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बांसवाड़ा

कभी-कभी सिंहासन गूंगा बहरा क्यों हो जाता है…

देश भक्ति से
ओतप्रोत रचनाओं ने भरा जोश तो श्ृंगार के गीतों ने भी खूब वाहवाही लूटी। इतना ही
नहीं गुरू

बांसवाड़ाJul 29, 2015 / 02:23 am

मुकेश शर्मा

banswara

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बांसवाड़ा।देश भक्ति से ओतप्रोत रचनाओं ने भरा जोश तो श्ृंगार के गीतों ने भी खूब वाहवाही लूटी। इतना ही नहीं गुरू वंदन व पूजन से जुड़ी कविताओं ने भी भक्तिभाव बढ़ा दिया।


कुछ ऎसी ही त्रिवेणी मंगलवार रात यहां उदयपुर मार्ग स्थित रवींद्र ध्यान आश्रम में बही। जहां अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में एक से बढ़कर एक रचनाओं ने श्रोताओं को देर रात तक बांधे रखा। ध्यान योगी महçष्ाü उत्तम स्वामी के सान्निध्य में कवि सम्मेलन का आगाज गीतकार विष्णु सक्सेना की ओर से प्रस्तुत हे सरस्वती मां तुम्हारी प्रथम करता वंदना… से हुआ।


इसके बाद सक्सेना ने जमीन जल रही है, फिर भी चल रहा हूं मैं,खिजा का वक्त है और फूल फल रहा हूं मैं, हर तरफ आंधियां नफरतों की मैं फिर भी, दीया हूं प्यार का हिम्मत से जल रहा हूं मैं..। सक्सेना ने प्यास बुझ जाये तो शबनम खरीद सकता हूं, जख्म मिट जाए तो मरहम खरीद सकता हूं… सहित श्ृंगार के कई गीतों से सम्मेलन में समाबंांधा। मेरठ के कवि हरिओम पंवार ने सत्ताधीशों के अधरों पर पहरा क्यों हो जाता है, कभी कभी सिंहासन गूंगा बहरा क्यों हो जाता है….।,


बंदूकों की गोली का उत्तर सदभाव नहींं होता, हत्यारों के लिए अहिंसा का प्रस्ताव नहीं होता… सहित समसामयिक विष्ायों पर काव्य पाठ कर मौजूदा स्थितियां बयां की तो लोगों ने खूब सराहा। पंवार की कविताओं ने श्रोताओं को चिंतन सागर में गोते लगाने को मजबूर कर दिया। सम्मेलन में सूत्रधार जलज जानी सहित श्ौलेंद्र भट्ट, गिरीश केमकर, भारत भूषण गांधी, महेश उपाध्याय, डा. युधिष्टिर त्रिवेदी, विकास माहेश्वरी, योगेश पाठक,निखिलेश त्रिवेदी, शांतिलाल चौबीसा, गोपेश उपाध्याय, दिपक मेहता, देवेश त्रिवेदी, दिव्य भारत पंडया, ईश्वर टेलर, दीपक सोनी, शांतिलाल पटेल, मनीष मेहता, कल्पेश चौबीसा सहित अनेक लोग मौजूद थे। स्थानीय कवि नयनेश जानी व सतीश आचार्य ने भी काव्य पाठ किया। कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को श्रद्धांजलि दी गई।

गीत कमजोर स्थिति में


बांसवाड़ा. गीतकार विष्णु सक्सेना ने कहा कि मौजूदा समय में कविता की अच्छी स्थिति है, गीत कमजोर स्थिति में है। गीत कवि सम्मेलन के प्राण हैं, लेकिन नए लोगों का रूझान हास्य की तरफ ज्यादा होता जा रहा है। सक्सेना ने कहा कि इसका कारण यह है कि नए रचनाकार मेहनत नहीं करना चाहते हंै, हास्य आसानी से मिल रहा है, ऎसे में उस ओर भाग रहे हंै। इन स्थितियों में सुधार के साथ ही रचनाधर्मिता को बढ़ाना होगा।

सक्सेना ने परतापुर से शुरू काव्य यात्रा से अब तक के सफर का जिक्र भी किया। साथ ही यश भारती की समस्त सम्मान राशि ट्रस्ट को सौंपने की जानकारी दी। इस राशि से जरूरतमंदों को मदद की जाएगी।
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