भोपाल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का बड़ा पथ संचलन रविवार को दोपहर 3 बजे मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में लाल परेड ग्राउंड से निकला। ऐसा पहली बार हुआ कि सभी स्वयंसेवक खाकी रंग की फुल पैंट पहनकर पथ संचलन शामिल हुए। इस दौरान स्वयंसेवकों का जगह जगह जोरदार स्वागत हुआ। इसके लिए भोपाल में करीब 27 हजार स्वयं सेवकों को नए गणवेश (फुल पैंट) बांटे गए थे। संघ के 91 साल के इतिहास में बदलाव बदलाव कर हाफ पैंट की जगह फुल पैंट पहनाया गया है।
पथ संचलन की तस्वीरें देखें….
इन मार्गों से गुजरा पथ संचलन
प्रथम पथ संचलन: लाल परेड ग्राउंड के प्रबंध द्वार से शब्बन चौराहा, सेट फ्रांसिस स्कूल रोड, जिंसी, चिकलोद रोड, गुरुद्वारे के बगल से दाहिनी ओर, बरखेड़ी पुलिस चौकी चौराहा, पुल पातरा, भारत टॉकीज चौराहा, तलैया चौराहा, पुल पुख्ता तिराहा, लिली टॉकीज चौराहा, पीएचक्यू तिराहा, विजय द्वार से लाल परेड ग्राउंड।
द्वितीय पथ संचलन: लाल परेड ग्राउंड के शौर्य द्वार से प्रारंभ होकर पीएचक्यू तिराहा, लिली चौराहा, काली मंदिर तलैया, बुधवारा चौराहा, ऊपरी रोड से इतवारा, जैन मंदिर रोड से मंगलवारा थाना तिराहा, छावनी रोड, भारत टॉकीज चौराहा, लिली चौराहा, विजय द्वार से लाल परेड ग्राउंड में प्रवेश करेगा।
2010 में हुआ था ऐलान
संघ ने अपने गणवेश में बदलाव का ऐलान 2010 में ही कर दिया गया था। लेकिन इसे अमल में 2016 से लाया जा रहा है। और बदलाव यह है कि अपने पथसंचलन में हमेशा शॉर्ट नेकर, व्हाइट शर्ट में नजर आने वाले आरएसएस के अधिकारी-कर्मचारी इस बार फुल ट्राउजर यानी पैंट में नजर आएंगे।
इसलिए पड़ी बदलाव की जरूरत
संघ का मानना है कि आज युवा उनके गणवेश में पहना जाने वाला ट्रेडिशनल खाकी कलर का हाफ नेकर पसंद नहीं करते यही कारण है कि वे आरएसएस से जुडऩा नहीं चाहते। युवाओं को आकर्षित करने के लिए आरएसएस को अपने गणवेश को बदलना पड़ा। इस बदलाव को करने का निर्णय खुद आरएसएस की नागपुर और राजस्थान स्थित अखिल भारतीय प्रतिनिधि संस्था ने लिया है।
RSS की नई ड्रेस से जुड़े कुछ रोचक FACT…
* 1925 में पहली बार आरएसएस के सदस्यों और मुखियाओं द्वारा पहने गए गणवेश में खाकी कलर के ट्रेडिशनल शॉर्ट नेकर को पारीवारिक गणवेश के रूप में अपनाया गया था। इस शॉर्ट नेकर के साथ, खाकी शर्ट, लेदर बैल्ट, लॉन्ग ब्लैक शूज, खाकी कैप और स्टिक शामिल थी।
* 1930 में यानी पांच साल में पहली बार आरएसएस ने अपनी गणवेश में कुछ बदलाव किया। इसमें खाकी कैप को हटाकर ब्लैक कलर की टोपी पहनी गई। वहीं खाकी शर्ट को बदलते हुए व्हाइट शर्ट को गणवेश में शामिल किया गया।
* इसके बाद 1973 में फिर से गणवेश में परिवर्तन किया गया। इस बार लॉंग ब्लैक शूज के बजाय, लाइटर शूज को गणवेश में शामिल किया गया।
* इसके बाद अंतिम बदलाव किया गया था 2011 में जब जैन मुनि तरुण सागर ने आरएसएस के सदस्यों से कहा था कि लैदर बैल्ट का अहिंसा से कोई संबंध नहीं है। बस फिर क्या था आरएसएस ने रातोंरात लैदर का बैल्ट बदलकर कैंनवास बैल्ट अपनी गणवेश में शामिल कर लिया।
* अब 2016 में ये गणवेश युवाओं को आकर्षित करने के लिए बदल दी गई।