script#BHOPALGASTRAGEDY: किसी ने नहीं देखा था, मौत का वो चेहरा | real story of bhopal gas tragedy night | Patrika News

#BHOPALGASTRAGEDY: किसी ने नहीं देखा था, मौत का वो चेहरा

locationभोपालPublished: Nov 30, 2016 04:10:00 pm

Submitted by:

rishi upadhyay

उस रात भोपाल में गैस कांड हुआ था, 32 साल पहले हुए इस हादसे के बाद ऐसी अनगिनत कहानियां सामने आईं जिन्होंने मौत की परिभाषा ही बदल दी।

gas tragedy

gas tragedy

कहानी-1

ऋषि रमण उपाध्याय@भोपाल। “तो फिर आप यहां पर क्यों आए हैं, गेट लॉस्ट!” भोपाल के पुलिस कप्तान स्वराज पुरी की ये फटकार सुनकर कमरे में मौजूद प्रशासनिक अधिकारी फौरन बाहर आ गए। इधर बाहर आए अधिकारी तेजी से अपनी गाड़ियों की ओर बढ़ रहे थे, दूसरी ओर कमरे में मौजूद स्वराज पुरी आंखों की जलन के साथ सूखते गले और भोपाल की हवा में तैरती मौत से लड़ने की दोबारा कोशिश करने लगे।

टेबिल पर रखा फोन लगातार बज रहा था, लेकिन जवाब न तो स्वराज पुरी के पास था और न ही अब तक गाड़ियों में बैठ चुके उन तमाम अधिकारियों के पास। 


2 और 3 दिसम्बर 1984 की दरम्यानी रात के इस वाक्ये के कुछ ही घंटे पहले भोपाल के तत्कालीन पुलिस कप्तान स्वराज पुरी की गाड़ी अपनी पूरी रफ्तार पर दौड़ रही थी। रात 11 बजे घर पहुंचे स्वराज पुरी सोने की तैयारी कर रहे थे। रात के 12 बजे घर के बाहर एक गाड़ी रुकी।

गाड़ी से निकलते ही सब-इंस्पेक्टर चाहतराम ने चिल्लाकर बताया कि पुराने शहर में भगदड़ मच गई है। फोन काम नहीं कर रहा था, लिहाजा गाड़ी में बैठते हुए उन्होंने टीआई सुरेन्द्र सिंह से जानकारी लेनी चाही लेकिन वो भी कुछ स्पष्ट नहीं बता पाए। उन्होंने गाड़ी पुराने शहर की ओर ले चलने को कहा।


bhopal gas tragedy


कुछ ही देर में वायरलेस की खरखराहट तेज होती गई और पुराने शहर की पुलिस चौकियों से कुछ खबरें आने लगी। खबरों की जगह की ओर बढ़ते स्वराज पुरी को अजीब खबरें सुनाई दे रहीं थीं..लोग बेहोश हो रहे थे, देख नहीं पा रहे थे, सांस लेने में तकलीफ हो रही थी.. एक ऐसा माहौल बन चुका था जिसे न पहले कभी देखा था और न ही जिससे निपटने की तरकीब दिखाई दे रही थी। सबसे पहले तो किसी की यही समझ नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है। 

पुराने भोपाल की ओर बढ़ते स्वराज पुरी का गला कुछ देर बाद सूखने लगा। इसी बीच रिपोर्ट मिली कि कोई जहरीली गैस लीक हो गई है, जिसकी वजह से पुराने भोपाल में भगदड़ मच चुकी है और लोग बीमार हो रहे हैं। ये सब इतनी तेजी से हो रहा था कि सड़क से कंट्रोल रूम और कंट्रोल रूम से सड़क पर बार बार भागते स्वराज पुरी ही नहीं समझ पा रहे थे कि अब किया क्या जाए।

फौरन प्रशासनिक अधिकारियों को बुलाया और उनसे पूछा कि लोगों को बचाने के लिए क्या किया जा सकता है, उनके पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं था। स्वराज पुरी ने डॉक्टरों से पूछा कि क्या इसके कोई एन्टीडोट्स हैं। इस सवाल के जवाब में डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए। 

gas tragedy


वो बस देखता रहा
“कुछ देर पहले तक तो सब ठीक था, अचानक ये क्या हो गया।” टैंक जैसे भट्टी बन गया था, यूनियन कार्बाइड का वो कर्मचारी जब उसके बगल से गुजरा तो उसे लगा कि अब बस ये फट ही जाएगा। ये तो साफ था कि कुछ भयानक हो चुका है बस तस्वीर उसकी आंखों के सामने अभी तक नहीं थी। फिलहाल जान बचानी है तो यहां से भाग जाना ही ठीक ही रहेगा, ये सोचकर वो फैक्ट्री से बाहर निकल चुका था। 

तो क्या अब फैक्ट्री खाली थी, नहीं..खाली नहीं थी फैक्ट्री। 40 टन मिथायल आइसोसायनाइड का कुछ हिस्सा हवा में मिल चुका था, बाकी हिस्सा टैंक नंबर 610 से बाहर निकलने को मचल रहा था। इवेकुएशन यूनिट से वो अभी भी बाहर निकल रहा है।

कुछ ही मिनट पहले नाइट शिफ्ट वाले कर्मचारी बात कर रहे थे..शायद टैंक नंबर 610 है..हां..हां यही है..अरे पानी मिल गया है उसमें..देखो कुछ गड़बड़ है क्या..अरे दूर रहो उससे, फट जाएगा। क्या करें..कुछ नहीं..सब ठीक हो जाएगा..अरे नहीं..गैस लीक हो रही है..तू क्या देख रहा है..निकल यहां से..मरना है क्या..


gas tragedy


तो मौत ऐसी भी होती है
उस रात भोपाल में गैस कांड हुआ था, 32 साल पहले हुए इस हादसे के बाद ऐसी अनगिनत कहानियां सामने आईं जिन्होंने मौत की परिभाषा ही बदल दी। तीन दिसंबर की सुबह चढ़ते सूरज के साथ भोपाल के आसमान में चीलें और गिद्ध मंडराने लगे। घरों में, सड़कों पर, अस्पतालों के बाहर लाशों का ढ़ेर लगा था। सिर्फ इंसान ही नहीं, मौत की इस जहरीली हवा की जद में आने के बाद असंख्य जानवरों की भी मौत हो गई थी।

हर तरफ लाशों से उठ रही बदबू फैली हुई थी। इंसानी लाशों को जानवरों की तरह उठाया जा रहा था। नरक से भी बुरे इस माहौल में जिंदा इंसान भी लाश में तब्दील हो गया था, क्योंकि जो बचे हुए थे उनके अहसास भी मर चुके थे। 

कहानी का वो हिस्सा जो हकीकत है और आज भी जारी है
आंकड़े बताते हैं कि इस हादसे में लगभग 5 लाख 20 हज़ार लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए। इनमें 2 लाख लोग 15 वर्ष की आयु से कम थे और 3000 गर्भवती महिलाये थी, उन्हें शुरुआती दौर में खासी, उल्टी, आंखों में जलन और घुटन का अनुभव हुआ। 2259 लोगों की इस गैस की चपेट मे आकर आकस्मिक मृत्यु हो गयी। 1991 मे सरकार द्वारा इस संख्या की पुष्टि 3928 की गयी।

दस्तावेज़ों के अनुसार अगले 2 सप्ताह के भीतर 8000 लोगों की मृत्यु हुई। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा गैस रिसाव से होने वाली मौतों की संख्या 3787 बतायी गयी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हज़ार लोग मारे गए थे। हालांकि ग़ैरसरकारी स्रोत मानते हैं कि ये संख्या करीब तीन गुना ज़्यादा थी।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो