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भोपाल

सावन स्पेशलः …तब इंजीनियरिंग का बड़ा वर्कशॉप था भोजपुर

सावन स्पेशलः भोजपुर मंदिर पुरातत्वविद के साथ पत्रिका ने लिया जायजा। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार मंदिर के पीछे रैंपनुमा पहाड़ी से ही पत्थरों को हाथियों की मदद से लाया जाता था…।

भोपालAug 03, 2015 / 12:02 pm

मनीष गीते

The engineering workshop was great Bhojpur

The engineering workshop was great Bhojpur

शिवनारायण साहू
भोपाल। भोजपुर में बना भगवान शिव का मंदिर सिर्फ अस्था का केंद्र नहीं बल्कि हजार साल पुरानी इंजीनियरिंग की बड़ी कार्यशाला है। 

पत्थरों पर बने मंदिर के डिजायन, पत्थरों को काटने की तकनीक और निश्चित एंगल पर बनाई गई रैंप इसका नायाब उदाहरण है। राजा भोज के समय में बना सम्रांगण सूत्रधार ( मास्टर प्लान) भी इसकी पुष्टि करता है कि हजार साल पहले के निर्माण भी तकनीक के आधार पर किए गए हैं।

पत्थरों पर बनी है मंदिर निर्माण की डिजाइन
The engineering workshop was great Bhojpur

पुरातत्व विभाग द्वारा पाइप लगाकर संरक्षित किए गए पत्थरों में मंदिर के अंदर लगे स्तंभ, मंदिर के क्षत्र से लेकर बाह्य डिजायन के चित्र बने हैं। अपूर्ण मंदिर को पूरा करने के लिए मंदिर के ऊपर बनने वाले गुंबद, कलश एवं सिंह के चित्र भी पत्थरों पर निर्मित हैं।

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यह है इंजीनियरिंग के गवाह

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पत्थरों पर डिजायनः मंदिर के स्तंभ, क्षेत्र के अंदर बाहर डिजाइन।
पत्थर काटने के निशानः यहां पहाड़ पर कई पत्थरों में छोटे-छोटे गड्ढे एक कतार में बने है। 
जलधारा की फैक्ट्रीः भोजपुर से डेढ़ किमी पहले ग्राम मेदुआ में पहाड़ों पर दर्जनों जलधाराएं कटी हुई हैं। 
ऊंचाई के हिसाब से रैंप का कोणः मंदिर के पीछे रैंपनुमा एक पहाड़ी है। यहीं से पत्थर लगते जाते थे और कोण बदलता जाता था।

The engineering workshop was great Bhojpur

मेदुआ में जलधारा बनाने की फैक्ट्रीः भोजपुर से डेढ़ किमी पहले ग्राम मेदुआ के निकट पहाड़ों पर दर्जनों की संख्या में जलधाराएं (शिवलिंग लगाने का आधार) पत्थरों पर कटी पड़ी हैं। ये जलधाराएं बताती हैं कि इनका यहीं पर निर्माण किया जाता था, केवल शिवलिंग स्थापित किए जाने का स्थान छोड़ा जाता था, ताकि लोग अपनी हैसियत के हिसाब से शिवलिंग स्थापित कर सकें।

मंदिर पीछे बना है रैंपः मंदिर के पीछे ही रैंपनुमा एक पहाड़ी है। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार इस रैंपनुमा पहाड़ी से ही पत्थरों को मंदिर पर हाथी और अन्य जानवरों की मदद से ले जाता था। 

क्या कहते हैं विशेषज्ञ
The engineering workshop was great Bhojpur

भोजपुर के शिवमंदिर का परिसर और पहाड़ी क्षेत्र मंदिर निर्माण की इंजीनियरिंग का भी शानदार उदाहरण है। पत्थर काटकर मंदिर में लगाया जाता था। उसके भी अवशेष यहां हैं। 
नारायण व्यास, वरिष्ठ पुरातत्विद 

ऐसा कहा जाता है कि पांडवों की माता कुंती शिवभक्त थी इसलिए पांडवों ने इसका निर्माण किया था। 
सुरेंद्र गिर गोस्वामी, मुख्य पुजारी शिव मंदिर
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