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मां महामाया की साड़ी कर देगी रोग मुक्त, एक-एक साड़ी के लिए लगती है हजारों की बोली

locationबिलासपुरPublished: Dec 02, 2016 11:19:00 am

Submitted by:

Kajal Kiran Kashyap

काजल किरण कश्यप. बिलासपुर. 51 शक्तिपीठों में से एक रतनपुर स्थित मां महामाया का मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। यहां मांगी गई हर मन्नत पूरी हो जाती है। यहां श्रद्धालुओं द्वारा मां महामाया को श्रृंगार की सामग्री के साथ ही साडि़यां भी अर्पित की जाती हैं। बाद में यह साडिय़ां नीलाम की […]

ratanpur mahamaya temple

ratanpur mahamaya temple

काजल किरण कश्यप. बिलासपुर. 51 शक्तिपीठों में से एक रतनपुर स्थित मां महामाया का मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। यहां मांगी गई हर मन्नत पूरी हो जाती है। यहां श्रद्धालुओं द्वारा मां महामाया को श्रृंगार की सामग्री के साथ ही साडि़यां भी अर्पित की जाती हैं। बाद में यह साडिय़ां नीलाम की जाती हैं, जिसे खरीदने के लिए हजारों श्रद्धालुओं द्वारा बोली लगाई जाती है। इसे पुण्य प्रसाद माना जाता है।

मान्यता है कि इस साड़ी को पहनने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही कष्टों से मुक्ति मिलती है। माता से जुड़ी प्रत्येक वस्तुओं को श्रद्धालु पाने के लिए लालायित रहते हैं। इसलिए जब भी माता की साड़ी खरीदने का अवसर मिलता है तो महिलाएं सौभाग्य का प्रतीक समझकर इसे खरीदती हैं। चढ़ावे में कॉटन, शिफॉन, जार्जेट, बनारसी, कांजीवरम सहित अलग-अलग तरह की साडिय़ां होती हैं। जिसे माता को पहनाया जाता है और बाद में उसे नीलामी की जाती है। महामाया मंदिर के ट्रस्ट के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पंडित सतीश शर्मा ने बताया कि साडि़यां माता को सैकड़ों की संख्या में अर्पित होती हैं। उन साडि़यों को माता का पहनाने के बाद भक्त बोली लगाकर ले जाते हैं। सौभाग्यवती महिलाएं उन साडि़यों को खास तौर पर खरीदती हैं।

ratanpur mandir

मंदिर कार्यालय में काटी जाती है रसीद

मंदिर परिसर में महामाया मंदिर ट्रस्ट के कार्यालय से श्रद्धालुओं को बाकायदा रसीद काटकर साढ़ी दी जाती है। मंदिर समिति ट्रस्ट इसकी कीमत के मुताबिक राशि तय करती है। श्रद्धालु इसे आम दिनों में भी ट्रस्ट से रसीद कटवाकर प्राप्त कर सकते हैं।

एक साड़ी एक ही बार पहनाई जाती है

मां महामाया को श्रद्धालुओं द्वारा इतनी साडिय़ां अर्पित की जाती हैं, इनमें एक साड़ी पहनाने के लिए बमुश्किल एक ही बार मौका आता है। हर दिन श्रृंगार करके साड़ी बदली जाती है। माता को एक साड़ी दूसरी बार नहीं पहनाई जाती।
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