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ऐसी है ओशो आश्रम के भीतर की LIFE, सजती थी SEX की मंडी

locationभोपालPublished: Dec 11, 2016 09:25:00 pm

Submitted by:

Manish Gite

11 दिसंबर को रजनीश चंद्रमोहन ‘ओशो’ का जन्म दिवस है। ओशो के फॉलोवेर्स इसे मोक्ष या मुक्ति की शुरुआत मानते हैं। देश-विदेश में फैले ओशो फॉलोवर्स के लिए ये खास दिन है।

osho

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एक समय में सर्वाधिक प्रसिद्ध और विवादित आध्यात्मिक नेता ओशो को 70 से 80 के दशक में ‘भगवान श्री रजनीश’ के नाम से जाने लगा था। इसके बाद उन्होंने अपना नाम ‘ओशो’ रख लिया था, जिससे उन्होंने ‘ओशो आन्दोलन’ चलाया।

mp.patrika.com ओशो के जन्म दिवस के मौके पर बताने जा रहा है उनसे जुड़े रोजक और विवादित किस्से…।

11 दिसंबर को रजनीश चंद्रमोहन ‘ओशो’ का जन्म दिवस है। ओशो के फॉलोवर्स इसे मोक्ष या मुक्ति की शुरुआत मानते हैं। देश-विदेश में फैले ओशो फॉलोवर्स के लिए ये खास दिन है। ओशो का जन्म मध्य प्रदेश के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था। अपने भक्तों के बीच भगवान कहलाने वाले ओशो उर्फ़ रजनीश को लेकर कई विवाद भी सामने आए हैं, जिनमें से कई खुद उनकी शिष्या और प्रेमिका रही मां आनंद शीला ने अपनी किताब में लगा चुकी हैं।



आरोपों के मुताबिक ओशो के आश्रम से 55 मिलियन डॉलर का घपला हुआ था, जिसमें उनकी शिष्या शीला को 39 महीने जेल में बिताने पड़े। जेल से निकलने के 20 साल बीत जाने के बाद शिष्या शीला ने एक किताब लिखी, जिसके जरिए उन्होंने कई अनछुहे पहलुओं को सामने रखा। इस किताब का नाम डोंट किल हिम! ए मेम्वर बाई मा आनंद शीला था।

sambodhi diwas

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महीने में 90 लोगों के साथ होता था सेक्स
प्रेमिका शीला की किताब के अनुसार ओशो के आश्रम में अध्यात्म के नाम पर सेक्स की मंडी सजाई जाती थी। आश्रम में जो शिविर होते थे, उसमें सबसे ज्यादा चर्चा का विषय सेक्स होता।

ओशो खुद अपने भक्तों को सेक्स के बारे में बताते और कहते कि सेक्स की इच्छा को दबाना नहीं चाहिए, ये कई कष्टों का कारण हो सकता है। वे कहते कि सेक्स को बिना किसी निर्णय के ‌स्वीकार करना सीखो। इस तरह भक्तों की नजरों में भगवान का दर्जा पाए ओशो के उपदेशों को दर्शक सहर्ष स्वीकार करते और बिना किसी हिचकिचाहट और दबाव के आश्रम में खुलेआम सेक्स करते थे। किताब में इस बात का जिक्र है कि आश्रम का हर संन्यासी महीने में 90 लोगों के साथ सेक्स करता था।

बीमारी होने पर भी सेक्स को प्रायोरिटी
ओशो के आश्रम में संन्यासी शिफ्ट में काम किया करते थे। संन्यासी उनसे इतने प्रभावित थे कि उन्हें अपनी परवाह भी नहीं होती और बीमारी के बावजूद के काम करते थे। उन्हें रात में सोने में भी कठिनाई होती। लेकिन बीमारी को नजर अंदाज करते करते कुछ को बीमारी की चपेट में आ गए। वे बुखार, और इंफेक्‍शन से पीड़ित हो गए थे। इसकी मुख्य वजह आश्रम में चारों तरफ गंदगी का अंबार होना था। इन सबके बावजूद मां आनंद लिखती हैं कि भगवान ओशो को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और वे भक्तों को सेक्स की इच्छा नहीं दबाने के लिए कहते। उनकी बातों से आश्रम के संन्यासी बेफिक्र होकर सेक्स करते थे।


शीला ने आगे किताब में जिक्र किया है कि मुझे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि सारा दिन काम करने के बाद भी संन्यासी सेक्स के लिए उर्जा और समय निकाल लेते ‌थे। शीला आगे लिखती हैं एक दिन उन्होंने एक संन्यासी से पूछा, तो उसका कहना था कि वो हर दिन ‌तीन अलग-अलग महिलाओं के साथ सेक्स करता है।


30 रॉल्स रॉयस गाड़ियों की डिमांड
आनंद शीला के मुताबिक एक दिन ओशो ने उनसे एक महीने में 30 नई रॉल्स रॉयस गाड़ियों की मांग की। जबकि उनके पास पहले से ही 96 कारें थीं। ओशो को ये नई कारें बोरियत मिटाने के लिए चाहिए थीं। इन कारों को खरीदने के लिए करीब 3 से 4 मिलियन डॉलर चाहिए था। इतनी बड़ी रकम खर्च में कटौती करके जुटाई जा सकती थी। लेकिन भगवान ओशो ने पैसों के लिए 50-60 लोगों के नाम अपने शिष्या को दिए थे जो काफी धनी थे।

संबोधि दिवस पर भी होते हैं कई आयोजन
कहते हैं 1953 में 21 मार्च को एक विशेष वृक्ष मौलश्री के नीचे ओशो को संबोधि प्राप्त हुई। तब ओशो की उम्र बस 21 साल थी और वे वे जबलपुर में दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी थे। पूरी दुनिया में जहां भी ओशो धाम है वहां इस दिन विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।

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आरोपों के मुताबिक ओशो के आश्रम से 55 मिलियन डॉलर का घपला हुआ था, जिसमें उनकी शिष्या शीला को 39 महीने जेल में बिताने पड़े। जेल से निकलने के 20 साल बीत जाने के बाद शिष्या शीला ने एक किताब लिखी, जिसके जरिए उन्होंने कई अनछुहे पहलुओं को सामने रखा। इस किताब का नाम डोंट किल हिम! ए मेम्वर बाई मा आनंद शीला था।






ओशो की यह बातें आप नहीं जानते होंगे

-ओशो को ‘बातचीत’ शब्द कतई पसंद नहीं रहा। वे अक्सर कहते रहे कि यह मेरे लिए भद्दी बात है, मेरा शब्द तो संवाद है।

-21 वर्ष की आयु में 1953 में Osho ओशो को मौलश्री वृक्ष के नीचे प्रबोध प्राप्त हुआ। उन्होंने सागर यूनिवर्सिटी से दर्शन में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि ली।

-ओशो ने अपना नाम लैटिन भाषा के ओशोनिक शब्द से लिया है, जिसका अर्थ होता है सागर में विलीन हो जाना।

-सन 1960 के दशक में वे ‘आचार्य रजनीश’ के नाम से जाने गए फिर ‘ओशो भगवान श्री रजनीश’ के नाम से पुकारे जाने लगे। पूर्व जन्म के बारे में ओशो बताते हैं कि उनका जन्म स्थान तिब्बत था।

-ओशो की जन्म कुंडली देखकर बनारस के एक ज्योतिषी न कह दिया था कि यह बच्चा सात साल के बाद जीवित नहीं रहेगा। यदि बच गया तो इसके बुद्ध होने की संभावना हो जाएगी।

-ओशो के पिताजी कपड़ों के व्यापारी थी। 14 सौ एकड़ जमीन मालिक भी थे। वे खेती भी करते थे। उस वक्त ओशो के पास बेहद सुंदर घर था।
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