भोपाल।मानसून की बारिश के साथ ही मध्यप्रदेश में कई स्थानों पर मौसमी बीमारियों का दौर शुरू हो गया है। वहीं यह भी माना जा रहा है कि बारिश के जलजले के साथ ही इनमें तेजी से इजाफा भी होगा, वर्तमान में अधिकांश अस्पताल इन दिनों मौसमी बीमारियों के मरीजों से अटे पडे हैं।
डॉ. राजकुमार के अनुसार जैसे-जैसे मानसून में देरी होती जा रही है, वैसे-वैसे ही मौसमी बीमारियों में इजाफे का भी अंदेशा बढता जा रहा है। उनके अनुसार इस बार जिस हालात में मानसून है, उसे देखकर तो यही लगता है कि इस दफे मानसून से ज्यादा मौसमी बीमारियां ज्यादा तबाही ला सकतीं है।
मौसम में कभी बारिश होना और उसके बाद अचानक अगले दिन उमस या गर्मी इन बीमारी फैलाने वाले बैकटेरिया में इजाफा तो करेगी ही, इन्हें ताकतवर बनने का मौका भी देगी। इन बीमारियों में मुख्य रूप से वायरल फीवर,हैजा,मलेरिया,पीलिया,चिकनगुनिया सहित कई बीमारियों के तेजी से बढने का अंदेशा बना हुआ है।
सामान्यत: बरसात का नाम सुनते ही मन गदगद हो जाता है। क्योंकि गर्मी के मौसम बाद रिमझिम फुहारें शरीर और मन को ठंडक देकर बहुत सुकून देती है। साथ ही चारों तरफ हरियाली हो जाती है। लेकिन यही बारिश अपने साथ बीमारियों का जखीरा भी लाती है, जिससे बचने के लिए हमें पहले से तैयार रहना होता है।
हर बार आता है तबाही का मंजर…
आपको बता दें कि मप्र में तकरीबन हर साल जुलाई के अंत से अगस्त का माह ऐसा होता है जब मानसून तबाही मचाता है। नदियां उफान पर होती हैं, सैकड़ों गांवों से संपर्क टूट जाता है। लाखों लोग बेघर हो जाते हैं।
इस समय नदियों के बहाव में हर दिन लोगों के बहकर मर जाने से लेकर, पशुओं और पक्षियों के मरने की खबरें आम हो जाती हैं। यहां तक की करीब महीने भर में मप्र की औसत बारिश का कोटा भी इन्हीं दिनों पूरा हो जाता है या फिर औसत से भी ज्यादा बारिश दर्ज की जाती है।
बरसात के इस मौसम में हेल्थ की कुछ सावधानियां रखनी जरूरी होती हैं, ताकि इस मौसम को भरपूर एन्जॉय किया जा सकें। जानकारों के अनुसार इस मौसम में तुलसी, सोंफ, हल्दी, दालचीनी, तेजपत्ता, अदरक, काली मिर्च के उपयोग से बहुत लाभ मिलता है और रोग प्रतिरोधक शक्ति बनी रहती है अतः इनका उपयोग जरूर करें।
इनसे पनपती हैं बीमारियां:
बरसात के मौसम में बीमार होने का मुख्य कारण गंदगी, मच्छर व कीड़े, अशुध्द पानी पीना, वातावरण में नमी, कपड़े गीले हो जाना आदि होते है। इन सब कारणों से इस मौसम में विशेषकर वाइरल फीवर, डायरिया, मलेरिया, चिकनगुनिया, पीलिया, डेंगू और स्किन प्रॉब्लम आदि हो सकते है। डॉ. राजकुमार के मुताबिक बारिश के मौसम में होने वाली इन बीमारियों से ऐसे करें बचाव…
1. वायरल फीवर…
वायरल फीवर बारिश के मौसम की सबसे आम समस्या है। बरसात के मौसम में सर्दी – जुकाम, खांसी, हल्का बुखार और हाथ पैरों में दर्द या सिर में दर्द आदि ये सब वायरल इंफेक्शन होना दर्शाते है। इन कारणों से नींद नहीं आती। बारिश मे भीगने, ठंडी हवा से,
तापमान परिवर्तन नींद पूरी न होने आदि के कारण प्रतिरक्षा तंत्र कुछ कमजोर हो जाता है। इससे हवा में फैले वायरस या दूषित और अशुध्द खाने पीने के सामान आदि के कारण वायरल फीवर हो जाता है। वायरल बुखार के लक्षण महसूस होने लग जाते है।
यह है इलाज : तुलसी के पत्ते -4 , काली मिर्च -4 और अदरक -एक छोटा टुकड़ा कूटकर डेढ़ कप पानी में उबालें। छान कर चाय की तरह पीयें। इससे जुकाम में बहुत आराम मिलता है।
2. बारिश में जोड़ों का दर्द बढ़ जाता है इसके लिए एक चम्मच शहद में आधा चम्मच पिसी हुई सोंठ मिलाकर दिन में एक बार लें। इसके लगातार उपयोग से भूख सामान्य रहेगी और जोड़ों का दर्द नहीं सतायेगा।
यह है बचाव: भीगने से बचें, कपड़े गीले हो तो तुरंत बदल लें। पौष्टिक भोजन ले। विटामिन C युक्त फल आदि लेने से प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत रहता है अतः इनका जरूर उपयोग करें।
आपके आस पास के किसी व्यक्ति को सर्दी जुकाम हो तो सावधान रहें। उससे आपको लग सकता है। ऐसे व्यक्ति से हाथ मिलाया हो तो हाथ साबुन से धो लें। सड़क पर मिलने वाले खाने पीने के सामान से सावधान रहें।
3. दस्त या हैजा…
दस्त लगने की समस्या अक्सर बरसात के मौसम ( वर्षा ऋतु ) में हो जाती है। ये दूषित खाने पीने के सामान या गंदा पानी पीने से होता है। इस मौसम में ई-कोलाई, साल्मोनेला, रोटा वायरस, नोरा वायरस का संक्रमण बढ़ जाता है।
जिसके कारण पेट व आँतों में सूजन और जलन होकर उल्टी दस्त आदि की शिकायत हो जाती है। साधारण रूप से दस्त 4-5 दिन में ठीक हो जाते है। दस्त में रक्त आता हो और पेट में मरोड़ उठती हो तो ये पेचिश हो सकती है। छोटे दूध पीते बच्चे ( शिशु ) को दूध की बोतल की सफाई सही तरीके से ना होने के कारण दस्त हो सकते है।
एक दो बार पतले दस्त हो तो चिंता ना करें, लेकिन यदि बहुत ज्यादा बार दस्त हो और उल्टी भी हो सतर्क हो जाएँ। ये हैजा भी हो सकता है।
लक्षण: हैजा होने पर चावल के पानी की तरह पतले दस्त बार बार होते है। दस्त लगने से पहले या बाद में उल्टी होना भी शुरू हो सकती है। इससे शरीर में पानी की बहुत कमी हो सकती है। ऐसी अवस्था में उपचार नहीं होना घातक हो सकता है।
दस्त की इन समस्याओं से बचने के लिए खाने पीने की चीजों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। विशेष कर बाहर पीने का पानी, चाट, गोल गप्पे, पानी पूरी, भेल पूरी, मेले में खुले में बिकने वाली मिठाइयां आदि दस्त की समस्या पैदा करने की वजह होते है। अतः इनके सबंध में सावधानी रखनी चाहिए।
कटे हुए फल व सलाद आदि ज्यादा देर तक ना रखें। बारिश के कीचड़ में सने जूते ,चप्पल घर में अंदर न लाएं ,इनके साथ कीटाणु आ जाते है। खाना खाने से पहले अपने हाथों को साबुन से धो लेने चाहिए।
यह करें: दस्त में दूध ,घी न लेकर छाछ लेनी चाहिए। इसके अलावा उबला आलू, चावल का मांड, नींबू की शिकंजी, पका केला आदि आसानी से पचने वाले आहार थोड़ी मात्रा में लेने चाहिए। पानी में नमक,चीनी मिलाकर थोड़ा थोड़ा लगातार लेते रहना चाहिए ताकि शरीर में पानी की कमी ना हो।
4. मलेरिया…
तेज कंपकंपी छूटने के साथ तेज सिरदर्द और तेज बुखार ये सब मलेरिया के लक्षण है। कंपकंपी बहुत तेज होती है। इसके बाद एक निश्चित अंतराल से इसी प्रकार बुखार आता है। ऐसे में फौरन मलेरिया के लिए रक्त की जांच करवानी चाहिए। यदि रिपोर्ट में मलेरिया पॉज़िटिव आए तो तुरंत दवा शुरू कर देनी चाहिए।
मलेरिया होने का कारण मादा एनाफिलिज मच्छर होता है। इसके काटने से इसके अंदर मौजूद मलेरिया के कीटाणु हमारे अंदर चले जाते है। 14 दिन के बाद तेज बुखार हो जाता है। ये मच्छर बरसात के इकट्ठे पानी में पनपते है।
यह करें: मलेरिया से बचाव के लिए मच्छर से बचाव के साधन अपनाने चाहिए। मच्छरदानी का उपयोग या मच्छर भगाने वाली छोटी मशीन या क्रीम आदि का उपयोग करना चाहिए। आस पास पानी इकट्ठा नहीं हो इसका ध्यान रखें। यदि हो तो कीटनाशक या मिट्टी का तेल डालना चाहिए।
5. पीलिया …
यदि हल्का हल्का बुखार आता हो। भूख नहीं लगती हो। खाना देखने या मुंह में रखने से उबकाई आती हो। पेशाब गहरे पीले रंग का आता हो। इसके अलावा थकान रहती हो। नींद बहुत आती हो। आंखें और नाखून पीले दिखते हो तो ये पीलिया रोग होता है। बरसात के मौसम में इस रोग के होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
मल मूत्र के विस्तारण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण और पीने का पानी बिना उबाले या बिना फिल्टर किए उपयोग करने पर ये हो सकता है। सिर्फ क्लोरीन से पानी को उपचारित करने से इस रोग के कीटाणु नष्ट नहीं होते है।
पीलिया लीवर की कोशिकाओं में संक्रमण के कारण होता है। इस रोग के कीटाणु दूषित खाद्य सामग्री के कारण शरीर में प्रवेश कर जाते है और लीवर पर हमला बोल देते है। ये कीटाणु दूषित रक्त के चढ़ाये जाने के कारण भी हो सकता है। लीवर के रोगग्रस्त होने के कारण रक्त में बिलरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है। इससे शरीर के अंग पीले दिखाई देते है।
यह करें: खाने पीने की चीजें शुद्ध हो इसका ध्यान रख कर इस रोग से बचा जा सकता है। पानी उबाल कर या आधुनिक तकनीक की मशीन से फिल्टर किया हुआ पीना चाहिए।
6. स्किन की समस्या …
बारिश के मौसम में नमी बने रहने के कारण बैक्टीरिया आसानी से पनपते है। इसलिए त्वचा पर कई तरह के इंफेक्शन होने की सम्भावना होती है। इस मौसम में त्वचा पर फोड़े, फुंसी, दाद, खाज, घमोरियां, रैशेज, फंगल इंफेक्शन आदि सकते है। पसीना ज्यादा आने के कारण भी स्किन पर घमोरियां आदि जाती है। इसके अलावा हवा न लगने वाली जगह फंगल इंफेक्शन हो सकता है।
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यह करें: इन सब परेशानियों से बचने के लिए गीले कपड़े या जूते लम्बे समय तक नहीं पहनने चाहिए। नहाने के पानी में बैक्टीरिया को मिटाने वाली दवा या नींबू के रस की कुछ बूंदें डालकर नहाएं। नीम का साबुन आदि का उपयोग करना चाहिए।
नीम की पत्ती को पानी में उबालकर इस पानी को नहाने के पानी में मिलाकर नहाएं। स्किन पर जहां इंफेक्शन होने की सम्भवना हो वहां टेलकम पाउडर लगा कर वो जगह सूखी रखनी चाहिए। फंगल इंफेक्शन हो तो एंटी फंगल क्रीम लगानी चाहिए। उबटन आदि लगाकर नहाना चाहिए। सूती वस्त्र पहनने चाहिए ताकि स्किन को हवा मिलती रहे और पसीना भी सोख लें।
7. आम सर्दी, खांसी और वायरल बुखार :
मानसून में एक सबसे प्रमुख रोग में से एक है आम सर्दी अर्थात कॉमन कोल्ड। यह नम और उमस भरे मौसम में पनपने वाले वायरस की वजह से होता है।
लंबी अवधि के लिए गीले कपड़े पहने रहना एयर कंडीशनर से देर तक नम हवा में रहना ठंड लगने की आशंका को बढ़ा देता है।
यह करें: इससे बचने के लिए अपने साथ बाहर जाते समय कपड़ों की एक अतिरिक्त जोड़ी रखें, एसी के बजाए ताजी हवा में रहें तथा ताजे फल और सब्जियां खाकर आपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करें।