बेंगलूरु. कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल बंटवारे को लेकर चले रहे विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित की गई उच्चस्तरीय केंद्रीय तकनीकी तथ्यान्वेषी समिति ने सोमवार को शीर्ष अदालत को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। शीर्ष अदालत की नई तीन सदस्यीय पीठ मंगलवार को मामले की सुनवाई करेगी।
केंद्र सरकार ने 5 अक्टूबर को शीर्ष अदालत के निर्देश के मुताबिक केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष जी.एस.झा की अध्यक्षता में दोनों राज्यों के कावेरी बेसिन क्षेत्र की वस्तुस्थिति का आकलन करने के लिए उच्चस्तरीय तकनीकी समिति का गठन किया था। समिति के सदस्यों ने दोनों राज्यों के कावेरी बेसिन क्षेत्र का दौरा करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। समिति ने अदालत को सौंपी गई 40 पृष्ठों की रिपोर्ट में कहा है कि दोनों ही राज्यों के कावेरी क्षेत्र में पानी की स्थिति काफी गंभीर है और किसान बदहाल हैं।
कर्नाटक में पानी के अभाव में फसलें और तालाब सूख गए हैं। पानी की कमी के कारण किसान व मछुआरे बेरोजगारी और आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। राज्य के कावेरी बेसिन के 48 में से 42 तालुकों को सरकार कम बारिश के कारण सूखा प्रभावित घोषित कर चुकी है। राज्य का मण्ड्या जिला सर्वाधिक प्रभावित है, जहां कई किसानों ने आत्महत्या भी की है। तमिलनाडु में भी पानी की कमी के कारण फसलें खराब हुई है और वहां पशुओं के लिए पानी नहीं है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि दोनों ही राज्यों में गन्ने की खेती के प्रति किसानों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि गन्ने की फसल को ज्यादा पानी की जरुरत होती है। समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि कर्नाटक और तमिलनाडु, दोनों राज्यों को तमिलनाडु और पुदुचेरी में सिंचाई के लिए लोगों के हित के लिए काम करना चाहिए और कर्नाटक के विकास के बारे में सोचना चाहिए। साथ ही राज्य के लोगों को इस बाबत शिक्षित करना चाहिए।
समिति ने दोनों राज्यों के किसानों को फसलों के नुकसान का मुआवजा देने की भी सिफारिश की है। समिति ने रिपोर्ट में कहा कि कावेरी बेसिन क्षेत्र में यह लगातार कम बारिश वाला वर्ष है। पिछले पांच सालों में से तीन साल कम बारिश हुई। कर्नाटक के कावेरी बांधों में इस साल सामान्य बारिश वाले वर्ष की तुलना में 49.76 फीसदी ही पानी की आवक रही है। 13 अक्टूबर को तमिलनाडु के लिए कर्नाटक द्वारा छोड़े जाने वाली पानी के मापन केंद्र बिलीगुंडलू में 40.75 फीसदी पानी की आवक रही।
पानी के बंटवारे का तरीका बदले
समिति ने अपनी रिपोर्ट में दोनों राज्यों के बीच पानी के बंटवारे की मौजूदा पद्धति को पुराना और अवैज्ञानिक बतलाते हुए उसमें बदलाव का सुझाव दिया है।
समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि पानी के वितरण के लिए जो तकनीक लगाई गई है वो पुरानी है। पानी के मोल को किसी ने नहीं समझा। किसानों को दिए जाने वाले पानी का तरीका एक सदी पुराना है, इसलिए पानी की कमी को दूर करने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए। समिति ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था में सिंचाई के लिए पानी का उपयोग बहाव के आधार पर होता है। एक खेत से उफन कर पानी पास के दूसरे खेत में जाता है। इसके कारण पानी की खपत ज्यादा होती है और कम पानी उपलब्धता वाले वर्ष में ज्यादा समस्या होती है क्योंकि तब स्थिति मृदा की नमी पर निर्भर करती है। समिति ने कहा कि पानी के बंटवारे के लिए पाइप का इस्तेमाल करना चाहिए और बंूद-बंूद सिंचाई तकनीक का उपयोग करना चाहिए।
साथ ही समिति ने रिपोर्ट में यह भी कहा है कि समुद्र के तट के इलाकों में भूमिगत जल का इस्तेमाल नहीं हो सकता क्योंकि समुद्र की वजह से पानी नमकीन हो जाता है इसलिए मेट्टूर जलाशय से ही सिंचाई संभव है। तमिलनाडु सरकार की खेती को दी जाने वाली सब्सिडी की सुविधा तभी सफल हो सकती है जब फसल के समय पूरा पानी उपलब्ध हो। समिति ने कहा है कि पीने के पानी के लिए बंटवारा तंत्र में बेहतरी लाने की जरूरत है। पानी के बहाव और कटाव के लिए स्वचालित जल प्रबंधन तंत्र की जरूरत है।