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भगवत गीता में जानिए लाइफ मैनेजमेंट की यह 9 खास बातें

locationभोपालPublished: Oct 02, 2016 05:21:00 pm

Submitted by:

Manish Gite

mp.patrika.com आज आपको गीता के उन्हीं सूत्रों से आपको अवगत कराने जा रहा है जो हर मोड़ पर हमें आने वाली समस्याओं से निपटने की प्रेरणा देते हैं। गीता के यही श्लोक सभी के लिए ‘लाइफ मैनेजमेंट’ का काम करते हैं…।

bhagavad gita and management

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श्रीमद भगवत गीता दुनिया के चंद ग्रंथों में से एक है जो आज भी सबसे ज्यादा पढ़े जाते हैं और जीवन पथ पर कर्मों और नियमों पर चलने की प्रेरणा देते हैं। गीता हिन्दुओं में सर्वोच्च माना जाता है, वहीं विदेशियों के लिए आज भी यह शोध का विषय है। इसके 18 अध्यायों के करीब 700 श्लोकों में हर उस समस्या का समाधान मिल जाता है जो कभी न कभी हर इंसान के सामने खड़ी हो जाती है। यदि हम इसके श्लोकों का अध्ययन रोज करें तो हम आने वाली हर समस्या का हल बगैर किसी मदद के निकाल सकते हैं।


mp.patrika.com आज आपको गीता के उन्हीं सूत्रों से आपको अवगत कराने जा रहा है जो हर मोड़ पर हमें आने वाली समस्याओं से निपटने की प्रेरणा देते हैं। गीता के यही श्लोक सभी के लिए ‘लाइफ मैनेजमेंट’ का काम करते हैं…।




भगवान श्रीकृष्ण (अर्जुन से) कहते हैं कि तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी मत सोच। इसलिए तू फल को सोचते हुए कर्म मत कर और न ही सोच कि फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं।

लाइफ मैनेजमेंटः कर्म करते समय फल की इच्छा मन में भी न हों
भगवान कृष्ण अर्जुन से जो कह रहे हैं इसका भाव यह है कि मनुष्य को बिना फल की इच्छा से अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करना चाहिए। यदि कर्म करते वक्त फल की इच्छा मन में हो तो आप पूर्ण निष्ठा के साथ वह कर्म नहीं कर पाएंगे निष्काम कर्म ही सर्वश्रेष्ठ रिजल्ट देता है। इसलिए बिना किसी फल की इच्छा से मन लगाकर अपना काम करते रहना चाहिए। फल देना, न देना व कितना देना ये सभी बातें परमात्मा पर छोड़ दो क्योंकि परमात्मा ही सभी का पालनकर्ता है।




भगवान श्रीकृष्ण (अर्जुन से) कहते हैं कि कर्म न करने का आग्रह त्यागकर, अपयश-यश के विषय में समबुद्धि होकर योगयुक्त होकर, कर्म कर, समत्व को ही योग कहते हैं।

लाइफ मैनेजमेंटः पूजा-पाठ और मंदिर जाना ही धर्म नहीं
धर्म का अर्थ कर्तव्य से है। अक्सर हम कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ और मंदिरों को ही धर्म समझ बैठते हैं। हमारे ग्रंथों ने कर्तव्य को ही धर्म बताया है।श्रीकृष्ण कहते हैं कि अपने कर्तव्यों को पूरा करने में कभी अपयश-यश और लाभ-हानि का विचार नहीं करना। बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य पर एकाग्र करके काम करना चाहिए। इससे मन में शांति रहेगी और बेहतर परिणाम मिलेंगे। आज युवा अपने कर्तव्यों में लाभ-हानि को तोलता रहता है। फिर उस कर्तव्य को पूरा करने के बारे में ही सोचता रहता है। कई बार वह तात्कालिक नुकसान देख काम को ही टाल देते हैं, फिर बाद में उससे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है।




जो व्यक्ति योग नहीं करता उस व्यक्ति में निश्चय करने की बुद्धि भी नहीं रहती है और उसके मन में किसी के प्रति भावना भी नहीं होती है। ऐसे व्यक्ति को शांति और सुख दोनों ही नहीं मिल पाते हैं।


लाइफ मैनेजमेंटः मन को नियंत्रित रखेंगे तो सुख मिलेगा
हर व्यक्ति चाहता है कि वह सुखी है। सुख की तलाश में वह भटकता रहता है। लेकिन, सुख का मूल तो उसके मन में ही है। जिस मनुष्य का मन इंद्रियों, धन, वासना और आलस्य में लिप्त रहेगा तो उस व्यक्ति के मन में भावना नहीं हो सकती। इसलिए सुख प्राप्त करने के लिए अपने मन पर नियंत्रण बेहद जरूरी है।



जो व्यक्ति सभी इच्छाओं और कामनाओं को त्याग दे और मनता रहित और अहंकार रहित होकर कर्तव्यों का पालन करे उसे ही शांति मिलती है।


लाइफ मैनेजमेंटः कर्तव्य पालन से मिलती है शांति
श्रीकृष्ण भगवान कहते हैं कि अपने मन में कोई भी कामना या इच्छा रहती है तो शांति नहीं मिल सकती। हम जो कर्म करते हैं उसके साथ अपेक्षित परिणाम को साथ में देखने लगते हैं। अपनी पसंद के परिणाम की इच्छा हमें दिन पर दिन कमजोर करने लगती है। मन में ममता या अहंकार आदि भावों को मिटाकर तन्मयता से कर्तव्यों का पालन करने से ही शांति मिलती है।




कोई भी व्यक्ति एक पल के लिए भी बगैर कर्म के नहीं रह सकता। इस संसार के सभी जीव प्रकृति के अधीन हैं। यह प्रकृति हर प्राणी से अपने हिसाब से कुछ न कुछ कर्म जरूर करवा लेती है, साथ में उसके परिणाम भी देती है।


लाइफ मैनेजमेंटः कर्म के प्रति उदासीन न होना
बुरे परिणामों के डर से अगर ये सोच लें कि हम कुछ नहीं करेंगे तो ये हमारी मूर्खता है। खाली बैठे रहना भी एक तरह का कर्म ही है, जिसका परिणाम हमारी आर्थिक हानि, अपयश और समय की हानि के रूप में मिलता है। सारे जीव प्रकृति यानी परमात्मा के अधीन हैं, वो हमसे अपने अनुसार कर्म करवा ही लेगी और उसका परिणाम भी मिलता है। इसलिए कभी भी कर्म के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए, अपनी क्षमता और विवेक के आधार पर हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए।



शास्त्रों में बताए गए अपने धर्म के मुताबिक कर्म कर, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है और कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध हो पाएगा।

अपने-अपने धर्म का करें पालन
श्रीकृष्ण कहते हैं कि हर मनुष्य को अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए कर्म करना चाहिए। जैसे- विद्यार्थी का धर्म है विद्या को प्राप्त करना, सैनिक का कर्म है देश की रक्षा करना, जो लोग कर्म नहीं करते, उनसे श्रेष्ठ वे लोग होते हैं जो कर्म करते हैं। क्योंकि बिना कर्म किए तो शरीर का पालन-पोषण संभव नहीं होता है। जिस व्यक्ति का जो कर्तव्य तय है उसका पालन करते रहना चाहिए।



जैसा आचरण श्रेष्ठ पुरुष करते हैं उसी प्रकार सामान्य पुरुष भी आचरण करने लगते हैं। जिस कर्म को श्रेष्ठ पुरुष करते हैं, उसी को आदर्श मानकर बाकी लोग अनुसरण करते हैं।

उच्च अधिकारी मेहनत करेंगे तो कर्मचारी भी करेंगे
श्रीकृष्ण ने इस श्लोक में बताया है कि श्रेष्ठ पुरुष को सदैव अपने पद और गरिमा के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि वे जैसा व्यवहार करेंगे, सामान्य पुरुष भी उसकी नकल करेंगे। उदाहरण यह है कि यदि किसी संस्थान में उच्च अधिकारी पूरी मेहनत और निष्ठा से काम करते हैं, तो वहां के दूसरे कर्मचारी भी वैसे ही मेहनत करते हैं, लेकिन यदि उच्च अधिकारी काम को टालते हैं तो कर्मचारी उनसे भी ज्यादा लापरवाह हो जाते हैं।



जो ज्ञानी पुरुष होते हैं वे कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम या कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे किंतु स्वयं परमात्मा के स्वरूप में स्थित हुआ और सब कर्मों को अच्छी प्रकार करता हुआ उनसे भी वैसे ही कराए।

कोई भी कितना भटकाए अपने काम पर अटल रहना चाहिए
ये कांपीटिशन का दौर है, हर कोई आगे निकल जाना चाहता है। ऐसे में ज्यादातर संस्थानों में ये होता है कि कुछ चतुर छात्र अपना काम तो पूरा कर लेते हैं, लेकिन अपने साथी को उसी काम को टालने के लिए प्रोत्साहित करते हैं अथवा काम के प्रति उसके मन में लापरवाही का भाव भरने लगते हैं। श्रेष्ठ छात्र वही होता है जो अपने काम से दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है। संस्थान में उसी छात्र का भविष्य सबसे ज्यादा उज्वल होता है।



bhagavad gita and management

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो मनुष्य मुझे जिस प्रकार भजता है जिस इच्छा से मेरा स्मरण करता है, उसी के अनुरूप मैं उसे फल देता हूं। सभी लोग सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।

जैसा व्यवहार करेंगे वैसा ही हमारे साथ होगा
इस श्लोक के जरिए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि संसार में जो मनुष्य जैसा व्यवहार दूसरों के साथ करता है, दूसरे भी उसी र्रकार का व्यवहार उसके साथ करते हैं। उदाहरण यह है कि जो लोग ईश्वर का स्मरण मोक्ष प्राप्ति के लिए करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो किसी अन्य इच्छा से प्रभु का स्मरण करता हैं, उनकी वह इच्छाएं भी प्रभु कृपा से पूरी हो जाती है। कंस ने सदैव श्रीकृष्ण को मृत्यु के रूप में स्मरण किया। इसलिए, श्रीकृष्ण ने मृत्यु प्रदान की। हमें भी परमात्मा को वैसे ही याद करना चाहिए जैसा रूप पाना चाहते हैं।
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