात्रा में माता पिता और बुजुर्गों को सम्मान देने और परंपरा निभाने से सूर्य देव और पितृ देव प्रसन्न होते हैं। अच्छा बोलने से वाणी के देवता बुध और शुक्र प्रसन्न होते हैं।
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रिझाने का सहज रास्ता कावड़ चढ़ाते वक्त ‘
ऊँ नम: शिवाय‘, ‘महामत्युंजय मंत्र और रुद्राष्टाधायी’ के मंत्र जाप करते हुए भगवान शिव का अभिषेक करें। कावड़ यात्रा के दौरान भी शिव मंत्रों का जाप दोगुना फल देता है। सच्ची श्रद्धा से की गई कावड़ यात्रा भोले बाबा को प्रसन्न करने का सबसे सहज माध्यम है।
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प्राचीन परंपरा शिव पर जल चढ़ाने की परंपरा प्राचीन है। बात देवासुर संग्राम की है। सागर मंथन से निकले विष को भोलेनाथ ने विष पी लिया। इसके बाद वे छटपटाने लगे और तन-मन को शांत करने के लिए हिमालय की ओर भागे। उधर देवों की सेना भी मटकी में जल भर-भर कर शिव को शांत करने में जुट गई। वही ज्वाला अभी भी शांत हुई कि नहीं, पर शिव भक्तों की शिव पर जल चढ़ाने की यह परंपरा आज भी जारी है।