भोपाल. आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) भ्रष्ट लोगों पर मेहरबान है। अन्यथा क्या वजह है कि वह आठ साल में बर्खास्त स्वास्थ्य संचालक योगीराज शर्मा और व्यवसायी अशोक नंदा से जुड़े मामले में बैंक खातों तक की जानकारी नहीं जुटा पाई है। जबकि लोकायुक्त पुलिस इसी से जुड़े एक मामले में दो साल पहले ही शर्मा और नंदा के खिलाफ जांच कर चालान भी पेश कर चुकी है। डीजी ईओडब्ल्यू की समीक्षा में सामने आया कि छोटे-छोटे कारणों से जांच अटकी हुई है।
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सूत्रों ने बताया कि 5 जुलाई 2008 को ईओडब्ल्यू ने शर्मा, नंदा के साथ स्टोर कीपर बसंत सेलके, सुनील अग्रवाल, जयपाल सचदेवा, सीए राजेश जैन, सप्लायर योगेश पटेरिया, मां जागेश्वरी पब्लिसिटी, शार्प एंड सर्विसेज, ग्लोबल इंटरप्राइजेज, जया किट्स उद्योग, रेडियेशन इमेज कम्युनिकेशन इमेज एंड सर्विसेज, आयडियल मेडिकल एवं इलेक्ट्रीकल कंपनी, नेप्च्यून रेमेडिज, छत्तीसगढ़ फार्मा, प्रोपराईटर नेताम इंटडस्ट्रीज सहित 16 लोगों और उनकी कंपनियों के खिलाफ धोखाधड़ी, षड़यंत्र और भ्रष्टाचार के तहत अपराध दर्ज किया था। शर्मा पर आरोप था कि उन्होंने अपने परिजन, रिश्तेदारों और सहयोगियों के साथ मिलकर दवा एवं अन्य उपकरणों की खरीदी में करोड़ों की गड़बडि़यां की हैं। इस मामले में ईओडब्ल्यू ने आयकर विभाग, लोकायुक्त और स्वास्थ्य विभाग से दस्तावेज हासिल किए थे। आयकर विभाग ने शर्मा के यहां मारे गए छापे में मिली संपत्ति का ब्योरा दे दिया था।
लोकायुक्त पुलिस ने भी 24 करोड़ के दवा घोटाले के प्रमाण उपलब्ध कराए गए थे। बावजूद अब तक ईओडब्ल्यू जांच पूरी नहीं कर सकी। इस संबंध में डीजी ईओडब्ल्यू ने जवाब-तलब किया है। सूत्र बताते हैं कि अभी तक ईओडब्ल्यू आरोपियों और उनकी कंपनियों के खातों की ही पूरी जानकारी हासिल नहीं कर पाई। साथ ही स्वास्थ्य विभाग से भी कुछ दस्तावेज हासिल किए जाने हैं। सूत्र बताते हैं कि छोटे-छोटे कारण बताकर जांच को लंबा खींचा जा रहा है। जबकि लोकायुक्त दवा घोटाले में शर्मा, नंदा सहित छह आरोपियों के खिलाफ 12 मार्च 2014 को जांच पूरी कर चालान पेश कर चुकी है। पिछले साल आरोपियों के खिलाफ अदालत में आरोप भी तय कर दिए थे लेकिन वे इसके खिलाफ हाईकोर्ट चले गए थे, वहां से भी राहत नहीं मिली।