फिल्मों में आपने जरूर जेलर का दिल पसीजते देखा हो, जब उसने एक साथ कई कैदियों की सजा माफ कर दी हो, लेकिन असल जिंदगी में आपने ऐसे कम ही वाकये देखें होंगे।
योजना लाड़@भोपाल. फिल्मों में आपने जरूर जेलर का दिल पसीजते देखा हो, जब उसने एक साथ कई कैदियों की सजा माफ कर दी हो। शायद असल जिंदगी में आपने ऐसे कम ही वाकये देखें होंगे, लेकिन ऐसा असल में भोपाल की सेन्ट्रल जेल में भी हुआ है। कैदियों का नाटक देख डीजी भावुक हो गए और उन्होंने 55 कैदियों को सजा माफ़ी का तोहफा दे दिया।
जेल में आजादी का रंगमंच और इस पर भावना में पूरी तरह डूबकर किरदार को साकार करता उनका अभिनय इस कदर दिल में उतर गया कि नाटक समाप्त होने पर उन्होंने नाटक के सभी किरदारों जो कि सजायाफ्ता मुजरिम थे उन्हें एक यादगार तोहफा दे दिया। ये तोहफा था सजा में एक माह की माफी का तोहफा।
14 अगस्त को कैदियों ने किया था प्ले
जी, हां। यह किसी नाटक का नजारा या कोरी कल्पना नहीं, बल्कि वास्तविक घटना है, जो भोपाल की सेंट्रल जेल में बंद 55 कैदियों के उस समूह के साथ हुई, जो आजादी की पूर्वसंध्या पर गत 14 अगस्त को जेल में हुए एक नाटक का हिस्सा बना था। सिंधु धौलपुरे के निर्देशन में नाटक ‘गगन दमामा बाज्यो’ में उनकी भूमिका और अभिनय देखकर जेल अधिकारी इतने अभिभूत हुए कि उन्होंने इन सभी 55 कैदियों की एक महीने की सजा माफ कर दी।
कैदियों की विशेषताओं को देख लिया फैसला
सेंट्रल जेल के डीजी वी.के. सिंह ने इस बारे में पूछे जाने पर कहा- ‘हमारे पास साल में दो महीने की सजा माफ करने का अधिकार होता है। कैदियों के अच्छे व्यवहार, व्यक्तित्व, अनुशासन व सकारात्मकता को देखते हुए हम इसका फैसला करते हैं। कैदियों ने जो नाटक किया, उसमें इन सभी विशेषताओं का बहुत खूबसूरत नजारा हुआ। इसलिए सभी की सजा एक-एक महीने कम कर दी।’
डीजी का यह भी कहना था कि जेल प्रशासन का मकसद यही होता है कि कैदियों के कौशल का इतना विकास तो हो जाए कि वे अपने जीवन को सही दिशा दे सकें और जब बाहर की दुनिया में जाएं, तो उन्हें किसी भी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े।
(डीजी वीके सिंह)
नाटक देखते ही हुई घोषणा
इस प्ले की डारेक्टर सिंधु धौलपुरे अपने इस अनुभव पर कहती हैं- ‘मैं हमेशा ही कुछ ऐसे लोगों को मंच से जोडऩे की कोशिश करती हूं जिन्हें मंच आसानी से नसीब नहीं होता। एडीजी सर को मेरा कॉन्सेप्ट पसंद आया और उन्होंने हमसे स्क्रिप्ट मांगी। हमारी कई स्क्रिप्ट्स में से उन्होंने भगतसिंह के जीवन पर आधारित नाटक को चुना। 25 दिनों की रिहर्सल में कैदियों ने अभिनय सीखा और स्टेज की हर प्रॉपर्टी वहीं तैयार की। मंच परिकल्पना एड्मायर थिएटर ग्रुप के डायरेक्टर डॉ. प्रदीप वर्मा की थी। इस नाटक को देखकर डीजी जेल वीके सिंह इतना खुश हुए कि उन्होंने नाटक में भागीदारी करने वाले सभी 55 कैदियों की एक माह की सजा माफ कर दी।’
(प्ले की डारेक्टर सिंधु धौलपुरे)
सुधार और पुनर्वास है मकसद
इस पूरे वाकये पर जब एडीजी जेल सुशोवन बनर्जी से बात की गई तो उनका कहना था- ‘हमारा मकसद कैदियों का सुधार एवं पुनर्वास है। जब जेल की चारदीवारी में बंद ये कैदी इस तरह की रचनात्मक गतिविधियों में संलग्न होते हैं तो बाहर जाने पर इनके पास खुद को स्थापित करने के लिए कई विकल्प उपलब्ध होते हैं। कान्हा एम्पोरियम, अपनी रसोई, पेंटिंग एग्जीबिशन और आरजे ट्रेनिंग इसी मकसद का हिस्सा हैं। इस प्ले के लिए इन्होंने 25 दिनों तक प्रैक्टिस की है। मैंने भी नाटक में इनके साथ काम किया। ये एक अलग ही अनुभव था।’
(सुशोवन बनर्जी, एडीजी जेल)
सजा माफी की खुशी, अभिनय को ही बनाऊंगा अपनी दुनिया
एक माह की सजा अपनी अच्छे व्यक्तित्व के कारण कम हुई, इस बात की खुशी है। अब मुझमें काफी आत्मविश्वास आ गया है। बाहर निकलने के बाद अभिनय को ही अपनी दुनिया बनाना चाहूंगा।
– चेतन पुष्प, जेल बंदी
मैं भी हूं क्रांतिकारी
भगतसिंह को जानने का मौका नाटक के कारण मिला। देश के लिए कुछ कर जाने का जो जज्बा उनके अंदर थाए उन्हें पढऩे और जानने के बाद खुद में भी वही जादू महसूस कर रहा हूं। पहली बार तो स्क्रिप्ट देखकर लगा था कि मैं भगतसिंह नहीं बन सकता। लेकिनए एड्मायर ग्रुप और एडीजी सर की वजह से खुद को उस महान क्रांतिकारी के रूप में ढालने में सफल रहा। अब तो हर वक्त मन में क्रांतिकारी विचार उठते रहते हैं। जेल से बाहर आने के बाद इसी थिएटर ग्रुप को जॉइन करने का प्लान है।
– सबूर अहमद, जेल बंदी
आजाद ने जीवन बदल दिया
नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल। इन चंद शब्दों ने जीवन के मायने ही बदल दिए हैं। चंद्रशेखर आजाद के बारे में किताबों में पढ़ा तो था पर उनके विचारों को जेल में समझने का मौका मिला। इस किरदार ने हकीकत में जीवन को एक नई दिशा दी है। सकारात्मक ऊर्जा से भर दिया है। नाटक की वजह से कई अच्छे दोस्त मिले। मैं फार्र्मासिस्ट हूं, इसलिए भविष्य में मेडिकल स्टोर शुरू करने का प्लान है।
– पंकज गौर, जेल बंदी