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यूपी में ओवैसी को मिल सकता है इस पार्टी का साथ, कई बड़े नेताओं का टूटेगा सपना 

locationआजमगढ़Published: Sep 30, 2016 05:57:00 pm

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में यह पार्टी करीब दो दर्जन छोटे संगठनों और दलों के साथ गठबंधन कर मैदान में उतर रही है… 

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आजमगढ़. राजनीतिक दल लाख दावा करें यूपी चुनाव 2017 में मुद्दा विकास होगा लेकिन सच यही है यहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के साथ ही आतंवाद को मुद्दा बनाने की कोशिश शुरू हो गई है। उलेमा कौंसिल ने तो इसकी शुरूआत भी कर दी है। राहुल गांधी का पूरे यूपी में विरोध पार्टी के इसी रणनीति का हिस्सा है। वहीं सपा और बसपा भी भाजपा को सांप्रदायिक आधार पर घेरने का प्रयास कर रही है। राजनीति के जानकार भी यह मानने लगे है कि चुनाव में फिर वही मुद्दे तैरेंगे। सत्ता में वही आएगा जिसके साथ 18 से 32 साल वाली युवा पीढ़ी खड़ी होगी।

गौर करें तो वर्ष 2007 के चुनाव में अपराध और कानून व्यवस्था के मुद्दे पर लोगों ने सपा को नकार दिया था और बसपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयी थी। वर्ष 2008 में हुए बटला इनकाउंटर और आतंकी वारदातों में मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारी के बाद यूपी में आतंकवाद बड़ा मुद्दा बना। 

सपा ने इस मुद्दे पर खुलकर राजनीति की और उलेमा कौंसिल का जन्म हुआ। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा जोर पकड़ा और उलेमा कौंसिल को अच्छा खासा वोट मिला। आजमगढ़ से बीजेपी की जीत की प्रमुख वजह उलेमा कौंसिल रही। यहीं नहीं पंचायत चुनाव उलेमा कौंसिल ने जिला पंचायत में कई सीटें जीतने में सफल रही।

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा के मंत्रियों के भ्रष्टाचार के साथ ही आतंकवाद का मुद्दा हाबी रहा। उलेमा कौंसिल को सगड़ी छोड़ दिया जाय तो आजमगढ़ की ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस से ज्यादा वोट हासिल करने में सफल रही। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में यह पार्टी करीब दो दर्जन छोटे संगठनों और दलों के साथ गठबंधन कर मैदान में उतर रही है। पार्टी ने आरक्षण की समीक्षा, गरीब सवर्णो को आरक्षण सहित कई मुद्दों को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया है, लेकिन यह पार्टी आज भी आतंकवाद के आसपास ही घूमती नजर आ रही है। जिस तरह से पार्टी के लोग यूपी में राहुल गांधी का विरोध कर रहे हैं और बटला एनकाउंटर की बरसी पर जिस तरह से इनके द्वारा आजमगढ़ में तांडव किया गया उससे साफ है कि चुनाव में यह पार्टी फिर आतंकवाद को भुनाने का प्रयास करेगी।

वहीं सपा दावा तो विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने का कर रही है लेकिन पार्टी के नेता सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। हाल में कुछ डिबेटों में इसकी बानगी साफ दिखी है। एआईएमआईएम सपा के इस काम को और आसान बना रही है। इस पार्टी के सभी सीटाों पर चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद ध्रुवीकरण और तेज होता दिख रहा है। वैसे संभावना यह भी जताई जा रही है कि ओवैसी की पार्टी कौमी एकता दल से गठबंध कर सकती है यदि ऐसा होता है तो चुनाव में ध्रुवीकरण पक्का माना जा रहा है।
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