बड़वानी. सरदार सरोवर बांध की डूब में आ रही नर्मदा घाटी की आवाज अब देशभर में गूंजेंगी। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) से जुड़े संगठन अलग-अलग राज्यों में नर्मदा घाटी के लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए आंदोलन करेंगे। सोमवार को विभिन्न राज्यों से आए एनएपीएम और अलग-अलग संगठनों के कार्यकर्ताओं ने नर्मदा घाटी के डूब प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर विस्थापितों से चर्चा की। एनएपीएम ने बिना पुनर्वास के सरकार द्वारा हजारों लोगों की जल हत्या की कड़ी निंदा की। साथ ही अगले सप्ताह से नर्मदा घाटी में नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथ बड़ा आंदोलन करने की रणनीति भी तैयार की। सोमवार को विभिन्न राज्यों से आए जन आंदोलन के 30 प्रतिनिधि बड़वानी पहुंचे। यहां पहुंचे एनएपीएम कार्यकर्ता दो दिन तक नर्मदा घाटी के डूब गांवों में जानकारी लेने पहुंचेंगे। सोमवार को एनएपीएम कार्यकर्ताओं ने नर्मदा घाटी के पिपरी, छोटा बड़दा, सोंदुल, निसरपुर, भवरिया, कड़माल, एकलबारा व सेमल्दा गांव का दौरा किया। जन संगठनों ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की 32 साल की सत्याग्रही संघर्ष का पूरा समर्थन करते हुए केंद्र्र और राज्य सरकार के दमनकारी और अमानवीय कृत्य को धिक्कारा। सभी आंदोलनों के प्रतिनिधियों ने सर्वोच्च अदालत और मप्र उच्च न्यायलय से अपील की कि पूरे घाटी के किसानों, भूमिहीन मजदूरों, मछुआरों, कुम्हारों, दुकानदारों को संपूर्ण पुनर्वास, जमीन, वैकल्पिक आजीविका और पुनर्वास स्थलों में सुविधाओं के बिना गांव खाली न कराया जाए और लोगों का न डूबाया जाए।
चुनाव में जीत के लिए कराए गेट बंद
एनएपीएम कार्यकर्ता व पर्यावरणविद् सौम्या दत्ता ने कहा बिना पुनर्वास, बिना पर्यावरण की रक्षा के झूठी रिपोर्टपेश कर प्रधानमंत्री मोदी ने एनसीए से बांध के गेट बंद कराए है। गुजरात में एक नारा चल रहा हैभागीरथ मोदी, मोदी को भागीरथ बताकर गुजरात में नर्मदा लाने की बात फैलाई जा रही है। हकीकत में मप्र के 192 गांव और 1 नगर की आहुति देकर] गुजरात के भी आधिकांश किसानों को नर्मदा के पानी से वंचित कर अड़ानी, अंबानी और अन्य कंपनियों को पानी देकर लाभ पहुंचाया जा रहा है। ये सब गुजरात में चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री मोदी करा रहे है।
लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा हमला
डूब गांवों का दौरा करने से पहले नर्मदा बचाओ आंदोलन और एनएपीएम कार्यकर्ताओं की एक बैठक नबआं कार्यालय पर हुई।बैठक में प्रदेश के किसानों की बदहाली और जीएसटी द्वारा लाखों नागरिकों और छोटे व्यापारियों पर पडऩे वाले प्रभाव की भी तीव्र आलोचना की गई। एनएपीएम कार्यकर्ताओं ने कहा ऐसे समय में रासुका जैसे कानून की घोषणा करना किसानों, व्यापारियों व नर्मदा घाटी के लाखों लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा नियोजित हमला है। कानून व्यवस्था के नाम पर तानाशाही सरकार सैंकड़ों लोगों की आवाज को दबा रही है। यदि बिना पुनर्वास नर्मदा घाटी के 40 हजार परिवार और लाखों में लोगों को डुबाया गया तो इस घटना को मानव इतिहास में निर्वाचित सरकार द्वारा नरसंहार के रूप में जाना जाएगा।
ये आए घाटी का दर्द जानने
जन आंदोलनों के करीबन 30 प्रतिनिधि, 17,18 जुलाई को नर्मदा घाटी के गांव का दौरा करेंगे। इसमें प्लाचीमाडा संघर्ष समिति केरल से विलायोड़ी वेणुगोपाल, भवानी बचाओ आंदोलन तमिलनाडु से सुंदरम, कोसी नवनिर्माण मंच बिहार से महेंद्र यादव, पश्चिम बंगाल से अमिताव मित्र, तेलांगना से बीरम रामुलु व राजेंद्र, मुंबई के घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन के इम्तियाज भाई, पूनम, एनएपीएम महाराष्ट्र से सुहास कोल्हेकर व प्रसाद, कर्नाटक राज्य किसान संगटन से अखिलेश, उत्तर प्रदेश लोकसमिति से सुरेश, दिल्ली से पर्यावरणविद् सौम्या दत्त, कुसुमम जोसफ, सरथ चेलूर, अनिल, बाबूजी केरल, मीरा, क्रिश्नैय्या तेलंगाना, सतिश ठाकुर उत्तर प्रदेश, हिमशी, जावेद दिल्ली, इत्यादि शामिल है।